अतिशय मौसम की घटनाओं ने भारत को महंगाई के इस दौर तक पहुंचाया

आने वाले सालों में खाने-पीने की चीजें और महंगी हो सकती हैं

By Richard Mahapatra

On: Thursday 13 February 2020
 
फोटो: विकास चौधरी

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक खाद्य पदार्थों विशेष रूप से सब्जियों की बढ़ती कीमतों की वजह से जनवरी 2020 में खुदरा मुद्रास्फीति 68 महीने के उच्चतम 7.59 प्रतिशत पर पहुंच गई है। 12 फरवरी को जारी इन आंकड़ों की वजह से बढ़ती महंगाई दर ने सबसे अधिक सुर्खियां बटोरीं, लेकिन खाद्य कीमतों में लगातार वृद्धि के पीछे के कारणों की जानकारी जनता को नहीं दी गई। अतिशय मौसम की घटनाओं की वजह से फसल को नुकसान हुआ है और इससे सब्जियों की आपूर्ति उस समय प्रभावित हुई है, जिस समय बाजार में बड़ी तादात में सब्जियां आती हैं।

साल-दर-साल की तुलना के आधार पर देखा जाए तो जनवरी 2019 के मुकाबले सब्जियों की कीमतों में 50.19 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इस अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में सब्जी की कीमतों में 45.56 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि शहरी क्षेत्रों में 59.31 फीसदी वृद्धि हुई है।

उपभोग की वस्तुओं की छह श्रेणियों के आधार पर समग्र मुद्रास्फीति का आंकड़ा निकलता है। इन छह श्रेणियों में से सबसे अधिक मुद्रास्फीति दर (महंगाई दर) खाने-पीने की चीजों की श्रेणी में वृदि्ध हुई।  

बेमौसम बारिश और मौसम की अन्य अतिशय घटनाओं की वजह से सामान्य फसल चक्र और फसल की पैदावार प्रभावित हुई। पिछले साल मानसून के आने के बाद से लगभग 12 राज्यों में अक्टूबर-दिसंबर के शीतकालीन मानसून चक्र में होने वाली बारिश को लंबे समय तक रिकॉर्ड किया गया।  

गर्मियों में मानसून की देरी की वजह से बुआई और कटाई देर से हुई। इससे यह उम्मीद भी जगी कि देर से आए मानसून की वजह से नमी का स्तर बढ़ेगा, जिससे रबी की पैदावार अच्छी होगी, लेकिन सब्जियों की फसलों के लिए मुख्य मौसम माने जाने वाले सर्दियों के मानसून के दौरान देश भर से असामान्य रूप से भारी वर्षा की खबरें आई, इससे खड़ी फसलों को नुकसान हुआ।

ओडिशा के सुबरनपुर जिले के मातुपाली गांव के साप्ताहिक बाजार में सवाल पूछा जाता है कि सब्जियों की बिक्री क्यों नहीं होती है? इस गांव की तरह राज्य के लगभग हर बाजार में यह देखा जा रहा है कि सब्जी की कीमतें असामान्य रूप से बढ़ी हुई हैं।

आमतौर पर, सर्दियों खासकर फरवरी के आसपास मौसमी सब्जियों के भाव जैसे फूलगोभी और टमाटर एक से दो रुपये प्रति किलो तक पहुंच जाते हैं। मतुपाली बाजार में ये सब्जियां 10 रुपए किलो बिक रही थी। फूलगोभी का 10  रुपए किलो और टमाटर का भाव 20 रुपए किलो था।

एक विशिष्ट साप्ताहिक ग्रामीण बाजार आमतौर पर स्थानीय छोटे उत्पादकों  व किसानों के लिए मुख्य बाजार होता है और उनके पास सब्जियों के इस "मूल्य वृद्धि" के लिए एक स्पष्टीकरण है। पिछले जून-सितंबर में मानसून के बाद से बारिश जारी है। इससे बुआई और कटाई में देरी हुई है। फरवरी तक बारिश जारी रही, कई खड़ी सब्जियों की फसलें खराब हो गईं। उनकी सामान्य फसल कम हुई है। यहां तक ​​कि धान जैसी ग्रीष्मकालीन खाद्यान्न फसलों की कटाई जनवरी के अंत तक नहीं की गई है। यानी कि कुल मिलाकर देखा जाए तो सब्जी की फसल में पहले देरी हुई और बाद में लगातार बारिश से नुकसान हुआ।

भले ही सब्जी के खुदरा मूल्य में वृद्धि से किसानों को कुछ फायदा हुआ, लेकिन उनके कुल उत्पादन में कमी आई  है।

 अनिश्चित मानसून और अत्यधिक बारिश के दिनों ने पिछले मानसून के बाद से खाद्य मुद्रास्फीति को पहले ही उच्च कर दिया है। दिसंबर, 2019 में ही उपभोक्ता खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति छह साल के उच्च स्तर (14.12 प्रतिशत) पर पहुंच गई थी। अतिशय मौसम की घटनाओं  की वजह से खाद्य मूल्य पर क्या असर पड़ता है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि अगस्त 2019 में मुद्रास्फीति 2.99 प्रतिशत थी, उसके बाद से तेजी से बढ़ रही है। सितंबर 2019 में इसमें 5.11 फीसदी की वृद्धि हुई और अगले महीने में यह 7.89 फीसदी तक पहुंच गई। नवंबर 2019 में मुद्रास्फीति दिसंबर, 2013 के बाद पहली बार दोहरे अंक 10.01 प्रतिशत पर पहुंच गई।

2014 में जिस तरह से महंगाई एक भावनात्मक राजनीतिक एजेंडा बनी थी, भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा था, "खाद्य कीमतों में वृद्धि के लिए काफी हद तक सूखा या बाढ़ कारण बनता है”। 1956 और 2010 के बीच नौ बार महंगाई दर दोहरे अंकों तक पहुंची। इनमें से 77 फीसदी कारण मौसम से संबंधित रहे, जैसे कि सूखा या बाढ़।

गैर-लाभकारी संस्था ऑक्सफैम ने हाल ही में मूल्य वृद्धि पर अतिशय मौसम की घटनाओं के प्रभावों का आकलन किया। इसके अनुसार, "2010 की रुझान कीमतों (या 2030 तक) की तुलना में अगले 20 वर्षों में मक्का जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों की कीमतों में औसतन दोगुना से अधिक वृद्धि हो गई है। इसकी बड़ी वजह तापमान में वृद्धि या अत्याधिक बारिश या बारिश के पैटर्न में बदलाव साबित होंगे।  

इसमें एक और डरावना पूर्वानुमान है, जो भारत के लिए प्रासंगिक है। इसमें कहा गया है कि 2030 तक कीमत दोगुनी होने के अलावा एक या एक से अधिक अतिशय मौसम की घटनाएं होंगी, जिससे खाद्य मूल्य में वृद्धि दो दशक से अधिक हो सकती है।

अगस्त-दिसंबर 2019 के दौरान भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतों में हुई वृद्धि इसका एक बड़ा उदाहरण है, जब बेमौसमी और अत्याधिक बारिश की वजह से फसल चक्र बाधित हुआ और खड़ी फसलों को नुकसान पहुंचा।

ऑक्सफैम के अनुसार, अतिशय मौसम की घटनाओं के कारण 2030 तक साफ किए हुए चावल की कीमतों में 107 प्रतिशत की वृद्धि होगी। ऑक्सफैम मॉडल का अनुमान है कि भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में घटिया फसल का उत्पादन बढ़ेगा और साफ चावल के वैश्विक निर्यात मूल्य में 25 फीसदी तक की वृद्धि होगी।

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