बाघों के संरक्षण में जीनोमिक्स निभा सकती है अहम भूमिका : शोध

जीनोमिक्स की मदद से दुनिया भर में घटती बाघों की आबादी को बचाया जा सकता है। भारत के बंगाल टाइगर में अन्य उप-प्रजातियों की तुलना में उच्च स्तर के जीनोमिक विविधता पाई गई है।

By Dayanidhi

On: Friday 19 February 2021
 
Photo : Wikimedia Commons, Bengal Tiger

बाघों का दुनिया की सबसे करिश्माई प्रजातियों में से एक होने के बावजूद, आज इनके रहने वाली जगहों का लगातार नुकसान हो रहा है। बाघ मानव-वन्यजीव संघर्ष और अवैध शिकार के कारण अनिश्चित भविष्य का सामना कर रहे हैं। चूंकि दुनिया भर में बाघों की आबादी में गिरावट आई है, इसलिए उनकी आनुवंशिक विविधता महत्वपूर्ण है। लेकिन अब तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि जानवरों की घटती संख्या आनुवंशिक स्तर पर उन्हें कैसे प्रभावित कर रही है।

इसका पता लगाने के लिए, स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंसेज, भारत के विभिन्न प्राणि उद्यान और गैर सरकारी संगठनों के शोधकर्ताओं ने जीवित बाघों के चार उप-प्रजातियों में से 65 जीनोम का अनुक्रम किया। उनके निष्कर्षों ने पुष्टि की कि अलग-अलग बाघ की उप-प्रजातियों के बीच मजबूत आनुवंशिक अंतर मौजूद होता है, लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि ये अंतर हाल ही में सामने आए है, क्योंकि पृथ्वी एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन के दौर से गुजरी और प्रजातियों में तेजी से वृद्धि हुई।

यह शोध मॉलिक्यूलर बायोलॉजी एंड इवॉल्यूशन नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे जीनोमिक्स बाघों और अन्य प्रजातियों के संरक्षण के प्रयासों को लागू करने में मदद कर सकता है।

जीनोमिक्स एक ऐसा विज्ञान है जिसमें हम डीएनए अनुक्रमण तकनीक एवं जैव सूचना विज्ञान का उपयोग करके जीनोम की संरचना, कार्य एवं अनुक्रमण का अध्ययन करते हैं। जीनोमिक्स से जीवों के संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण का पता लगाया जा सकता है।

शोधकर्ता हैडली ने कहा कि दुनिया भर में मनुष्यों के बढ़ते प्रभुत्व ने प्रजातियों और उनकी आबादी पर काफी दबाव डाला है।

स्टैनफोर्ड वुड्स इंस्टीट्यूट के हेडली ने कहा कि कुछ आबादी मनुष्यों के भविष्य के प्रभुत्व के लिए अच्छी तरह से ढल जाती हैं जबकि जलवायु अधिकतर उनके अनुकूल नहीं होती हैं, इसलिए किसी भी प्रकार की प्रजातियों के प्रबंधन के लिए उनके जीनोम को सुरक्षित किया जाना चाहिए। संरक्षण जीनोमिक्स एक संपूर्ण विज्ञान से अलग है, लेकिन यह बाघ प्रजाति की सीमा और इसके जीनोम दोनों में पर्याप्त नमूने के संकेत देते है।

अध्ययन से पता चलता है कि दुनिया की मौजूदा बाघ उप-प्रजातियां नाटकीय और हालिया दबाव के संकेत लगभग 20,000 साल पहले से शुरू हुए। यह एक ऐसी अवधि है जिसमें एशिया में प्लेइस्टोसिन आइस एज और मानव प्रभुत्व का उदय हुआ। टीम द्वारा अध्ययन किए गए बाघों की प्रत्येक उप-प्रजाति में एक दूसरे से बढ़ते अलगाव के परिणामस्वरूप अलग से जीनोमिक सिग्नेचर देखे गए।

उदाहरण के लिए, ठंडे तापमान में स्थानीय पर्यावरणीय जीनोमिक अनुकूलन साइबेरियाई (या अमूर) बाघों में पाया गया, जो कि रूसी सुदूर पूर्व में पाया जाने वाला उत्तरी बाघ है। इस तरह से ढलने की क्षमता अन्य बाघों में नहीं पाई गई थी। इस बीच, सुमात्रा के बाघों के शरीर के आकार में वहां ढलने के सबूत पाए गए, जो उनके छोटे आकार को समझने में मदद कर सकते हैं। इस तरह ढलने के बावजूद, बाघों की इस आबादी की आनुवंशिक विविधता कम पाई गई है, यह सुझाव देते हुए कि यदि आबादी में गिरावट जारी रहती है, तो आनुवंशिक बचाव पर विचार किया जा सकता है।

एक ऐसा तरीक जिसकी मदद से इनका बचाव किया सकता है, वह है बाघों की विभिन्न प्रजातियों के समागम के माध्यम से एक साथ उनकी आनुवांशिक विविधता बढ़ाने और सजाति प्रजनन (इनब्रीडिंग) के कुप्रभावों से बचाया जा सकता है। सजाति प्रजनन तब होता है जब आबादी छोटी और अन्य आबादी से अलग हो जाती है तो वे एक दूसरे के साथ प्रजनन करते हैं। समय के साथ, यह जीनोमिक विविधता में कमी और रोग, शारीरिक विकृति और प्रजनन समस्याओं को बढ़ाता है जिसके परिणामस्वरूप अक्सर व्यवहार, स्वास्थ्य और आबादी में गिरावट आती है। यद्यपि आनुवांशिक विविधता बढ़ाना एक लक्ष्य है, दूसरे जानवर को विरासत में मिले लक्षणों का चयन किया जा सकता है जो बदलती दुनिया में जिंदा रहने के लिए अहम हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष में कहा गया कि भारत के बंगाल टाइगर, जिनमें दुनिया के लगभग 70 प्रतिशत बाघ शामिल हैं और अन्य उप-प्रजातियों की तुलना में इनमें उच्च स्तर के जीनोमिक विविधता होती है। कुछ आबादी में सजातीय प्रजनन के संकेत भी दिखते हैं।

हैडली ने कहा कि कुछ बंगाल टाइगर की आबादी एक दुर्गम समुद्र से घिरे छोटे द्वीप में रहती हैं। इन बाघों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता है और इसलिए बाघ केवल उनके करीबी रिश्तेदारों को ही साथी के रूप में चुनते हैं।

जबकि कई अध्ययन एक बार या सिर्फ कुछ जानवरों से जीनोमिक्स अनुक्रमों का उपयोग करते हुए लुप्तप्राय प्रजातियों की जांच की जा सकती हैं। यह काम इस बात को दोहराता है कि जानवरों की आबादी या प्रजातियों की स्थिति का केवल एक प्रतिनिधि नहीं हो सकता है। इसके अलावा उप-प्रजातियों में संभावित सजातीय प्रजनन और विविधता में गिरावट के परिणामों की जांच करने की जरूरत है।

जैसा कि जीनोमिक्स बाघों के संरक्षण के लिए उपलब्ध हो गया है, यह स्पष्ट है कि प्रजातियों के भीतर विविधता की जांच करने के लिए इससे संबंधित अध्ययन महत्वपूर्ण हैं। 

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