सांभर झील में पक्षियों की माैत का सिलसिला जारी, कारण स्पष्ट नहीं

राजस्थान की सांभर झील व उसके आसपास पक्षियों का शव मिलना लगातार जारी है। पक्षियों की मौत का कारण अब तक पुष्ट नहीं हो पाया है

On: Wednesday 13 November 2019
 

माधव शर्मा

राजस्थान की सांभर झील में हो रही प्रवासी पक्षियों की मौत के मामले में अगर वक्त रहते सरकार नहीं चेती तो झील में मौजूद हजारों देशी-विदेशी पक्षियों की जान जा सकती है।  बुधवार को 1992 मृत पक्षी और बरामद किए गए हैं। ये पक्षी रेणकी गांव से शाकंभरी माता मंदिर के आगे तक नागौर जिले की सीमा तक करीब 10 किमी एरिया से बरामद किए गए हैं। 13 नवंबर तक मृत पक्षियों का आधिकारिक आंकड़ा 4330 तक पहुंच गया है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत का कहना है कि अब तक जो आकलन किया गया है, उसके मुताबिक पिछले दिनों सांभर में भारी बारिश हुई, इससे वहां कई नए जलाशय बन गए हैं और पानी में खारेपन का स्तर बढ़ गया और पानी जहरीला हो गया। हालांकि अभी यह जांच की जा रही है कि पानी में प्रदूषण की मात्रा बढ़ने से ऐसा हुआ या काई की वजह से हुआ।

वहीं, राजस्थान हाइकोर्ट ने 15 नवंबर तक सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने पूछा है कि पक्षियों को बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए, शपथ पत्र पर जवाब दें। मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत मोहंती और जस्टिस महेंद्र गोयल ने इस मामले को संज्ञान लेते हुए नोटिस जारी किया है।

डाउन-टू-अर्थ की टीम ने 12 नवंबर को झील के झपोक डैम और सांभर कस्बे से महज एक किमी दूर दादूदयाल महाराज की छतरी के पास भी हजारों की संख्या में मृत पक्षी देखे हैं।झपोक डैम के पास किनारे से करीब एक किमी अंदर तक मृत पक्षी दिखाई दे रहे हैं। दादूदयाल महाराज की छतरी के पास भी कई पक्षी मरे हुए पड़े हैं। यह एरिया नमक उत्पादन क्षेत्र में आता है, लेकिन यहां मानसून का पानी जमा होता है इसीलिए प्रवासियों पक्षियों का एक ठिकाना यहां भी है। हैरानी की बात यह है कि झपोक डैम के पास जहां पक्षी मरे हुए पड़े हैं, वहां पर्यटन विभाग ने कई बर्ड वॉच सेंटर बनाए हुए हैं। इन सेंटर्स से विभाग यहां आने वाले पर्यटकों को प्रवासी पक्षियों के दर्शन करवाता है। फिर भी किसी को पक्षियों के मरने की सूचना नहीं पहुंची।

इतनी बड़ी संख्या में पक्षियों की मौत के बावजूद प्रशासन ने अभी तक पूरी झील का मुआयना नहीं कराया है ताकि पता लग सके कि झील में कहां-कहां पक्षियों की मौत हो रही है?दरअसल, वन विभाग और पशुपालन विभाग के पास इतने संसाधन ही नहीं हैं किइतनी बड़ी झील का मुआयना किया जा सके।

करीब 25 प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों की मौत हुई है। इनमें सबसे ज्यादा करीब 40% नॉरहन शॉवलर और 20%नॉरहन पिटेंलहैं। इसके अलावा कॉमन हील, गोडवेल, ब्लैक ब्राउनहैडेड गल, पलास गल, गल बीनर्टन, पायड एवोसेड, रफ, कॉमन रेड सैक, मार्स सेड पाइपर, बुडसेड पाइपर,कॉमन सेड पाइपर, लेसर सेड प्लाओर, कॉमन कुट, ब्लैक विड स्टील, रूडी सेल डक, लेसर विसलिग डक, टमनिक स्टीट, क्रीक, सिल्वर बील, मलार्ड और नोबिल डक शामिल है। झील का 20-25 किमी का क्षेत्र इससे प्रभावित है।हालांकि  स्थानीय लोगों के मुताबिक पूरी झील ही इसकी चपेट में है।

12 नवंबर को पशुपालन विभाग के निदेशक डॉ. शैलेष शर्मा, अतिरिक्त निदेशक डॉ. भवानी सिंह, पॉल्ट्री विशेषज्ञ डॉ. संदीप अग्रवाल, वन विभाग के सीसीएफ केसीए अरुण प्रसाद, डीएफओ डॉ. कविता सिंह, एसीएफ संजय कौशिक, सांभर सॉल्ट लिमिटेड के जीएम राजेश ओझा, दूदू रेंजर राजेन्द्र सिंह जाखड़, क्षेत्रीय वन अधिकारी और गश्ती दल के सुरेन्द्र सिंह सहित कई प्रशासिनक अधिकारी मौजूद थे।

