लॉकडाउन में कैसे बदला जानवरों का व्यवहार, पता लग रहे हैं रिसर्चर्स

कोरोनावायरस संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया के ज्यादातर देशों में लॉकडाउन किया गया, लेकिन इसका जानवरों पर क्या प्रभाव पड़ा, इसका पता लगाया जा रहा है

By Dayanidhi

On: Tuesday 23 June 2020
 
लॉकडाउन के दौरान दिल्ली की सड़कों पर गाड़ियों की बजाय इन जानवरों का राज था। फोटो: विकास चौधरी

शोधकर्ता बताते हैं कि कैसे कोरोनावायरस महामारी में लॉकडाउन के दौरान वन्यजीव शहरी वातावरण में, सड़कों तक बिना किसी डर के घूम रहे थे। वहीं कुछ जीवों के लिए इसने नई चुनौतियां भी पैदा की है। 

कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के लिए दुनिया भर के कई देशों ने लॉकडाउन लगाया। यह सबसे दुखद परिस्थितियां थी, जिसमें लोगों की गतिविधि पर विराम लग गया था। शोधकर्ताओं ने इस अवधि को 'एन्थ्रोपॉज' कहा है जिसका आशय है कि बढ़ती उम्र के साथ मानों काम करने की क्षमता कम हो गई हो। इस दौरान शहरी वातावरण में काफी बदलाव आया, प्रकृति बदली हुई प्रतीत हुई। 

महानगरीय क्षेत्रों में केवल सामान्य से अधिक जानवर देखे गए, बल्कि कुछ आश्चर्यचकित करने वाले भी थे, जिसमें भारत के शहरो में बाघ, तेंदुआ, नील गाय, मोर, जो जानवर कभी नहीं देखा गया वह भी सड़को पर दिखाई दिया था। विदेशों में प्यूमा को शहर सैंटियागो, चिली की सड़कों पर घूमते हुए देखा गया था।

लेकिन कई अन्य प्रजातियों के लिए इस महामारी ने नई चुनौतियां पैदा की हैं। उदाहरण के लिए, कुछ शहरों में रहने वाले जानवर, जैसे कि गूल, चूहे या बंदर, जिनको भोजन के लिए संघर्ष करते देखा गया, क्योंकि ये जानवर भोजन के लिए लोगों पर निर्भर रहते हैं। अधिक दूरस्थ क्षेत्रों में, कम मानवीय उपस्थिति के कारण लुप्तप्राय प्रजातियों, जैसे कि गैंडों या रैप्टर, के अवैध शिकार अथवा उत्पीड़न के खतरों की आशंका भी बढ़ी है।

इस संबंध में एक शोध नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ है।  

शोध में इस बात पर जोर दिया गया है कि कोविड-19 के कारण होने वाली अपार मानवीय त्रासदी और कठिनाई से निपटना समाज की प्राथमिकता होनी चाहिए। लेकिन हमें वास्तव में वैश्विक स्तर पर पहली बार पता चाला कि मानव गतिविधियां वन्य जीवन को किस हद तक प्रभावित करती है।

इस चुनौती को दूर करने के लिए, शोधकर्ताओं ने हाल ही में "कोविड-19 बायो-लॉगिंग इनिशिएटिव" की शुरुआत की। यह अंतर्राष्ट्रीय कंसोर्टियम कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान उसके पहले, और बाद में जानवरों के इधर-उधर घूमने, व्यवहार और तनाव के स्तर की जांच करेगा। पशुओं के एकत्र किए गए आंकड़े जिसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के साथ जोड़ा गया है  उसे 'बायो-लॉगर' कहा जाता है।

प्रमुख शोधकर्ता, प्रोफेसर क्रिश्चियन रटज, सेंट एंड्रयूज, ब्रिटेन के एक जीवविज्ञानी, और इंटरनेशनल बायो-लॉगिंग सोसाइटी के अध्यक्ष है, वे बताते हैं: दुनिया भर में जीवविज्ञानियों द्वारा छोटे ट्रैकिंग उपकरणों की मदद से जानवरों को ट्रैक किया जाता है। ये जैव -लॉगर्स जानवरों की गतिविधि और व्यवहार के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। जो अब हम सभी के लिए लाभदयाक है, इसे मानव और वन्यजीवों के आपसी समझ में सुधार लाने में उपयोग कर सकते हैं।

डॉ. फ्रांसेस्का काग्नेशेक कहते हैं कि हमारे हालिया आह्वान पर अंतरराष्ट्रीय शोध समुदाय ने सहयोग किया, विश्लेषण के लिए 200 से अधिक जीवों के डेटासेट की पेशकश की है। डॉ. काग्नेशेक इटली के ट्रेंटो में एडमंड मच फाउंडेशन के वरिष्ठ शोधकर्ता और यूरोमामल्स शोध नेटवर्क के प्रिंसिपल इंवेस्टिगेटर हैं।

वैज्ञानिकों को क्या सीखने की उम्मीद है? जर्मनी के रेडॉल्फज़ेल में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर की फेलो डॉ. मैथियास-क्लाउडियो लोरेटो बताते हैं कि हम जानवरों की गतिविधि की जांच किस तरह करेंगे। आधुनिक परिदृश्य में निर्मित संरचनाओं या मनुष्यों की उपस्थिति से जानवर किस तरह प्रभावित होते हैं, यह जानना एक बड़ी बात है।

जर्मनी के मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर के निदेशक प्रोफेसर मार्टिन विकेल्स्की के अनुसार, ये जानकारी मानव-वन्यजीव के बीच होने वाले संघर्ष को कम करने में मदद करेगी। कोई भी स्थायी लॉकडाउन में नहीं रह सकता है। लेकिन हमें पता चल सकता है कि हमारी जीवनशैली और परिवहन नेटवर्क में अपेक्षाकृत छोटे बदलाव संभावित रूप से वन्यजीव, पारिस्थितिक तंत्र और मनुष्यों सभी के लिए महत्वपूर्ण फायदे पहुंचा सकते हैं।

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