तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही भारत में आम हो जाएगा लू का कहर
यही नहीं तापमान में होने वाली 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी 2.7 गुणा बढ़ जाएगा
On: Thursday 25 March 2021
भारत सहित दक्षिण एशिया के अन्य देशों में भी समय-समय पर हीटवेव का कहर जारी है। गर्मी आने के साथ भी इसका अंदेशा बढ़ता जाता है। इसपर हाल ही में किए एक नए शोध से पता चला है कि भविष्य में तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी तीन गुना बढ़ जाएगा।
हालांकि रिपोर्ट के अनुसार यदि तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक लिया जाता है तो इसका जोखिम भी आधा रह जाएगा। इसके बावजूद तापमान में इतनी वृद्धि के चलते दक्षिण एशिया में हीटवेव का आना आम बात हो जाएगा। यह जानकारी हाल ही में जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे एक नए शोध में सामने आई है।
आईपीसीसी द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक तापमान पहले ही 1 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ चुका है जबकि 2040 तक यह 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाएगा। इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मोएतासिम अशफाक की माने तो तापमान में आधे डिग्री की बढ़ोतरी भी इन घटनाओं में काफी वृद्धि कर सकती है। हाल ही में यूएन द्वारा प्रकाशित ‘एमिशन गैप रिपोर्ट 2020’ से पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी।
भारत में भी तेजी से बढ़ रहा है तापमान
तापमान में हो रही इस वृद्धि से भारत भी अछूता नहीं है। हाल ही में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 भारतीय इतिहास का आठवां सबसे गर्म वर्ष था। इस वर्ष तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था। गौरतलब है कि 2016 में अब तक का सबसे अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था। जब तापमान 1980 से 2010 के औसत की तुलना में 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते देश में तापमान लगातार बढ़ रहा है।
दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी दक्षिण एशिया में रहती है ऐसे में बढ़ता तापमान उसके लिए एक बड़ा खतरा है। दक्षिण एशिया में रहने वाले लोगों पर इसका खतरा वैसे भी ज्यादा है। इस क्षेत्र में पहले ही काफी ज्यादा गर्मी पड़ती है साथ ही मौसम नम रहता है। लोग गरीब हैं, इस वजह से एयर कंडीशन उनकी पहुंच से बाहर है। लोग घनी आबादी वाले क्षेत्रों में रहते हैं और करीब 60 फीसदी लोग कृषि कार्यों में लगे हुए हैं। ऐसे में उनका घर में रहकर तो गुजरा होगा नहीं उन्हें अपने परिवार का पेट भरने के लिए खुले में काम करना ही होगा, जो उनपर लू के जोखिम को और बढ़ा देता है।
तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से 2.7 गुणा बढ़ जाएगा लू का कहर
इस नए शोध में शोधकर्ताओं ने जलवायु आबादी और भविष्य में जनसंख्या में होने वाली वृद्धि के अनुमानों के आधार पर यह जानने का प्रयास किया है कि तापमान में 1.5 और 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि का क्या प्रभाव होगा। यदि वेट बल्ब तापमान की बात करें तो 32 डिग्री सेल्सियस तापमान को इंसान के लिए खतरनाक माना जाता है जबकि 35 डिग्री सेल्सियस पर इंसान का शरीर अपने आप को खुद ठंडा नहीं कर सकता है। यदि इसके आधार पर देखें तो तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से यहां जोखिम करीब 2.7 गुणा बढ़ जाएगा।
वहीं यदि तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोक लिया जाता है तो यह जोखिम आधा रह जाएगा। इसके बावजूद एक बड़ी आबादी इस बढ़ते तापमान की चपेट में होगी। इसका सबसे ज्यादा असर भारत में कृषि प्रधान राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश और पाकिस्तान के पंजाब और सिंध में पड़ने के आसार हैं। साथ ही कराची, कोलकाता, मुंबई, हैदराबाद, पेशावर और तटीय क्षेत्रों पर भी व्यापक असर पड़ने के आसार हैं।
इससे पहले 2017 में किये एक अध्ययन में भी सदी के अंत तक दक्षिण एशिया में भारत, बांग्लादेश और पाकिस्तान पर लू के कहर की आशंका जताई थी। लेकिन इस नए शोध के अनुसार इस क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का असर पहले ही पड़ने लगा है। नतीजन 2015 में भारत और पाकिस्तान में लू के चलते करीब 3500 की जान गई थी।
कब बनती है लू की स्थिति
हीटवेव यानी लू का संबंध हवा की दिशा से है, हवा की तेजी और उसका तापमान, ये तीनों कारक जब एक साथ मिलकर अटैक करते हैं तो वह लू के शक्ल में बाहर आता है। इसके तापमान में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। इसका अकालन कैसे करें तो सबसे पहले बायोलॉजिकल इंडिकेटर यानी जिस इलाके में हीटवेब के आने की संभावना होती है तो वहां से पुशु-पक्षी, जीव-जंतु आदि पलायन करने लगते हैं। जैसे ही उन्हें इसका अहसास होता है और पलायन कर जाते हैं।