गर्भवती हथिनी की हत्या से वन्यजीव संरक्षण कानूनों पर उठते सवाल

वन्य जीव संरक्षण के लिए 5 अनुसूचियां बनाई गई हैं। इसमें विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीव शामिल हैं

On: Wednesday 10 June 2020
 

श्रीराम माहेश्वरी 
 
केरल के मल्लपुरम या पलक्कड़ में एक गर्भवती हथिनी की हत्या ने एक बार फिर वन्यजीवों के प्रति इंसानों के रवैये के साथ-साथ देश में वन्य जीव संरक्षण कानूनों को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं।
 
स्वतंत्र भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था के हम अंग हैं। हर नागरिक को पता है कि उसके क्या कर्तव्य और दायित्व हैं। इसी तरह प्रकृति द्वारा जल-जीवों को जल में, पशु पक्षियों, सरीसृप, वन्य प्राणियों को वनों और प्राकृतिक आवासों में रहने, स्वच्छंद विचरण करने और जीने के अधिकार मिले हैं। भारत के संविधान के अंतर्गत केंद्र और राज्य सरकारें इन प्राणियों की रक्षा के दायित्वों से प्रतिबद्ध हैं, परंतु फिर भी आए दिन सरेआम वन्य प्राणियों की हत्याएं हो रही हैं।
 
थाना कोर्ट कचहरी में किस तरह कार्रवाई होती है। दोषी शिकारी अपने रसूख के दम पर इस तरह मूंछों पर ताव देते हुए जमानत पर छूट जाते हैं और  मौका मिलने पर एक दिन  वकीलों के माध्यम से वे  केस को भी कमजोर करवा देते हैं। यहां सवाल यह है कि ऐसा कब तक चलेगा। केरल के जिन स्थानों में हथिनी कि यह हत्या हुई है, बताया जाता है कि उस क्षेत्र में पहले भी सैकड़ों हाथी मारे जा चुके हैं। 
   
वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए बने कानूनों की कमियों की समीक्षा के स्वर भी गूंजने लगे हैं। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की जाने वाली कार्रवाई और वन विभाग, जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन की अकर्मण्यता पर भी चर्चा हो रही है। कुछ साल पहले राजस्थान के जोधपुर में काले हिरण के शिकार की घटना प्रकाश में आई थी। कुछ अभिनेता और अभिनेत्रियों पर कोर्ट में केस चला। खूब चर्चा हुई। राजस्थान के वकीलों ने पूरी कोशिश की कि दोषियों को सजा हो जाए। साक्ष्य और गवाह भी कोर्ट में प्रस्तुत हुए, परंतु बाद में क्या हुआ, यह जगजाहिर है।
  
यह तय है कि कानून की कमियों का लाभ उठाकर यदि दोषी बचते रहेंगे तो अपराधियों के मन में भय नहीं रहेगा और संविधान में उल्लेखित वन्य प्राणियों के संरक्षण की धाराएं कानून की किताबों में यूं ही सुशोभित रहेंगी। जिस तरह सरकार ने आतंकवाद, नक्सलवाद और देशद्रोह करने वाले अपराधियों को सजा देने के लिए संविधान में कड़े  संशोधन किए हैं, उसी तरह वन्य प्राणियों और पशु-पक्षियों की हिंसा के लिए भी कानूनों में बदलाव किया जाना चाहिए। आज समय की यही आवश्यकता है।
 
क्या कहता है कानून
आईपीसी की धारा 428 और 429 के तहत किसी भी जानवर या विचरण करने वाले जानवर को मारना कानूनी और दंडनीय अपराध है। धारा 38 जे वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 जानवरों को चिढ़ाना खिलाना, परेशान करना, चिड़ियाघर में कचरा फैलाने की 3 साल की सजा और ₹25000 का जुर्माना है। नियम 3 में पशु बलि पर रोक है। भालू, बंदर, बाघों, पैंथर, शेरों और बैलों को प्रशिक्षित करने सर्कस या सड़कों पर इस्तेमाल करने की सख्त मनाही है । धारा 222 पीसीए अधिनियम 1960 में इसका विवरण उल्लिखित है। इसी तरह पशु की लड़ाई में शामिल होना एक संगेय अपराध है। सौंदर्य प्रसाधन सामग्री का जानवरों पर परीक्षण करना भी प्रतिबंधित है। 
    
