संसद में आज: 91.65 करोड़ रुपये है चीता पुनर्वास परियोजना की लागत

अब तक एफटीके के माध्यम से 167.20 लाख से अधिक पानी की गुणवत्ता नमूनों का परीक्षण किया जा चुका है

By Madhumita Paul, Dayanidhi

On: Monday 24 July 2023
 

चीतों के पुनर्वास को लेकर उठे एक प्रश्न के उत्तर में आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने सदन में बताया कि, भारत में चीता की शुरूआत के लिए कार्य योजना के अनुसार, पहले चरण (पांच वर्ष) के लिए, परियोजना की अनुमानित लागत 91.65 करोड़ रुपये है।

चौबे ने कहा, चीता को लाने की कार्य योजना के अनुसार, हर साल जानवरों की उपलब्धता और लाए गए चीतों की स्थिति के आधार पर, अगले पांच वर्षों के दौरान दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया या अन्य अफ्रीकी देशों से 12 से 14 चीतों को लाने का प्रस्ताव है।

अपशिष्ट प्रसंस्करण दरें

आज, आवास और शहरी मामलों के मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने सदन में उठे एक सवाल के जवाब में बताया कि आज तक, उत्पन्न कुल कचरे यानी 1.5 लाख मीट्रिक में से लगभग 76 फीसदी संसाधित किया जाता है।

पुरी ने कहा कि, भारत सरकार ने खुले में शौच से मुक्ति (ओडीएफ) और देश के शहरी क्षेत्रों में उत्पन्न नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (एमएसडब्ल्यू) के वैज्ञानिक प्रसंस्करण के उद्देश्य से दो अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत मिशन-शहरी (एसबीएम-यू) शुरू किया गया।

प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए, 100 फीसदी स्रोत को अलग-अलग करने, हर घर संग्रह और वैज्ञानिक लैंडफिल में सुरक्षित निपटान सहित कचरे के सभी हिस्सों  के वैज्ञानिक प्रबंधन के माध्यम से सभी शहरों के लिए कचरा मुक्त स्थिति हासिल करने की दृष्टि से पांच साल की अवधि के लिए एक अक्टूबर, 2021 को स्वच्छ भारत मिशन (एसबीएम-यू) 2.0 शुरू किया गया है। केंद्रीय मंत्री ने कहा, इसका उद्देश्य सभी विरासती डंपसाइटों का सुधार करना और उन्हें ग्रीन क्षेत्रों में बदलना भी है।

सार्वजनिक स्थानों पर पेयजल स्रोतों को प्रदूषण से बचाना

सदन में पूछे गए एक प्रश्न का उत्तर देते हुए जल शक्ति राज्य मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने कहा कि, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश से प्रत्येक गांव में पांच व्यक्तियों, विशेषकर महिलाओं की पहचान करने और उन्हें प्रशिक्षित करने का अनुरोध किया गया है। आशा कार्यकर्ता, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, बीडब्ल्यूएससी सदस्य, शिक्षक आदि ग्राम स्तर पर एफटीके, बैक्टीरियोलॉजिकल शीशियों का उपयोग करके जल गुणवत्ता परीक्षण करेंगे।

पटेल ने बताया कि, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को ग्राम स्तर पर पर्याप्त संख्या में एफटीके/बैक्टीरियोलॉजिकल शीशियां उपलब्ध कराने की भी सलाह दी गई है। जैसा कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा बताया गया गया है, 21.07.2023 तक, 22.42 लाख से अधिक महिलाओं को एफटीके का उपयोग करके जल गुणवत्ता परीक्षण के लिए प्रशिक्षित किया गया है। अब तक एफटीके के माध्यम से 167.20 लाख से अधिक नमूनों का परीक्षण किया जा चुका है।

पेट्रोल के साथ इथेनॉल का मिश्रण

पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय में राज्य मंत्री रामेश्वर तेली ने आज सदन में बताया कि, वर्तमान में, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम के तहत, अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इथेनॉल की उपलब्धता के अनुसार इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचा जा रहा है। चालू एथेनॉल आपूर्ति वर्ष (ईएसवाई) 2022-23 (दिसंबर 22 – अक्टूबर 23) में, इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल की अधिकतम बिक्री उत्तर प्रदेश में हुई है, इसके बाद महाराष्ट्र, तमिलनाडु, कर्नाटक और गुजरात का नंबर आता है।

ई - कचरा

सदन में एक प्रश्न के जवाब में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ई-कचरा प्रबंधन नियम, 2016 के तहत अनिवार्य रूप से उत्पादकों द्वारा प्रदान किए गए देशव्यापी बिक्री के आंकड़ों और अधिसूचित विद्युत और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (ईईई) के औसत जीवन के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर ई-कचरा उत्पादन का अनुमान लगाता है।

सीपीसीबी के अनुसार, वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष) 2020-21 में ई-अपशिष्ट (प्रबंधन) नियम, 2016 के तहत अधिसूचित ईईई के इक्कीस (21) प्रकारों से देश में उत्पन्न ई-कचरा और 2021-22 का अनुमान क्रमशः 13,46,496.31 टन और 16,01,155.36 टन था।

पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण

पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण को लेकर उठे एक प्रश्न के उत्तर में आज केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय में राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने सदन में बताया कि, प्रदूषण को रोकने और फसल अवशेषों के प्रबंधन के लिए आवश्यक मशीनरी पर सब्सिडी देने के लिए पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और एनसीटी दिल्ली की सरकारों के प्रयासों का समर्थन करने के लिए, फसल अवशेष प्रबंधन पर एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना 2018-19 से लागू की गई है।

इस योजना के तहत, किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनरी की खरीद के लिए 50 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है और कॉप सोसायटी को 80 प्रतिशत की दर से वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) की स्थापना के लिए सोसायटी, एफपीओ और पंचायतों को  2018-19 से 2022-23 की अवधि के दौरान, 3138.17 करोड़ रुपये जारी किए गए हैं (पंजाब - 1426.45 करोड़ रुपये, हरियाणा - 916.71 करोड़ रुपये, उत्तर प्रदेश - 713.67 करोड़ रुपये, एनसीटी दिल्ली - 6.05 करोड़ रुपये और आईसीएआर - 75.29 करोड़ रुपये)।

राज्यों ने हर किसानों को 2.40 लाख से अधिक मशीनें और इन चार राज्यों में 37000 से अधिक सीएचसी को वितरित की हैं, जिसमें 4500 से अधिक बेलर और रेक भी शामिल हैं जिनका उपयोग गांठों के रूप में पुआल के संग्रह के लिए किया जाता है।

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