हर पंचायत में थी एक उन्नत ग्राम बाजार बनाने की सिफारिश, तीन साल बीत रहे अभी सर्वे जारी

गांव की साप्ताहिक बाजारों को उन्नत वैकल्पिक बाजार बनाने के काम पर अभी तक कुछ भी ठोस नहीं हो पाया है।  

By Vivek Mishra

On: Thursday 01 October 2020
 

1970 के राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों को पांच दशक बीत चुके हैं और किसान अब भी अपने उत्पादों के उचित और लाभकारी मूल्यों से दूर है। 2018 में किसानों का आय डबल करने का सुझाव देने वाली दलवई समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश का 40 फीसदी सरप्लस अनाज पैदा करने वाले 85 फीसदी छोटे और सीमांत किसान अपनी उपज का लागत नहीं निकाल पाते हैं। अनाज और फल मंडियों से किसानों की दूरी, परिवहन व्यवस्था का अभाव और बिचौलियों के भंवर में फंसे किसान अपने गांव की दहलीज पर लगने वाले दुनिया के सबसे लोकतांत्रिक साप्ताहिक बाजारों का लाभ नहीं उठा सके हैं।

सरकार ने वित्त वर्ष 2018-19 में कुल 22 हजार ग्रामीण हाट में से 4600 हाट बाजारों को विकसित करने व ई-नाम जैसे प्लेटफॉर्म से जोड़ने का ऐलान किया था लेकिन सरकार के दावे के मुताबिक 4600 में से अभी तक महज एक फीसदी ग्रामीण बाजार पर ही काम हो पाया है। जबकि कुल 22 हजार ग्रामीण हाट में उसकी विशेषता, उपयोगिता और जरूरत को ध्यान में रखने वाली प्रश्नावली के साथ  महज 11 हजार ग्रामीण हाट का ही सर्वे किया जा सका है। 

17 वीं लोकसभा (2019-2020) कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सरकार की ओर से 6 लाख गांवों में महज 4600 ग्रामीण हाट को विकसित करने की योजना बेहद कम है। कम से कम एक पंचायत में एक साप्ताहिक ग्रामीण हाट विकसित होना चाहिए। मंडी के बजाए साप्ताहिक ग्रामीण हाट किसानों के लिए बेहतर वैकल्पिक माध्यम बन सकते हैं। इसलिए इन ग्रामीण हाट बाजारों में भंडारण, शौचालय और अन्य सुविधाएं भी की जानी चाहिए। 

सरकार ने 17 वीं लोकसभा की केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति को अपने जवाब में बताया है कि डीएमआई सभी राज्यों में सर्वे कर रहा है। ग्रामीण हाट की संरचना, सुविधाओं और व्यवस्थाओं की जमीनी जानकारी जुटाई जा रही है। अब तक 11,000 ग्रामीण हाट की पहचान की गई है। इसके परिणाम केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय को दिए जा रहे हैं ताकि वह एजीएनआरईजीएस के तहत ग्रामीण हाट की आधारभूत संरचना को विकसित करने के लिए मदद करे। इसके अलावा सर्वे का इस्तेमाल एग्री मार्केट इंफ्रास्ट्रक्चर फंड (एएमआईएफ) विकसित करने के लिए भी किया जा रहा है। इसकी मंजूरी मिलते ही इसे बाटा जाएगा। साथ ही एक करोड़ रुपये डीएमआई को सर्वे के लिए दिए गए हैं।

केंद्र सरकार ने 2018-19 के बजट में 22000 ग्रामीण कृषि मंडी (ग्राम्‍स) और 585 कृषि उपज मंडी समितियों (एपीएमसी) में कृषि विपणन अवसंरचना के विकास और उन्नयन के लिए 2000 करोड़ रुपये के कार्पस के साथ कृषि-मंडी अवसरंचना कोष की स्थापना करने की घोषणा की थी। साथ ही कहा था कि चरण बद्ध तरीके से वर्षवार 22000 ग्राम्य हाटों को उन्नत कृषि मंडी के तौर पर विकसित किया जाएगा, ताकि किसानों की आय को दोगुना करने में मदद मिलेगी। हालांकि दो वर्षो बीत चुके हैं और अब तक सिर्फ 476 कृषि मंडियों  को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून योजना के तहत अपग्रेड करने का दावा किया गया है

नाबार्ड के वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताया कि ग्रामीण हाट को अपग्रेड करने के साथ ही कृषि मंडी को फॉर्मर्स प्रोड्यूसर ऑर्गेनाइजेशन (एफपीओ) और ऑनलाइन ई-नाम से जोड़ने की कवायद को लेकर गाइडलाइन बनाने पर काम चल रहा है। यदि सरकार कोई नीतिगत बदलाव नहीं लेती है तो यह प्रयास किए जाएंगे। क्योंकि राज्य और केंद्र के बीच अभी कई पेचीदगी हैं। इसलिए अभी तक कोई नीतिगत फैसला नहीं लिया जा सका है। 

