डाउन टू अर्थ खास: गंगा सहित 13 नदियों के किनारे वानिकी कार्यक्रम का क्या हुआ हश्र?

केंद्र सरकार ने गंगा के किनारे वानिकी का जो लक्ष्य निर्धारित किया था, मियाद पूरी होने तक वह केवल 22 प्रतिशत ही पूरा हो पाया है

By Vivek Mishra

On: Saturday 16 September 2023
 
गंगा और उसकी सहायक नदियों के दोनों तट पर वानिकी के लिए 2016 में बनी थी योजना

नदियों की सेहत सुधारने के उद्देश्य से साल 2016 में केंद्र सरकार की तरफ से गंगा और उसकी सहायक नदियों के किनारे वानिकी का एक महत्वाकांक्षी कार्यक्रम शुरू हुआ। दो साल पहले यानी 2021 में इस कार्यक्रम की मियाद पूरी हो चुकी है और लक्ष्य हासिल हुआ है महज 22 प्रतिशत। इस कार्यक्रम के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी सहमति ली गई थी। इसके सफल होने के बाद देश की अन्य 13 नदियों के किनारे इस कार्यक्रम की पुनरावृत्ति होनी थी। लेकिन यह परियोजना ही लक्ष्य से बहुत दूर रह गई और अन्य नदियों के किनारे वानिकी कार्यक्रम अंधेरे में चला गया।

केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन के मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने 8 अगस्त, 2022 को लोकसभा में अपने जवाब में कहा था कि मंत्रालय ने देहरादून स्थित इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री, रिसर्च एंड एजुकेशन (आईसीएफआरई) के जरिए मार्च 2022 में 13 प्रमुख नदियों के कैचमेंट में वानिकी हस्तक्षेप के लिए डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार की थी। इनमें सतलुज, ब्यास, रावी, चेनाब, झेलम, लूनी, यमुना, महानदी, ब्रह्मपुत्र, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का नाम शामिल था। इसके लिए 19,342.63 करोड़ रुपए की रूपरेखा तैयार की गई थी। गंगा के वानिकी हस्तक्षेप के तर्ज पर ही इन नदियों में वानिकी हस्तक्षेप की योजना बनी थी।

इससे पहले साल 2016 में गंगा और उसकी सहायक नदियों में दोनों किनारों पर 2021 तक करीब 1.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में वानिकी हस्तक्षेप करने की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार और मंजूर की गई थी। दो साल की मशक्कत के बाद तैयार डीपीआर के तहत उत्तराखंड के ऊपरी पहाड़ी क्षेत्र और पश्चिम बंगाल के सुंदरबन क्षेत्र को छोड़कर 2,500 किलोमीटर लंबी गंगा की मुख्यधारा के दोनों किनारों से 5 किलोमीटर क्षेत्र दूर तक और सहायक नदियों के दोनों किनारों से 2 किलोमीटर दूर तक के क्षेत्र में वानिकी की जानी थी।

दूरी का यह पैमाना अब तक दर्ज उच्च बाढ़ लाइन और विभिन्न सेटेलाइट इमेज के जरिए तय किया गया था। प्रभावी तरीके से वानिकी संभव हो, इसलिए पहली बार रिवरस्केप स्तर का मानचित्र तैयार करने के लिए भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) का इस्तेमाल किया गया। जीआईएस पृथ्वी पर मौजूद चीजों और घटित होने वाली घटनाओं के मानचित्रण और विश्लेषण के लिए एक कंप्यूटर-आधारित उपकरण है। इस वैज्ञानिक प्रणाली के जरिए बड़े लैंडस्केप में कम समय में यह निर्णय लेने में आसानी होती है कि लक्षित तरीके से कहां ज्यादा या कम काम करने की जरूरत है। इस डीपीआर को उत्तराखंड में देहरादून स्थित फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट (एफआरआई) के जरिए तैयार किया गया था।

इस डीपीआर के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) को कॉन्सेप्ट नोट 29 अक्टूबर, 2014 को सौंपा गया था। तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के सचिव शशि शेखर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि गंगा की अविरलता और गंगा क्षेत्र में भू-जल के स्तर को ठीक करने के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण परियोजना थी। इस परियोजना के बारे में विभाग की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी ब्रीफ किया गया था।

