अरावली के विनाश की योजना है नया एनसीआर रीजनल प्लान?

हाल ही में एनसीआर योजना बोर्ड ने एनसीआर रीजनल प्लान 2041 का ड्राफ्ट जारी किया है, जिसे लेकर पर्यावरणविद नाराज हैं

By Shashi Shekhar

On: Saturday 08 January 2022
 
अरावली को बचाने के लिए एक नागरिक आन्दोलन शुरू किया गया है।

जब दुनिया सीओपी-26 सम्मलेन कर रही थी, पूरा एनसीआर वायु प्रदूषण की मार झेल रहा था, उसी वक्त, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के “विकास” के लिए एनसीआर रीजनल प्लान-2041 का ड्राफ्ट तैयार हो कर सामने आया। इस प्लान में शब्दों का एक ऐसा हेरफेर किया गया है, जो आगे चल कर अरावली क्षेत्र के पूर्ण विनाश का कारण बन सकता है।

दरअसल, एनसीआर रीजनल प्लान 2021 (जो 2005 से अब तक लागू है) में 'नेचुरल कंजर्वेशन जोन’ की बात है। 2021 के प्लान में 'नेचुरल कंजर्वेशन जोन’ का अर्थ है, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में फैला संपूर्ण अरावली रेंज। इसमें पहाड़ियां, वन क्षेत्र, नदियां और सहायक नदियां, प्रमुख झील, जल निकाय और ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग एरिया शामिल हैं, बिना यह देखे कि इसमें शामिल क्षेत्र के लैंड रिकॉर्ड (भूमि अभिलेख) क्या है।

लेकिन, रीजनल प्लान 2041 में 'नेचुरल कंजर्वेशन जोन’ शब्द को ‘नेचुरल जोन’ शब्द से बदल दिया गया है। यानी, इस ‘नेचुरल जोन’ में पहाड़, पहाड़ियां, नदियां, जल निकाय और जंगल जैसी प्राकृतिक विशेषताएं होंगी, जिन्हें केंद्र या राज्य के कानूनों के तहत संरक्षण के लिए अधिसूचित किया जाएगा और ये लैंड रिकॉर्ड में दर्ज होंगी। 

कहां गया कंजर्वेशन? 

अरावली को बचाने के लिए एक नागरिक आन्दोलन शुरू हो चुका है। लेट इंडिया ब्रीद नामक संस्था के साथ मिल कर अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन ने 4 जनवरी 2022 को नए रीजनल प्लान 2041 के प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए एक ईमेल याचिका शुरू की है। आन्दोलन का मानना है कि नए रीजनल प्लान को लागू करने पर अरावली क्षेत्र का 70 प्रतिशत से अधिक हिस्सा नष्ट हो जाएगा।

अब तक, भारत भर के 3100 से अधिक नागरिकों, पर्यावरणविदों और पर्यावरण संगठनों, जैसे यूनाइटेड कंजर्वेशन मूवमेंट (वेस्टर्न घाट), छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, रेनबो वारियर्स फ्रॉम गोवा, वनशक्ति एनजीओ मुंबई, इंडिया ग्रीन्स पार्टी आदि ने एनसीआर प्लानिंग बोर्ड, पर्यावरण मंत्रालय और सरकारी अधिकारियों को नए रीजनल प्लान के प्रावधानों पर आपत्ति जताते हुए ईमेल भेजे हैं।

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन से जुड़ी नीलम अहलूवालिया कहती हैं, “रीजनल प्लान 2041 में भी नेचुरल कंजर्वेशन जोन की ही बात होनी चाहिए, क्योंकि हरियाणा के अधिकांश अरावली पहाड़ी क्षेत्रों को अधिसूचित नहीं किया गया है। राजस्व रिकॉर्ड में उनका उल्लेख 'गैर मुमकिन पहाड़' और 'भूद' के रूप में किया गया है। इसके अलावा, हरियाणा में अधिकांश वन क्षेत्र को न तो 'फॉरेस्ट' के रूप में अधिसूचित किया गया है और न ही राजस्व रिकॉर्ड में इनका उल्लेख 'फ़ॉरेस्ट' के रूप में किया गया है। हरियाणा में अरावली क्षेत्र की लगभग 50,000 एकड़ जमीन को अभी तक किसी भी कानून के तहत वन क्षेत्र के रूप में अधिसूचित नहीं किया गया है, जबकि इस बारे में सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार हरियाणा सरकार को निर्देश दे रहा है।” जाहिर है, ऐसी स्थिति में अगर नए रीजनल प्लान को मौजूदा स्वरुप में लागू किया गया तो अरावली क्षेत्र के और अधिक दुरुपयोग की आशंका बनी रहेगी। 

 अरावली का अस्तित्व?  

