भारत में चार वर्षों के दौरान भू-क्षरण की भेंट चढ़ी तीन करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ जमीन: संयुक्त राष्ट्र

यह देश के कुल भूभाग की करीब 10 फीसदी हिस्सा है

By Zumbish, Lalit Maurya

On: Monday 30 October 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

भारत में 2015 से 2019 के बीच करीब 3.051 करोड़ हेक्टेयर भूमि, भू-क्षरण और गुणवत्ता में आती गिरावट से जूझ रही थी। इसका मतलब है कि 2019 में देश की करीब 9.45 फीसदी जमीन, गुणवत्ता में आती गिरावट का शिकार बन चुकी था, वहीं 2015 में यह आंकड़ा केवल 4.42 फीसदी दर्ज किया गया था। यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है।

यूएनसीसीडी के मुताबिक भारत में बंजर होती यह जमीन आकार में 4.3 करोड़ फुटबॉल मैदानों के बराबर है। बता दें कि यूएनसीसीडी ने जो आंकड़े साझा किए गए हैं, वो 2019 में भूमि की गुणवत्ता के के बारे में जानकारी देते हैं, ताकि हम यह समझ सकें कि 2015 से 2019 तक उसमें कैसे बदलाव आए हैं।

यूएनसीसीडी डेटा डैशबोर्ड के मुताबिक, 25 अक्टूबर, 2023 तक के लिए जारी आंकड़ों से पता चला है कि इस दौरान 25.2 करोड़ भारतीय, जो कि देश की कुल आबादी का करीब 18.4 फीसदी हिस्सा हैं, वो भूमि क्षरण की समस्या से प्रभावित थे। इतना ही नहीं 2015 से 2018 के बीच भारत में करीब 85.4 करोड़ लोग सूखे की चपेट में थे।

बता दें कि सूखे से प्रभावित कुल भूमि का निर्धारण, सूखे के विभिन्न स्तरों (हल्के, मध्यम, गंभीर और भीषण सूखे) से प्रभावित क्षेत्रों को जोड़कर किया गया है। इतना ही नहीं आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि 2015 से 2019 के बीच वैश्विक स्तर पर हमने हर साल औसतन करीब दस करोड़ हेक्टेयर से अधिक उपजाऊ जमीन खो दी है। यदि इस जमीन के आकार को देखें तो वो ग्रीनलैंड से करीब दोगुनी है। यह वो जमीन है जिसका उपयोग कृषि उत्पादन के लिए किया जा सकता था। ऐसे में इसकी वजह से करीब 130 करोड़ लोग सीधे तौर पर प्रभावित हुए हैं।

इससे पहले जारी रिपोर्ट ग्लोबल लैंड आउटलुक में भी इस बात की पुष्टि की गई थी कि दुनिया में करीब 40 फीसदी भूमि गिरावट का सामना कर रही है। यह दुनिया की करीब 50 फीसदी आबादी को प्रभावित कर रहा है।

इस डेटा डैशबोर्ड में कुछ विशिष्ट देशों द्वारा रिपोर्ट किए गए स्वैच्छिक लक्ष्यों को भी दर्शाया गया है, जो  भूमि क्षरण से निपटने या रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में मददगार साबित हो सकते हैं।  डेशबोर्ड के अनुसार एक बेहतर भविष्य और भूमि क्षरण के इस बढ़ते खतरे से निपटने के लिए 109 देशों ने 2030 तक के लिए अपने स्वयं के लक्ष्य निर्धारित किए हैं। वहीं 21 देश इसपर विचार कर रहे हैं। इस बाबत भारत सरकार ने भी यूएनसीसीडी को एक रिपोर्ट सौंपी है, जिसे डैशबोर्ड में देखा जा सकता है।

गौरतलब है की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे पर संयुक्त राष्ट्र के उच्च-स्तरीय संवाद' में कहा था कि, "भारत भूमि क्षरण तटस्थता पर अपनी राष्ट्रीय प्रतिबद्धता को हासिल करने की राह पर है। प्रधानमंत्री के मुताबिक 'हम 2030 तक 2.6 करोड़ हेक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करने की दिशा में काम कर रहे हैं।

यह डेशबोर्ड 126 देशों से एकत्र किए गए आंकड़ों पर आधारित है, जिसे 2022 में यूएनसीसीडी की राष्ट्रीय रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया था। दुनिया भूमि क्षरण को संबोधित करने के मामले में वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर कितना अच्छा प्रदर्शन कर रही है, यह इस बारे में केवल सीमित जानकारी देता है। संयुक्त राष्ट्र ने भी इसका जिक्र किया है कि सभी देशों ने हर पहलू पर पर्याप्त जानकारी नहीं दी है, इसलिए यह डेशबोर्ड पूरी तस्वीर प्रस्तुत नहीं करता है।

इस बारे में यूएनसीसीडी के प्रमुख वैज्ञानिक बैरन जोसेफ ऑर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "भारत में भूमि क्षरण की समस्या को देखते हुए, यह स्पष्ट है कि हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। भूमि क्षरण केवल हमारे पर्यावरण को ही नुकसान नहीं पहुंचाता यह लाखों लोगों की जीविका और बेहतर भविष्य को भी प्रभावित करता है।"

उनका आगे कहना है कि, "हम भूमि क्षरण से जुड़े लक्ष्यों को हासिल करने और 2030 तक 100 करोड़ हेक्टेयर उपजाऊ जमीन की बहाली की दिशा में तेजी लाने के लिए भारत के साथ मिलकर सहयोग करने के लिए समर्पित हैं।"

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