आरे मामला: क्या बदल सकती है वन भूमि की परिभाषा?

विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में 18 अक्टूबर की तारीख बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है, क्योंकि कोर्ट वन भूमि के वर्गीकरण के बारे में अहम आदेश दे सकती है

By Ishan Kukreti

On: Monday 07 October 2019
 
Photo: @ConserveAarey

सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर, 2019 को एक विशेष सुनवाई में बृहन्मुंबई नगर पालिका (बीएमसी) को आरे जंगल में पेड़ों की कटाई को रोकने का आदेश दिया और क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखने के लिए कहा। गोरेगांव में स्थित आरे शहर के हरे भरे फेफड़े होने के कारण प्रकृति प्रेमियों में काफी प्रसिद्ध है।

अदालत ने अधिकारियों को उन लोगों को भी रिहा करने का आदेश दिया, जो पेड़ों की कटाई के विरोध में गिरफ्तार किए गए थे। कानून के एक छात्र रिशव रंजन ने सुप्रीम कोर्ट को पत्र भेजकर पेड़ों के कटान पर रोक लगाने और प्रदर्शनकारियों को रिहा करने की मांग की थी।

बीएमसी द्वारा 5 अक्टूबर को लगभग 1,500 पेड़ों को काटने के बाद आदेश आया था। 4 अक्टूबर को बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई में आरे कॉलोनी को जंगल घोषित करने की याचिका खारिज कर दी थी और मेट्रो शेड परियोजना के लिए 2,500 से अधिक पेड़ों की कटाई को रोकने से इनकार कर दिया था।

विशेषज्ञों का कहना है कि टीएन गोदावरमन थिरुमुलकपाद बनाम भारत के 12 दिसंबर, 1996 के उच्चतम न्यायालय के आदेश के कारण वन या राजस्व के रूप में भूमि के वर्गीकरण का सवाल इस मामले में प्रासंगिक नहीं है। आदेश में, शीर्ष अदालत ने देखा था कि वनों की कटाई को रोकने के लिए वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 लाया गया था और यह भी कहा गया है कि इसकी भूमि वर्गीकरण की प्रकृति में कोई फर्क नहीं पड़ता।

आदेश में कहा गया है कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 को और अधिक वनों की कटाई की जांच करने के उद्देश्य से लागू किया गया था जो अंततः पारिस्थितिक असंतुलन का परिणाम है।

इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा था कि वन केवल सरकारी दस्तावेजों में वन भूमि के रूप में दर्ज किए जाने वाले क्षेत्र नहीं होंगे, बल्कि वे सभी क्षेत्र जो जंगल के शब्दकोष की परिभाषा के समान हैं।  

मुंबई के पर्यावरणीय गैर-लाभकारी वंशावली के स्टालिन दयानंद ने कहा कि गोडावरमन के आदेश के तहत, राज्यों को जंगलों की पहचान करने और उन्हें अधिसूचित करने के लिए कहा गया था। दयानंद ने कहा, ज्यादातर राज्यों के पास वन भूमि घोषित करने की एक कसौटी है, जैसे गुजरात में वे भूमि के टुकड़े को मानते हैं, जिसका क्षेत्रफल दो हेक्टेयर है और जिसमें 50 पेड़ हैं। लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी किसी भी कसौटी को अधिसूचित नहीं किया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में लंबित हैं।

भूमि के वर्गीकरण के आसपास की वैधता अस्पष्ट है। दयानंद ने कहा कि 18 अक्टूबर को अगली सुनवाई में अदालत जो भी आदेश देगी, वह निश्चित रूप से देश में वन भूमि वर्गीकरण के पैंडोरा बॉक्स को खोल देगा।

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