एनसीआर रीजनल प्लान 2041 के अनुसार, नेचुरल जोन की पहचान राजस्व रिकॉर्ड के जरिये की जाएगी। यही प्रावधान काफी संदेह पैदा करता है क्योंकि अतीत में भी राज्य सरकार ने अरावली की परिभाषा को कमजोर करने की कोशिश की है।

मसलन, हरियाणा के प्रधान सचिव, टाउन एंड कंट्री प्लानिंग की अध्यक्षता वाली एक समिति ने अगस्त 2021 में, नेचुरल कंजर्वेशन जोन की पहचान के लिए आयोजित एक बैठक में कहा कि फरीदाबाद जिला का राजस्व रिकॉर्ड केवल "गैर मुमकिन पहाड़" (गैर-कृषि पहाड़ी क्षेत्र) की पहचान करता है और इसमें "अरावली" शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। नतीजतन, फरीदाबाद में 20,000 एकड़ में फैले जंगल का अस्तित्व ही खत्म हो जाता है।

मुंबई स्थित वनशक्ति एनजीओ के निदेशक स्टालिन दयानंद कहते हैं, "नए प्लान के कारण नेचुरल कंजर्वेशन जोन जैसा प्रावधान खत्म हो जाएगा, जो रियल स्टेट सेक्टर को इन क्षेत्रों में निर्माण कार्य की अनुमति नहीं देता है।“

स्टालिन का मानना है कि नए प्लान की वजह से मौजूदा नेचुरल कंजर्वेशन जोन का 70% से 80% क्षेत्र, जिसमें अरावली और अन्य नेचुरल इको सिस्टम शामिल हैं, नए प्लान में उल्लेखित “नेचुरल जोन” में शामिल होने योग्य ही नहीं माने जाएंगे।

इकोलॉजिस्ट विजय धस्माना का सुझाव है कि नए रीजनल प्लान 2041 में 'अरावली', 'वन क्षेत्र', 'गैर मुमकिन पहाड़' शब्दों को शामिल किया जाना चाहिए और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय (गोदावर्मन (1996) और लाफार्ज (2011)) के अनुरूप सभी तीन श्रेणियों के वनों को कवर किया जाना चाहिए, ताकि ज्यादा से ज्यादा वन क्षेत्र को संरक्षित किया जा सके। जाहिर है, ऐसा नहीं होने पर सीधा नुकसान अरावली क्षेत्र के क्षरण के रूप में देखने को मिल सकता है। 

अरावली की रखवाली? 

दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान तक फैला अरावली एक महत्वपूर्ण वन्यजीव आवास और बायोडायवर्सिटी हॉटस्पॉट है। यहां पक्षियों की 200 से अधिक प्रजातियां, तितली की 100 से अधिक प्रजातियां,  सरीसृप की दर्जनों प्रजातियां और तेंदुए, सियार, नीलगाय, साही, नेवला, आदि जैसे वन्यजीव पाए जाते हैं। दिल्ली-एनसीआर का इलाका सबसे प्रदूषित और पानी की कमी वाले क्षेत्रों में से एक है। जैसे-जैसे ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन तेज होगा, यह क्षेत्र और अधिक प्रभावित होगा।

अरावली बचाओ नागरिक आंदोलन से जुड़ी अनु पीडी कहती हैं, “अगर अरावली को नए रीजनल प्लान 2041 से बाहर कर दिया जाता है तो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का वायु प्रदूषण स्तर और भी बदतर हो जाएगा, क्योंकि अरावली ही एनसीआर और दक्षिण हरियाणा के लोगों को थार रेगिस्तान से आने वाले रेतीले तूफान से बचाती है।“

अनु के मुताबिक़, अपनी प्राकृतिक दरारों के कारण अरावली के पास हर साल प्रति हेक्टेयर जमीन को 2 मिलियन लीटर पानी देने (वाटर रिचार्ज) की क्षमता है। यानी, यह अरावली का यह क्षेत्र एक शानदार वाटर रिचार्ज जोन के रूप में भी काम करता है। ऐसे में नए रीजनल प्लान 2041 में अरावली की रखवाली के पुख्ता इंतजाम का न होना एनसीआर में रहने वाले करोड़ों लोगों की लाइफ लाइन के साथ किसी खिलवाड़ से कम नहीं है।  

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