बढ़ती गर्मी के कारण अगले 23 वर्षों में खतरे की जद में होगा 71 फीसदी कृषि क्षेत्र

इस मामले में भारत पहले ही बॉयलिंग प्वाइंट पर है। जहां बढ़ती गर्मी का कहर किसानों को दोहरी चोट पहुंचा रहा है, जो उनकी उपज के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी खतरा पैदा कर रहा है

By Lalit Maurya

On: Friday 09 September 2022
 

क्या आप जानते हैं कि बढ़ती गर्मी के कारण अगले 23 वर्षों में दुनिया के 71 फीसदी कृषि क्षेत्र खतरे की जद में होंगें, जिनमें भारत भी शामिल है। इस बारे में वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट द्वारा प्रकाशित नई रिसर्च से पता चला है कि दुनिया में मौजूदा खाद्य उत्पादक क्षेत्रों का लगभग तीन चौथाई हिस्सा 2045 तक गर्मी के तनाव के कारण अत्यधिक जोखिम का सामना करने को मजबूर होगा।

पता चला है कि वैश्विक स्तर पर बढ़ती गर्मी खेतों में काम करने वाले किसानों और मजदूरों के स्वास्थ्य के लिए बढ़ा खतरा बन जाएगी। साथ ही इसका असर दुनिया की प्रमुख फसलों की पैदावार पर भी पड़ेगा। देखा जाए तो जलवायु में आते बदलावों के चलते गर्मी, लू, बाढ़, सूखा और तूफान जैसे खतरे पहले ही वैश्विक आबादी को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रहे हैं। इस साल भारत से लेकर यूरोप तक में लू का कहर देखा गया, जिसने बड़े पैमाने पर कृषि उत्पादन को भी प्रभावित किया है।

रिसर्च से पता चला है कि हमारी इसी पीढ़ी में है बढ़ता तापमान और आद्रता लोगों के लिए बाहर खुले में काम करना और दुश्वार कर देंगी। यहां तक की यह परिस्थितियां लोगों के जीवन के लिए बी खतरा पैदा कर देंगी। इसका सीधा असर न केवल किसानों के स्वास्थ्य पर बल्कि साथ ही भारत, चीन , अमेरिका और ब्राजील जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के खाद्य उत्पादन पर भी पड़ेगा।

इस बारे में वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट द्वारा उद्योंगो पर बढ़ते जोखिम को लेकर जारी नए डेटासेट से पता चला है कि गर्मी के तनाव के कारण बढ़ते जोखिम के मामले में कृषि वर्तमान और भविष्य दोनों ही परिस्थितियों में सबसे ऊपर है। इस डेटासेट में 198 देशों में चल रहे 80 उद्योगों पर मंडराते 51 अलग-अलग तरह के जोखिमों को मापा गया है।

चावल, कोको और टमाटर जैसी फसलें होंगी सबसे ज्यादा प्रभावित

आंकड़ों से पता चला है बढ़ती गर्मी पहले ही 20 देशों में कृषि के लिए अत्यधिक जोखिम पैदा कर रही है। वहीं जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे है उससे भविष्य के तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 64 पर पहुंच जाएगा।

अनुमान है कि यह उन देशों को प्रभावित करेगा, जिनकी वर्तमान में वैश्विक खाद्य उत्पादन में हिस्सेदार 71 फीसदी है। इतना ही नहीं जानकारी मिली है कि इस बढ़ती गर्मी के कारण चावल, कोको और टमाटर जैसी फसलें सबसे बुरी तरह प्रभावित हो सकती हैं।

इस बारे में वेरिस्क मैपलक्रॉफ्ट से जुड़े जलवायु विज्ञानी विल निकोल्स का कहना है कि यदि उत्सर्जन और बढ़ते तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो विश्व की खाद्य आपूर्ति श्रंखला में पड़ता भीषण गर्मी का तनाव आने वाले वक्त में सामान्य बात हो जाएंगें। इसकी वजह से जहां पैदावार में गिरावट आएगी। वहीं साथ ही खाद्य पदार्थों की कीमतें भी बढ़ेंगी। इसका असर कृषि पर निर्भर देशो पर भी पड़ेगा, जबकि साथ ही भुखमरी की स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर हो जाएगी।

पहले ही बॉयलिंग पॉइंट पर है भारत

यदि भारत की बात करें तो देश में बढ़ती गर्मी का कहर किसानों को दोहरी चोट पहुंचा रहा है। एक तरफ इसकी वजह से जहां फसलों को नुकसान हो रहा है, जो किसानों की आय में गिरावट का कारण बन रहा है वहीं दूसरी तरफ इसकी वजह से किसानों के स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ रहा है। इसकी वजह से कृषि में काम कर रहे मजदूरों में थकन, मितली, चक्कर और हीट स्ट्रोक के मामले बढ़ रहे हैं।