राज्य प्रस्ताव के जरिए मांगेगे तो केंद्र देगा फंड 

सरकार ने ग्रामीण कृषि मंडियों और कृषि उपज बाजार समिति (एपीएमसी) बाजारों में कृषि विपणन बुनियादी ढांचे के विकास और उन्नयन के लिए राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) के साथ 2000 करोड़ रुपये के कार्पस राशि से कृषि-मंडी अवसंरचना कोष (एएमआईएफ) को मंजूरी दी है और राज्यों/संघ राज्‍य  क्षेत्रों (यूटी) को योजना के दिशानिर्देशों को परिचालित किया है। हालांकि यह राज्यों/संघ राज्‍य  क्षेत्रों की ओर से एक मांग संचालित योजना है, इसलिए निधि का कोई राज्य-वार और वर्ष-वार आवंटन नहीं होता है। भारत सरकार ने राज्यों/संघ राज्‍य क्षेत्रों से एएमआईएफ के तहत सहायता प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव देने को कहा है। 

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति ने “कृषि बाजार की भूमिका और साप्ताहिक ग्रामीण हाट” की सिफारिश व कार्रवाई की हालिया रिपोर्ट में अपनी सिफारिश में कहा था कि समिति चाहती है कि केंद्र राज्य सरकारों से बातचीत करके ग्रामीण हाट को एपीएमसी एक्ट के दायरे से बाहर रखे। स्थायी समिति ने इस बात पर हैरानी भी जताई थी कि ग्रामीण हाटों के निंयत्रण, प्रबंधन और सुविधाओं आदि के बारे में कोई केंद्रीय और राज्य स्तरीय एजेंसी सूचना या जानकारी नहीं रखती हैं।

वहीं, बाद में राज्यों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति को बताया गया था कि 22941 एग्रीकल्चर मार्केट हैं जो कि एपीएमसी, पंचायती राज व अन्य एजेंसियों के अधीन हैं। वहीं, इस सूचना को एग्रीकल्चर, को-ऑपरेशन एंड फार्मर्स वेलफेयर की प्रशासनिक ईकाई डॉयरेक्टोरेट ऑफ मार्केटिंग इन्सपेक्शन (डीएमआई) ने आधा-अधूरा बताते हुए कहा था कि ग्रामीण हाट का जमीनी सर्वे जारी है। हालांकि हाट को लेकर पहले नियमित सूचनाओं को जुटाने में ध्यान नहीं रखा गया।

हाट दुनिया के सबसे लोकतांत्रिक बाजार 

देश के छह लाख गांवों में छोटे उत्पादक हाट बाजारों में एक वर्ष में 25 लाख बार अपनी दुकाने लगाते हैं।  हाट स्थानीय पारिस्थितिकी पर टिकती है और सीजनल उत्पादों की खरीद-फरोख्त होती है। हाट को चलाने के लिए कोई संस्थागत तंत्र नहीं है सिर्फ खरीदने और बेचने वाले वहां जुटते हैं। सबसे मुफीद बात यह है कि यह सबसे छोटे उत्पादकों के लिए भी है। यदि किचन गार्डेन में भी सब्जियां उगाई हैं और उसे कोई बेचना चाहता है तो वह गांवों के इन हाट बाजारों में बेच सकता है। निजीकरण अपने चरम पर है, गांव के बाजार भी अब इससे अछूते नहीं है। लोग राशन की दुकानों की जगह तय कर रहे हैं लेकिन हाट बहुउद्देशीय मकसद वाली खरीदारी का अनुभव देता है और सफलतापूर्वक निजीकरण के खतरे से लड़ता है। यह एक ऐसी अवधारणा पर बसा बाजार है जो अवसरों में काफी एकसमान है।  दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र से यह खुदरा लोकतंत्र काफी आगे है। यह दुर्भाग्यपूर्ण हैे कि हाट को उतना महत्व नहीं मिला जो सरकार और नीतियों का ध्यान खींच सके। यदि ऐसा होता है तो छोटे और सीमांत किसानों को भी ग्रामीण हाट नया भविष्य दिखा पाएंगे। 

 

नीचे तस्वीर में : देश में अब तक मनरेगा के तहत 476 हाट बाजारों को किया गया अपग्रेड ः स्रोत ः  कृषि सहकारिता एवं कल्याण विभाग का 20 मार्च, 2020 में दिया गया राज्यसभा को जवाब 

photo : vivek mishra

 

 

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