एनएमसीजी ने इस परियोजना के कॉन्सेप्ट नोट को 16 फरवरी, 2015 को मंजूर किया। इस संबंध में एफआरआई के जरिए ड्राफ्ट रिपोर्ट फरवरी, 2016 को एनएमसीजी को सौंपी गई और डीपीआर के पहले चरण की अंतिम रिपोर्ट मार्च, 2016 में सौंपी गई।

22 मार्च, 2016 को तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती और तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गंगा में वानिकी हस्तक्षेप पर विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) जारी करते हुए यह कहा, “गंगा को जीवित रखने के लिए और उसे पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त बनाने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। नदी के जलग्रहण क्षेत्र में वन स्थापित किए जाने चाहिए ताकि वन और जल के बीच जीवंत संबंध बना रहे। गंगा के किनारों पर कटाव रोकने और भूजल स्तर बढ़ाने के लिए के लिए वानिकी हस्तक्षेप का कार्यक्रम पांच साल (2016-2021) में 2,293.73 करोड़ रुपए की लागत से समयबद्ध तरीके से पूरा किया जाएगा।”

झारखंड को छोड़कर सभी राज्य वानिकी लक्ष्य से बहुत दूर हैंडीपीआर के मुताबिक, पांच प्रमुख गंगा राज्यों में नदी के समूचे क्षेत्र को जीआईएस तकनीक के जरिए मापा गया। यह कुल क्षेत्र 83,945.49 वर्ग किलोमीटर था। इसमें से पांचों राज्यों में कुल 1,340 वर्ग किलोमीटर (1.34 लाख हेक्टेयर क्षेत्र) पर वानिकी हस्तक्षेप करने का निर्णय लिया गया था। यदि इसकी तुलना दिल्ली में यमुना नदी के फ्लड प्लेन क्षेत्र 9,700 हेक्टेयर से की जाए तो इस तरह के करीब 12 फ्लड प्लेन क्षेत्र में वानिकी की जानी थी।

सभी राज्यों को पहले चरण के वानिका का लक्ष्य देकर वन विभाग को इस काम का अंजाम देने का आदेश दिया गया था। लक्ष्य के पांच के बजाए करीब 7 साल बीत गए लेकिन गंगा के किनारों पर अभी तक 22 फीसदी भी काम पूरा नहीं हो पाया। डाउन टू अर्थ ने जल शक्ति मंत्रालय के अधीन एनएमसीजी से गंगा के प्रमुख राज्यों में वानिकी की स्थिति को लेकर सूचना के अधिकार के तहत जवाब मांगा तो एनएमसीजी की ओर से पता चला कि गंगा ग्राम सहित प्रमुख पांच राज्यों में 2016-17 से लेकर 2021-22 तक कुल 347 करोड़ रुपए खर्च करके 30,071 हेक्टेयर भूमि पर ही वानिकी की गई।

एफआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक दिनेश कुमार डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि परियोजना बनने के बाद से सिर्फ एक बार उत्तर प्रदेश की ओर से सलाह मांगी गई थी। न ही कभी इस परियोजना की समीक्षा की गई और न ही कोई बैठक हुई। वह बताते हैं कि क्रियान्वयन की जिम्मेदारी राज्यों को ही दी गई थी।

डीपीआर के मुताबिक, गंगा के दोनों किनारों पर भूजल पुनर्भरण को बढ़ाने और कटाव को कम करने के अलावा नदियों में प्रवाह को भी ठीक करना था। जंगलों में पानी को रोकने और उसे धीरे-धीरे नदियों में छोड़ने की क्षमता होती है जो नदियों में पानी के निर्बाध प्रवाह को सुनिश्चित करने और समग्र जल विज्ञान चक्र में सुधार करने का एक महत्वपूर्ण घटक है।

इस मामले में जब डाउन टू अर्थ ने राज्यों से संपर्क किया तो पश्चिम बंगाल छोड़कर चार राज्यों का जवाब मिला। कमोबेश पांच साल का टाइम पूरा होने के बाद भी निर्धारित लक्ष्य पूरा नहीं हुआ है। उत्तराखंड जिसे गंगा किनारे वानिकी के लिए सबसे ज्यादा लक्ष्य दिया गया था, उसने 10 फीसदी काम भी पूरा नहीं किया है।

उत्तराखंड वन विभाग की ओर से बताया गया कि कुल 54,855 हेक्टेयर भूमि में से महज 10,460 हेक्टेयर भूमि पर ही वानिकी का काम किया गया है। उत्तराखंड के मुताबिक, उनके जरिए जो वानिकी की गई है, उसका सरवाइवल रेट 80 फीसदी है।