जांच रिपोर्ट में देरी, दफनाने को ही जिम्मेदारी समझ रहा प्रशासन

प्रशासन ने 10 नवंबर को ही 7 प्रजातियों के पक्षी, पानी और अन्य जरूरी सैंपल भोपाल स्थित आईसीएआर-नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाई सिक्योरिटी एनिमल डिजीज केंद्र भेजे हैं। अधिकारियों के मुताबिक रिपोर्ट आने में करीब एक हफ्ता लग सकता है। रिपोर्ट नहीं आने तक पक्षियों को मौत से बचाने और उसके कारणों का पता नहीं चल पा रहा है। वन विभाग, पशु पालन विभाग सांभर साल्ट लिमिटेड और नगर पालिका के करीब 25 लोगमृत पक्षियों को दफनाने में लगे हैं। वन विभाग और पशुपालन विभाग का घायल पक्षियों को रेस्क्यू करने की कोई योजना नहीं दिख रही है। अभी भी झील के बीच गहरे कीचड़ में सैंकड़ों पक्षी फंसे हुए हैं, वही पक्षी रेस्क्यू हो पा रहे हैं जो झील के किनारे किसी तरह जिंदा पहुंच गए हैं।

वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक केसीए अरुण प्रसाद ने डाउन-टू-अर्थ को बताया कि झील में एक साथ पक्षियों का मरना कई बड़े सवाल खड़े कर रहा है। पानी में विषाक्तता, लवणता में वृद्धि पक्षियों की मौत की एक वजह हो सकती है। पांच-छह दिन पहले ओलावृष्टि भी एक कारण हो सकती है। जब तक सैंपल्स की रिपोर्ट नहीं आ जाती कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता। हमने पानी की जांच के सैंपल भी भेजे हैं।

सांभर तहसीलदार हरीसिंह राव के अनुसार स्थिति गंभीर तो है, लेकिन हमपूरी झील में अंदर घुसकर नहीं देख सकते। उपलब्ध संसाधनों में हम जहां तक जा सकते हैं वहां गए हैं। प्रशासन मुस्तैद है। मृत पक्षियों को डिस्पोज किया जा रहा है। 12 नवंबर को वन विभाग, पशुपालन विभाग और स्थानीय प्रशासन ने शाकंभरी माता मंदिर तक का दौरा कर मरे पक्षियों को इकठ्ठा किया है।

वहीं, दूदू रेंजर राजेन्द्र सिंह जाखड़ ने बताया कि 13 नवंबर कोशाकंभरी माता मंदिर के पास भी कुछ पक्षी मरे हुए मिले हैं। झपोक डैम के पास भी 400-500 पक्षी मरे हैं। दादूदयाल महाराज के पास की घटना की जानकारी आपसे मिली है। इसकी जानकारी करवा रहा हूं। मृत पक्षियों की गिनती जारी है।

स्थानीय पक्षियों और जानवरों में बढ़ा इंफेक्शन का खतरा

मृत पक्षियों की तादात बढ़ने और शहर के नजदीक शव मिलने से यहां के स्थानीय पक्षियों और जानवरों में भी इस अज्ञात बीमारी के फैलने की आशंका बढ़ रही है। क्योंकि रात में कुत्ते और लोमड़ी इन पक्षियों को खाने के लिए झील तक पहुंच रहे हैं। कई पक्षी झील के बाहरी हिस्से में भी मिले हैं जिन्हें किसी जानवर द्वारा खाया गया है।

राजेन्द्र सिंह जाखड़ आगे कहते हैं, ‘इंफेक्शन ना फैले इसीलिए पक्षियों को चूना और नमक के साथ जल्द से जल्द डिस्पोज किया जा रहा है। मौत के कारणों का खुलासा, रिपोर्ट के आने पर ही हो पाएगा।‘

ये है झील की पूरी स्थिति

राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब 95 किमी दूर सांभर झील देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है। झील जयपुर, नागौर और अजमेर जिलों में लगभग 233 किमी में फैली हुई है। इसमें से करीब 156 किमी एरिया में प्राकृतिक झील है और लगभग 78 किमी एरिया में नमक का उत्पादन होता है।इस तरह सांभर में झील मुख्यरूप से दो हिस्सों में बंटी हुई है।आमतौर पर झील में दो-तीन फीट गहराई तक पानी रहता है, लेकिन मानसून के दिनों में यह गहराई दो मीटर तक हो जाती है। सांभर सॉल्ट लिमिटेड के मुताबिक झील में फिलहाल 2 फीट गहराई तक पानी है।

रेंजर राजेन्द्र सिंह बताते हैं कि सांभर झील में हर साल 2-3लाख प्रवासी पक्षी आते हैं।इनमें 50 हजार फ्लेमिंगो, 1 लाख से ज्यादा बगुले और करीब इतनी ही संख्या में अलग-अलग प्रजातियों के पक्षी आते हैं। इससे पहले इस तरह की घटना पहले कभी नहीं हुई। इतनी तादात में पक्षियों के मरने की यह पहली घटना है।

Subscribe to our daily hindi newsletter