वन्य जीव संरक्षण के लिए 5 अनुसूचियां बनाई गई हैं। इसमें विभिन्न प्रजातियों के वन्य जीव शामिल हैं। हाथी अनुसूची 1 में है, जिसकी सुरक्षा और संरक्षण प्राथमिकता से किए जाने का प्रावधान है। अनुसूची 1 और 2 में उल्लिखित जानवरों को मारने पर 3 से 7 साल तक सजा और 25 लाख तक जुर्माने का प्रावधान है। नया प्रस्ताव भी विचाराधीन है, जिसमें 7 साल की सजा और 50 लाख के जुर्माने का प्रावधान किया गया है ।
 
भारत में हाथी परियोजना
सिंहभूमि झारखंड में 7 दिसंबर 1982 को हाथियों के पुनर्वास और संरक्षण के लिए परियोजना की शुरुआत हुई । इसके अंतर्गत हाथियों की वृद्धि करने और उनकी गणना हर 5 साल में करने की योजना बनाई गई । परियोजना के उद्देश्य हैं- मानव और हाथियों के बीच संघर्ष को रोकना, हाथियों के विचरण का गलियारा बचाना तथा हाथियों का संरक्षण करना । गलियारा क्षेत्र उसे कहते हैं, जहां हाथी एक स्थान से दूसरे स्थानों तक निर्बाध भ्रमण करते हैं । धरती पर हाथी सबसे बड़ा जीव है, इसलिए इसके चरने और भ्रमण के लिए अधिक भूमि की आवश्यकता होती है । 
 
संरक्षण हेतु संस्थागत स्थिति
भारत में 30 हाथी रिजर्व क्षेत्र बनाए गए हैं । 13 राज्यों में 32 हाथी रेंज बनाए गए हैं । भारत सरकार द्वारा 1982 में भारतीय वन्य जीव संस्थान की स्थापना एक स्वशासी संगठन के रूप में की गई  वन्य जीवों के संरक्षण के लिए वर्ष 1917 से 1931 तक 15 वर्षीय योजना भी क्रियान्वित की जा रही है । वर्ष दो हजार  ग्यारह से हाथी मेरे साथी योजना भी शुरू हुई है। हाथियों के संरक्षण के लिए एक साइट्स संस्था भी कार्यरत है।
 
एशिया और भारत में हाथियों की स्थिति
एशिया के 13 देशों में हाथी पाए जाते हैं। इसमें भारत भी शामिल है। भारत में हाथी पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़ तथा उड़ीसा सहित 16 राज्यों में पाए जाते हैं। उत्तर भारत में हाथियों की संख्या ना के बराबर है । झारखंड और तमिलनाडु सरकार ने हाथी को राज्य पशु घोषित किया है।  देखा जाए तो तमिलनाडु और कर्नाटक में सबसे अधिक हाथी पाए जाते हैं। असम राज्य में हाथियों को सबसे ज्यादा बंधक बनाकर रखा जाता है या पाला जाता है । हालांकि ऐसा करना कानूनन अपराध है, परंतु फिर भी यह प्रक्रिया वर्षों से निर्बाध रूप से चल रही है।
 
हाथी और वन्य जीवों का शिकार
भारत में पिछले कई सालों में सैकड़ों हाथी करंट से मारे जा चुके हैं। वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अधीन वन विभाग कार्यरत है । वन्य प्राणियों की सुरक्षा का दायित्व इसी विभाग के अधिकारी और कर्मचारियों पर है। भारत में पिछले कई दशकों से वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाएं हो रही हैं। वन्य जीवों के अंगों का व्यापार तस्करी के जरिए कई राज्यों में होता है। भारत में नर हाथी के दांत काफी महंगे बिकते हैं। खाल और अन्य अंग भी बेचे जाते हैं, इसलिए जंगलों में शिकारी सक्रिय रहते हैं। 
 
केरल में पिछले दिनों हुई गर्भवती हथिनी  की हत्या से दुनियाभर में भारत के वन्य संरक्षण के उपायों पर सवाल उठने लगे हैं। मीडिया में आए दिन वन्य प्राणियों के शिकार की घटनाएं प्रकाश में आती हैं । इससे स्पष्ट है कि शिकारियों के हौसले  बुलंद हैं और कोई अज्ञात संगठित गिरोह उनका संरक्षण करता है, तभी तो इनके खिलाफ होने वाले प्रकरण अदालतों में कमजोर पड़ जाते हैं और अपराधी बच निकलते हैं। हथिनी की हत्या से देश की जनता में व्यवस्था के प्रति भी रोष व्याप्त है । हाथी सहित अन्य वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए ठोस और सख्त कार्रवाई करना  जरूरी है ।
        
लेखक 'पर्यावरण और जैव विविधता' पुस्तक के लेखक एवं पर्यावरणविद् हैं 

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