हल से जुताई की ओर लौटते राजस्थान के किसान

कई साल से ट्रैक्टर से जुताई कर रहे राजस्थान के किसानों ने अब हल से खेती करनी शुरू कर दी है

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 04 August 2020
 
राजस्थान के भीम गांव में हल से जुताई करता एक मजदूर। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा

अब इक्कीसवीं सदी में बैलों और हल से जुताई गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं, लेकिन राजस्थान के दो जिलों के लगभग दो दर्जन से अधिक गांवों में ग्रामीण अपने खेतों को जोतने के लिए हल का प्रयोग कर रहे हैं। यह सिलसिला पिछले दो साल से चल रहा है। हालांकि इसके पहले वे भी ट्रैक्टरों के माध्यम से ही अपने खेतों की जुताई करते आए थे। 

इसके पीछे प्रमुख कारण है कि इस समय मक्के की बुवाई चल रही है और स्थानीय लोगों ने यह महसूस किया कि ट्रैक्टर से जुताई के मुकाबले जब हल से जुताई होती है तो मक्के का उत्पादन अधिक होता है। इसलिए वे या तो खुद ही बैलों को जोत कर जुताई रहे हैं या मजदूरों से हल से जुताई करवा रहे हैं।

हालांकि अब तक तो सही समय पर बुवाई हुई होती तो मक्के की फसल डेढ़ फीट ऊंची उठ गई होती, लेकिन पिछले दस साल  से दक्षिण राजस्थान में बारिश का समय लगातार आगे की ओर खिसकता जा रहा है। भीम गांव के किसान रोशन प्रसाद बताते हैं कि इस साल बारिश लगभग डेढ़ माह आगे खिसक गई है। जो बारिश अब हो रही है, वास्तव में उसे जून में ही होनी चाहिए थी। लेकिन अब जुलाई का तीसरा हफ्ता बीतने को है और अब तक मात्र दो बार बारिश हुई है। इतना ही नहीं, जब बारिश हो रही है तो एक साथ भारी बारिश हो रही है, जिससे खेती को फायदा कम, नुकसान ज्यादा हो रहा है। 

इस संबंध में पाली जिले के जिला कृषि केंद्र के निदेशक धीरज सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि अब तक इन जिलों में 1.3 सेंटीमीटर बारिश हुई है। यह औसत से बहुत कम है। दक्षिण राजस्थान में जहां बारिश लगातार आगे खिसक रही है, तो वहीं पश्चिम राजस्थान में भारी बारिश की अब भी स्थिति बनी हुई है यानी एक ही बार में भारी बारिश।

जहां तक किसानों का पुरानी परंपरा की ओर लौटने की बात है तो धीरज सिंह बताते हैं कि यह बात सौ फीसदी सही है। हालांकि इन जिलों में तेजी से यह दिख रहा है लेकिन वास्तविकता यह है कि अब कमोबेश किसान हर हाल में अपनी पुरानी किसानी प्रथा को एक बार पुनजीर्वित करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। इसमें अच्छी बात ये है कि अब इस काम में किसानों को पढ़े-लिखे बेटे और बेटियों ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया है कि पुरानी परंपरा में ही बरकत है।

इस संबंध में राजसमंद में भीम गांव में बैलों से खेतों की जुताई करवा रहीं जमुना देवी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हमने पहले यहां पर ट्रैक्टर से जुताई करवाई थी, लेकिन जब खेतों में आकर देखा तो पता चला कि यह तो बहुत ही गंदे तरीके से जुताई हुई है। क्योंकि इसमें खेतों में जगह बहुत अधिक छोड़ दी गई है, इससे मक्का का उत्पादन कम होगा।

वह बताती हैं कि अब हल और बैल मिलना बहुत कठिन हो गया है, क्योंकि गांवों में लोगों ने बैल रखना लगभग छोड़ ही दिया है। लेकिन यह भी सौ फीसदी सच्चाई है कि आज की तारीख में हर कोई बैल से जुताई के लिए लोगों को ढूंढ़ रहा है। इस संबंध में हल से जुताई कर रहे रामेश्वर कहते हैं कि मेरे पास जमीन नहीं है, लेकिन मेरे पास दो जोड़ी बैल हैं, जिनसे मैं दिहाड़ी पर खेतों की जुताई कर रहा हूं। एक दिन की मजूरी सात से आठ सौ रुपए मिल जाती है।

वह बताते हैं कि पिछले दो साल से इस इलाके में लोग ट्रैक्टर से जुताई के मुकाबले हल से जुताई को प्राथमिकता देने लगे हैं। क्योंकि  कोई अपनी खेती से अधिक से अधिक अन्न चाहता है, जबकि ट्रैक्टर से की गई जुताई व बुआई से मक्के का उत्पादन कम होता है। क्योंकि कहीं वह अधिक गहरा जोत देता है तो कहीं ऊपर। और इसके अलावा उसके जोतने की दूरी आधा फीट के बराबर होती है। जबकि इतनी दूरी में हल से दो बार जुताई हो जाती है।

पास के खेत में पॉलीथीन की थैलियां बिन रही अर्चना पेशे से स्थानीय इंटर कॉलेज में फिजिक्स की लेक्चरर हैं, वह बताती हैं कि खेतों की उपजाऊपन भी हल से जोतने पर ही बना रह पाता है। ट्रैक्टर से जमीन की ठीक से जुताई नहीं होती है। ऐसे में हम भी अब हल से जुताई करवा रहे हैं। हम पिछले एक हफ्ते से हल लगाने वालों की तलाश कर रहे हैं, लेकिन अब तक नहीं मिला। अर्चना ने रामेश्वर से हल लगाने के लिए कहा है, जो तैयार हो गया है।

अर्चना भी मानती हैं कि हमारे इलाके में बारिश सचमुच में लगभग डेढ़ से दो माह आगे खिसक गई है नहीं तो अब तक तो कमर तक मक्के की फसल खड़ी हो गई होती।

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