इसी तरह से दूसरा बड़ा लक्ष्य बिहार के पास था। बिहार ने 27,667 हेक्टेयर भूमि में से सिर्फ 7,000 हेक्टेयर पर ही काम पूरा किया है। बिहार के वन विभाग के मुताबिक, इसमें उन्होंने राज्य के जरिए किए गए अन्य प्लांटेशन वर्क को भी शामिल कर दिया है। उत्तर प्रदेश को कुल 14,212 हेक्टेयर भूमि पर वानिकी का काम करना था। हालांकि सिर्फ 9,000 हेक्टेयर लैंड पर ही काम किया जा सका।

झारखंड को बेहद छोटे हिस्से 1,939 हेक्टेयर भूमि पर यह काम करना था। झारखंड के वन विभाग के मुताबिक, साहिबगंज जिले में इस पूरे काम को अंजाम दिया गया। हालांकि सरवाइवल रेट को लेकर जवाब नहीं दिया गया। पश्चिम बंगाल को 35,482 हेक्टेयर भूमि पर वानिकी करनी थी। राज्य के अधिकारियों ने हासिल लक्ष्य पर कोई जवाब नहीं दिया। यदि एनएमसीजी के दिए गए जवाब के आधार पर आकलन करें तो पांच सालों में कुल लक्ष्य का लगभग 22 प्रतिशत काम ही पूरा हुआ है।


वहीं, आरटीआई के जरिए पता चलता है कि एनएमसीजी के जरिए कुल 2,300 करोड़ में पांच सालों में 337 करोड़ रुपए ही राज्यों को वानिकी के लिए दिए गए हैं।

गंगा उत्तर की ओर खिसकी

हिमालयी नदियों की धाराएं बदलती रहती हैं। एनएमसीजी की एक बैठक में यह लिखित कहा गया कि समूची गंगा का घुमाव उत्तर की ओर खिसक चुका है। इनका कैचमेंट खाली हुआ है जिसमें आवश्यक रूप से सिर्फ वानिकी की जानी चाहिए। इस बैठक में कहा गया था कि कैचमेंट का जो क्षेत्र गंगा के जरिए छोड़ा गया है, वह रिजर्व और प्रतिबंधित क्षेत्र होना चाहिए। हालांकि, इस बारे में कोई आदेश या सूचना नहीं जारी की गई।

पर्यावरण मामलों के कानूनविद एमसी मेहता कहते हैं कि बीते 40 वर्षों से गंगा मामले की कानूनी लड़ाई लड़ते हुए यह आभास हुआ कि यदि आंकड़ा 30 हजार हेक्टेयर भूमि का दिया जा रहा है तो उसे एक हजार हेक्टेयर लैंड ही माना जाना चाहिए। गंगा के मामले में ज्यादातर कागजी आंकड़े वह भी आधे-अधूरे देना विभागों का अभ्यास बन चुका है।

तो क्या वाकई गंगा का फ्लड प्लेन खाली है और उसमें वानिकी संभव है? दिवंगत मनोज मिश्रा के मैली से निर्मल यमुना पुनरुद्धार मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 13 जनवरी, 2015 को यह आदेश दिया था कि दिल्ली में यमुना के कुल फ्लड प्लेन 9,700 हेक्टेयर लैंड में दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) के पास केवल 1,452 हेक्टेयर भूमि मौजूद है अन्य फ्लड प्लेन लैंड या तो एग्रीकल्चर में या फिर लीज पर या अतिक्रमण में है।

गंगा के प्रमुख राज्यों में भी गंगा किनारों पर

यह समस्या बनी हुई है। वानिकी परियोजना के समय यह सवाल उठा था। तत्कालीन सचिव शशि शेखर बताते हैं कि ज्यादातर एग्रीकल्चर और प्राइवेट लैंड किनारों पर हैं। इसके लिए किसानों के साथ सहमति बनाने की बात तय की गई थी। मेहता कहते हैं कि यह सरकार का काम है कि वह अन्य मामलों की तरह गंगा के संरक्षण के लिए भी जमीन अधिग्रहण करे। साथ ही सामूहिक स्तर पर संरक्षण की पहल की जाए। अदालतों ने कई बार फ्लड प्लेन मामलों में अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। हालांकि, सरकारों ने कभी मन से यह काम नहीं किया।

Subscribe to our daily hindi newsletter