क्या देश में जलवायु परिवर्तन की भेंट चढ़ रहे हैं जंगल

देखा जाए तो बढ़ते तापमान के साथ, सूखा, बाढ़ जैसे खतरे पहले ही विकराल रूप ले चुके हैं वहीं अनुमान है कि आने वाले वर्षों में स्थिति और खराब हो सकती है। 

By Lalit Maurya

On: Saturday 26 March 2022
 

पिछली एक सदी में भारतीय उष्णकटिबंधीय जंगलों में खतरनाक दर से गिरावट आई है। यदि इस गिरावट की वजह पर बात की जाए तो ज्यादातर शोध इसके लिए शहरीकरण और कृषि क्षेत्र में तेजी से होती वृद्धि को जिम्मेवार मानते हैं। लेकिन इन सबके बीच कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन के असर को काफी हद तक अनदेखा कर दिया गया है।

इस बारे में यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग द्वारा किए हालिया अध्ययन से पता चला है पिछले वर्षों में जलवायु परिवर्तन ने देश के जंगलों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। वहीं अनुमान है कि देश के जंगलों को होता नुकसान आने वाले समय में गंभीर समस्या बन सकता है। यह अध्ययन जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।    

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने भारत में जंगलों को होते नुकसान, बारिश और तापमान में आते बदलाव के बीच संबंधों का राष्ट्रीय स्तर पर अध्ययन किया है। जिससे पता चला है कि इस सदी की शुरुआत से देश के जंगलों को होते भारी नुकसान में जलवायु परिवर्तन की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता। यह अध्ययन 2001 से  2018 के बीच जंगलों को हुए नुकसान के आंकड़ों पर आधारित है। 

यह नया शोध आधिकारिक रिपोर्टों के उलट है जिसमें यह दर्शाया गया है कि पिछले कुछ वर्षों में देश के वनक्षेत्र में तुलनात्मक रूप से कम कमी आई है। देखा जाए तो जलवायु में आता बदलाव, बढ़ता तापमान, सूखा और बाढ़ जैसे खतरे पहले ही देश में विकराल रूप ले चुके हैं, वहीं अनुमान है कि आने वाले वर्षों में स्थिति बद से बदतर हो सकती है। ऐसे में कुछ क्षेत्रों की जलवायु में तेजी से आते बदलावों से बचने और जंगलों के संरक्षण और जैवविविधता पर मंडराते जोखिम को कम करने के लिए त्वरंत कार्रवाई की जरुरत पड़ेगी।

इस बारे में शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता ऐलिस हौघन का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में देश के जंगलों में नाटकीय रूप से गिरावट देखी गई है, जिसके लिए कहीं हद तक कृषि, पशुधन और बढ़ती आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए भूमि उपयोग में आते बदलावों को कारण बताया गया है। हालांकि इसमें जलवायु परिवर्तन का भी हाथ हो सकता है, उसपर बहुत कम ध्यान दिया गया है। 

उनके अनुसार जलवायु में तेजी से आता बदलाव आने वाले दशकों में देश के वनों को आशंका से कही ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। उनके अनुसार वनों की कटाई तो समस्या का केवल एक पहलु है, इसकी वजह से जैवविविधता को भी भारी नुकसान हो सकता है। क्योंकि देश वन्यजीवों के संरक्षण के लिए काफी हद तक जंगलों पर ही निर्भर है।

हाल ही में भारत के जंगलों पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा किए विश्लेषण में भी सामने आया है कि देश से लगभग उत्तर प्रदेश के आकार का वन क्षेत्र लापता है, जिसका कुल क्षेत्रफल करीब 2.59 करोड़ हेक्टेयर है।   

जलवायु परिवर्तन और जंगल के बीच क्या है सम्बन्ध

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने जलवायु में आते बदलावों की तीव्रता के आधार पर जंगलों को होते नुकसान का अध्ययन किया है। इसमें न केवल राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि क्षेत्रीय तौर पर मौसमों के आधार पर जलवायु परिवर्तन के असर का विश्लेषण किया है।

पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के चलते वनों को होने वाला नुकसान अलग-अलग स्थान और मौसम के बीच अलग-अलग हो सकता है। इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि जब, जिन क्षेत्रों में जलवायु में आता बदलाव तीव्र था वहां जंगलों को भी अधिक हानि हुई थी।

इसी तरह बारिश में आई कमी ने वनों को होने वाले नुकसान को सबसे ज्यादा प्रभावित किया था। वहीं कुछ क्षेत्रों में तापमान में आती कमी के साथ नकारात्मक प्रभाव भी दर्ज किया गया था।

हौघन के अनुसार शोध से पता चला है कि भारतीय उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कई समशीतोष्ण क्षेत्रों में किए अध्ययनों के विपरीत, तापमान के बजाय वर्षा जंगलों को होने वाले नुकसान का सबसे बड़ा कारक है।

शोध के अनुसार भारत वन क्षेत्र के मामले में दुनिया के शीर्ष 10 देशों में शामिल है। जहां उष्ण और उपोष्णकटिबंधीय जंगल देश के 20 फीसदी से ज्यादा हिस्से में फैले हैं। इतना ही नहीं भारत दुनिया के कुछ प्रमुख जैवविवधता संपन्न देशों में से भी एक है। जहां दुनिया की 8 फीसदी जैवविविधता बसती है।

अनुमान है कि देश में पौधों की 47,000 और जानवरों की 89,000 से ज्यादा प्रजातियां हैं, जिनमें से करीब 10 फीसदी संकटग्रस्त हैं। ऐसे में इन जंगलों का संरक्षण न केवल इन वनों के दृष्टिकोण से बल्कि साथ ही जैवविविधता को बचाने के लिए भी महत्वपूर्ण है।      

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