यह प्रभाव भारत जैसे उन देशों में ज्यादा नजर आ रहे है जहां कृषि मजदूरों पर बहुत ज्यादा निर्भर है। यदि 2020 के आंकड़ों को देखें तो वैश्विक खाद्य उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी करीब 12 फीसदी है। वहीं गर्मी के कारण कृषि पर पड़ते अत्यधिक तनाव वाले देशों के मामले में भारत केवल इरिट्रिया, जिबूती, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, दक्षिण सूडान और ओमान से पीछे है।

देखा जाए तो यह जोखिम पहले ही वैश्विक खाद्य उत्पादन को प्रभावित कर रहा है। ऐसा ही एक मामला मई 2022 में सामने आया था जब लू ने भारत की फसलों को झुलसा दिया था, जिसकी वजह से भारत को गेहूं निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाना पड़ा था। यह निर्णय अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी एक बहुत बड़ा झटका था, क्योंकि उस समय दुनिया रूस-यूक्रेन के बीच चलते टकराव में गेहूं के लिए भारत से आस लगाए बैठी थी।

हाल ही में  काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। शोध के मुताबिक देश का करीब 68 फीसदी हिस्सा सूखे की जद में है। इसके चलते हर साल करीब 14 करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं।

वहीं इस मामले में अन्य देशों की बात करें तो इस गर्मी का कहर झेलते 20 सबसे प्रभावित देशों में से 11 उप-सहारा अफ्रीकी देश हैं। जहां कृषि भीषण गर्मी के कारण पैदा हो रहे तनाव का सामना कर रही है। इन देशों में सूडान जोकि दुनिया में तिल का सबसे बड़ा उत्पादक देश है और बुर्किना फासो शामिल हैं जोकि शीया का सबसे बड़ा उत्पादक है। वहीं प्रमुख चावल उत्पादक देश पाकिस्तान और वियतनाम भी इस लिस्ट में शामिल हैं।

वहीं यदि 2045 की बात करें तो भारत, ब्राजील, नाइजीरिया और कम्बोडिया देशों में कृषि पर मंडराते संकट के बादल कहीं ज्यादा गहरा जाएंगें। पता चला है कि कंबोडिया, जोकि एक प्रमुख चावल निर्यातक देश है भविष्य में कृषि के मामले में दुनिया का 7वां सबसे अधिक जोखिम वाला देश बन जाएगा, जो अभी 36 वें पायदान पर है। इसी तरह थाईलैंड 11वें और वियतनाम 16वें पायदान पर होगा। इसी तरह ब्राजील जोकि दुनिया का तीसरा प्रमुख कृषि उत्पादक देश है वो भी गंभीर खतरे में पड़े देशों की लिस्ट में शामिल हो जाएगा।

हाल ही में जर्नल साइंस एडवांसेज में छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि यदि जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए सही समय पर कदम न उठाए गए तो सदी के अंत तक करीब 60 फीसदी से अधिक गेहूं उत्पादक क्षेत्र सूखे की चपेट में होंगे। गौरतलब है कि आज पहले ही दुनिया के करीब 15 फीसदी गेहूं उत्पादक क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं।

देखा जाए तो एक तरफ जहां जलवायु में आता बदलाव कृषि उत्पादकता को प्रभावित कर रहा है वहीं दूसरी तरफ खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि बढ़ती वैश्विक आबादी के चलते 2050 तक अनाजों की वार्षिक मांग लगभग 43 फीसदी बढ़ जाएगी। ऐसे में बढ़ती आबादी का पेट कैसे भरेगा यह एक बड़ा सवाल है।

ऐसे में यह जरुरी है कि देशों को खाद्य उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ, किसानों के स्वास्थ्य की भी चिंता करनी चाहिए। साथ ही ऐसी परिस्थितियां न पैदा हों इसके लिए जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए जरुरी उपाय किए जाने चाहिए।

इसमें जलवायु अनुकूलन और क्लाइमेट स्मार्ट एग्रीकल्चर से लेकर उत्सर्जन को कम करने और अक्षय ऊर्जा को अपनाने जैसे उपाय शामिल हैं। देखा जाए तो आज दुनिया जलवायु परिवर्तन के मामले में करो या मरो की स्थिति में है ऐसे में इससे पहले की बहुत देर हो जाए सरकारों को इससे निपटने के लिए जल्द से जल्द कठोर फैसले लेने होंगें।

Subscribe to our daily hindi newsletter