चारे का संकट : डेरी फार्मिंग छोड़कर डॉग फार्मिंग को मजबूर हुआ पशुपालक

चारे की महंगाई से डेरी फार्म बंद होने की कगार पर, पशुपालक ने औने पौने दाम पर बेची दूधारू गाय, पांच महीने में हो चुका है करीब 3 लाख का घाटा

By Bhagirath Srivas

On: Thursday 26 May 2022
 
गुडगांव के लोकरा गांव में 15 साल से डेरी फार्मिंग कर रहे हैं मंगतराम। फोटो : सन्नी गौतम

मंगतराम ने 15 साल पहले जब हीरो होंडा कंपनी की नौकरी छोड़कर डेरी फार्मिंग का काम शुरू किया तब उन्हें बड़ी उम्मीदें थीं। शुरू में डेरी फार्मिंग से अच्छी कमाई हुई तो उन्होंने वेटरिनरी डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर ली। उन्हें लगता था कि डेरी फार्मिंग में ही भविष्य है और यह पढ़ाई उनके दूध के व्यापार में सहायक होगी और इससे वह पशुओं की देखभाल बेहतर तरीके से कर सकते हैं।

मंगतराम ने शुरुआत में दो भैंस से दूध का काम शुरू और अगले साल भैंस हटाकर वह गीर, सहीवाल, राठी, थारपारकर नस्ल की गायों को ले आए और साल दर साल उनकी संख्या बढ़ाते रहे। उनकी जिंदगी में सब कुछ ठीक चल रहा था लेकिन 2021 के अंत में उन्हें महसूस होने लगा कि पशुपालन का काम अब फायदे का सौदा नहीं है। चारे की अचानक बढ़ी कीमत ने उन्हें पशुपालन का कारोबार समेटने पर मजबूर कर दिया। फरवरी-मार्च 2022 तक आते-आते उन्होंने अपनी 39 दूधारू गायों को धीरे-धीरे कम करना शुरू कर दिया। अप्रैल के आखिरी तक डेरी फार्म से 28 गाय कम कर दीं। उनकी दूधारू गाय का बाजार भाव 80-90 हजार रुपए है लेकिन अधिकांश गाय उन्होंने किसी को 5 हजार तो किसी को 7 हजार में दे दी। उन्होंने 10 गाय राजस्थान के घुमंतू राइका समुदाय को मुफ्त में दे दी। मौजूदा समय में उनके पास 7 वयस्क गाय, 2 बछड़े और 2 बैल ही बचे हैं।

गुड़गांव जिले के मानेसर तहसील के लोकरा गांव में रहने वाले मंगतराम बताते हैं कि चारे के आसमान छूते भाव के बीच पशुओं को खिलाना असंभव होता जा रहा है। इस साल उन्होंने 1,500 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर भूसा खरीदा है। पिछले साल उन्हें यही भूसा करीब 425 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर मिला था। यानी एक साल के भीतर भूसे का भाव 3 गुणा से अधिक बढ़ चुका है। मंगतराम के अनुसार एक गाय औसतन 5 किलो सूखा चारा, 6 किलो पशु आहार (एनिमल फीड) और 10 किलो हरा चारा खाती है। 15 रुपए किलो प्रति किलो सूखा चारा, 6 रुपए प्रति किलो फीड और 4 रुपए प्रति किलो हरे चारे के भाव के अनुसार एक गाय प्रतिदिन औसतन 260 रुपए की खुराक खा रही है। इसमें लेबर चार्ज और दवाइयों का खर्च शामिल नहीं है जिसका प्रति गाय मासिक खर्च करीब 2,000 रुपए है। एक गाय के प्रतिदिन के इस खर्च को अगर हम साल में बदलें तो पाएंगे कि केवल चारे और फीड पर करीब 95,000 रुपए खर्च हो रहा है। इसके अतिरिक्त दवाओं और लेबर चार्ज के रूप में 24 हजार रुपए का खर्च है। यानी एक गाय पर साल का खर्च करीब 1 लाख 19 हजार रुपए है।

मंगतराम एक गाय से हासिल दूध का गणित समझाते हुए बताते हैं कि प्रति गाय साल में 2,500-3,000 लीटर दूध देती है। साल में दो से तीन महीने सूखे रहते हैं और इस दौरान गाय दूध नहीं देती। मंगतराम से हरियाणा की सहकारी समिति वीटा 25-26 रुपए के भाव पर दूध खरीदती है। साल में एक गाय को दूध बेचने पर उन्हें 62,500-65,000 रुपए मिलते हैं। अगर साल में गाय पर खर्च और दूध बेचने के प्राप्त आय का हिसाब लगाएं तो पाएंगे कि मौजूदा स्थिति में मंगतराम को हर साल एक गाय से 54,000 रुपए का घाटा हो रहा है। मंगतराम के बताते हैं कि उनके लिए यह घाटा सहना असंभव हो रहा है। लागत और आय के बीच अंतर बढ़ने के कारण दिसंबर 2021 से मार्च 2022 बीच उन्हें 2.5 से 3 लाख रुपए का नुकसान हो चुका है।

मंगतराम को भविष्य में चारे के सस्ता होने की उम्मीद नहीं है। इसकी वजह बताते हुए वह कहते हैं कि उनके गांव में ही 70 प्रतिशत जमीन पर सरसों और शेष 30 प्रतिशत पर गेहूं की बुवाई हुई है। गेहूं का रकबा घटने और सरसों का भाव अधिक होने पर भूसे की कीमत आने वाले 5 वर्षों में कम नहीं होगी। गौरतलब है कि सूखे चारा का सबसे बड़ा स्रोत गेहूं की फसल से निकलने वाला भूसा होता है और इस साल गेहूं का रकबा कम होने से हरियाणा समेत दूसरे कई राज्यों में भूसे के भाव आसमान छू रहे हैं। मंगतराम आने गांव के उदाहरण से समझाते हैं कि एक साल पहले तक गांव में 450 गाय थीं लेकिन मौजूदा समय में चारे की किल्लत के चलते लोगों ने करीब 300 गाय बेच दीं हैं। अब गांव में लगभग 150 गाय ही हैं।

मंगतराम ने अब गाय पालने की बजाय कुत्तों को पालना शुरू कर दिया है। फोटो: सन्नी गौतम

भविष्य से स्थितियां अनुकूल न होने के अंदेशे को देखते हुए मंगतराम अपनी बची खुची गाय को भी बेचने की योजना बना रहे हैं और डेरी फार्मिंग का काम पूरी तरह बंद करने की सोच रहे हैं। डेरी फार्म में उन्होंने विदेशी नस्ल की कुत्ते रखने शुरू कर दिए हैं और डॉग फार्मिंग को अपनाने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि कुत्तों के पिल्ले बेचने में गाय पालने से बेहतर आमदनी होगी।

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