दोहरी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं भारतीय स्टार कछुए, अध्ययन में खुलासा

कछुओं के अवैध व्यापार से बहुत बड़ा नुकसान हुआ है, अवैज्ञानिक तरीके से स्थानांतरण के कारण अलग-अलग आबादी के बीच अनुवांशिक मिश्रण हो रहा है

By Dayanidhi

On: Monday 23 January 2023
 
फोटो साभार : अंतरराष्ट्रीय पत्रिका एनिमल्स

दक्षिण एशिया में फैले भारतीय स्टार कछुओं (जियोचेलोन एलिगेंस) पर हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि बड़े पैमाने पर अवैध व्यापार के कारण प्रजातियों की आनुवंशिक विविधता के साथ-साथ इनके रहने की जगहों को भी बड़ा नुकसान हुआ है। शोधकर्ताओं ने अवैज्ञानिक तरीके से स्थानांतरण पर भी चिंता जताई है, जिसके कारण विभिन्न आबादी के बीच अनुवांशिक मिश्रण हुआ है। जो अनुवांशिक स्तर पर उपलब्ध आबादी को अलग करने में चुनौती पेश करता है।

अध्ययन में कहा गया है कि प्रजातियों को अपने रहने की जगहों के नष्ट होने के खतरे और दूसरी ओर अनुवांशिक विविधता के नुकसान से दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। प्रोफेसर शांतनु कुंडू ने कहा, हमारा अध्ययन फैले हुए इलाकों से निपटने के लिए उचित संरक्षण रणनीति की मांग करता है। साथ ही स्पष्ट रूप से वैज्ञानिक तरीके से प्रजनन को लागू करके हर एक या अलग-अलग वयस्क कालोनियों की गहन अनुवांशिक जांच की सिफारिश करता है। प्रोफेसर कुंडू, दक्षिण कोरिया में पुक्योंग नेशनल यूनिवर्सिटी के ह्यून-वू किम लैब के शोधकर्ता हैं।

डॉ. कुंडू ने कहा कि भारतीय स्टार कछुआ, जो लुप्तप्राय प्रजातियों में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर सम्मेलन (सीआईटीईएस) सूची के परिशिष्ट एक के तहत सूचीबद्ध है और प्रकृति के संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची में 'कमजोर' के रूप में वर्गीकृत है। यह प्रजाति न केवल उपमहाद्वीप में बल्कि पूरे दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में सबसे अधिक कारोबार की जाने वाली कछुओं की प्रजातियों में से एक है।

अध्ययनकर्ता तनॉय मुखर्जी जी ने बताया कि, स्टार कछुओं के वितरण मॉडलिंग ने प्रजातियों के अत्यधिक टूटे हुए घरों का स्पष्ट प्रमाण प्रदान किया है, जो शहरीकरण के बढ़ते स्तर और इसकी सीमा में कृषि प्रथाओं से काफी प्रभावित है। मुखर्जी, कोलकाता में भारतीय सांख्यिकी संस्थान के डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी-इंस्पायर फैकल्टी, लैंडस्केप इकोलॉजी एंड वाइल्डलाइफ साइंसेज लैब के शोधकर्ता हैं।

अध्ययन में कहा गया है कि भारतीय स्टार कछुओं की आईयूसीएन सीमा के भीतर का लगभग 10 फीसदी क्षेत्र रहने के लिए उपयुक्त है, हालांकि, यह इलाके मानवजनित कारणों से प्रभावित होते जा रहे हैं। गुजरात और राजस्थान राज्यों के भीतर के क्षेत्र, इसके बाद तमिलनाडु, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश, शहरीकरण और कृषि भूमि के तेजी से विकास के कारण रहने की जगहों के नष्ट होने से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

विशेषज्ञों ने बताया कि किसी विशेष प्रजाति के जीवित रहने के लिए आनुवंशिक विविधता महत्वपूर्ण है। भारत के स्टार कछुओं के मामले में, प्रजातियों की तीन प्रमुख आबादी हैं जिनमें भारत के पश्चिमी भाग और दक्षिणी भाग और श्रीलंका तथा प्रत्येक उप-आबादी में एक विशेष परिदृश्य में जीवित रहने के लिए इनके आनुवंशिक लक्षण शामिल हैं। उन्होंने कहा अगर जलवायु परिवर्तन के कारण केरल की आबादी खत्म हो जाती है तो हम इसे राजस्थान की आबादी से नहीं बदल सकते हैं।

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि अवैध व्यापार में जानवरों की अत्यधिक मांग होने के कारण, स्रोत से बहुत दूर प्रजातियों की बरामदगी होती है और अक्सर जब्त किए गए कछुओं को स्थानीय आबादी के साथ छोड़ दिया जाता है, जिससे आनुवंशिक मिश्रण होता है।

अध्ययन में कहा गया है कि जब्त किए गए जंगली जानवरों की अवैज्ञानिक तरीके से रिहाई और वर्षों से विभिन्न आबादी के बीच मिश्रण के कारण, भारतीय स्टार कछुओं ने आनुवंशिक विविधता खो दी है और इनकी जंगल में रहने वाली आबादी के खतरे में वृद्धि हो गई है। यह शोध, कछुओं के अलग-अलग कॉलोनियों की पहचान करने के लिए आनुवंशिक जांच की सिफारिश करता है।

वैज्ञानिक तरीके से प्रजनन के लिए जंगली या पाले जा रहे अधिकतम आनुवंशिक विविधता को संरक्षित करने के लिए, सजाति प्रजनन के अवसाद से बचने के लिए, गायब हो चुके को प्रजातियों को फिर से हासिल करने के लिए जंगली या बंदी नस्ल के सफल प्रजनन आगे बढ़ाना है। यह अध्ययन अंतरराष्ट्रीय पत्रिका एनिमल्स  में प्रकाशित किया गया है।

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