मध्य प्रदेश की आदिवासी महिला किसानों ने दिखाई एक नई राह
मध्य प्रदेश के 30 गांवों में महिला किसानों ने थामा एक-दूसरे का हाथ तो बढ़िया कीमतों पर बिकने लगी उनके खेतों में पैदा हुई मूंगफली
On: Friday 18 February 2022
लक्ष्मी लोधी पिछले तीन वर्षों में अपने जीवन आए बदलावों से काफी खुश हैं। मध्य प्रदेश के एक सुदूर आदिवासी गांव में एक संघर्षरत सीमांत किसान से वह आज इस क्षेत्र के पहले महिला उत्पादक समूह की एक गौरवान्वित सदस्य बन चुकी हैं।
अपने मूंगफली के खेत पर काम करने के अलावा उनके पास गांव के संग्रह केंद्र के बही-खाते की देखरेख का भी महत्वपूर्ण काम है, जहां समूह की महिला किसान अपनी मूंगफली की उपज जमा करती हैं।
मध्य प्रदेश के सहरिया जनजाति-बहुल ममोनीखुर्द गांव का महिला उत्पादक समूह 2019 में एक सामान्य से उद्देश्य के साथ शुरू किया गया था, कि अगर महिलाएं अपने कृषि उत्पादों को इकट्ठा कर सकें, तो वे बेहतर कीमतों के लिए सौदेबाजी भी कर सकेंगी। इस पहल की वजह से लोधी की मूंगफली के खेत से होने वाली कमाई में 18 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
इस सामूहिक प्रयास की शुरुआत दिल्ली की गैर-लाभकारी संस्था सृजन (सेल्फ-रिलाइंट इनिशिएटिव्स थ्रू जॉइंट एक्शन) की मदद से शिवपुरी जिले के 3 गांवों ममोनीखुर्द, बरोदी और सलाई में हुई। यह जिला बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है, जो पलायन के संकट के साथ ही सामंतवाद और लैंगिक भेदभाव से प्रभावित है।
बेतवा और केन 2 नदियों के होने के बाद भी बुंदेलखंड को गंभीर जलसंकट का सामना करना पड़ता है और इसका दुष्प्रभाव खेती पर भी पड़ता है, जो इस क्षेत्र में आजीविका का सबसे प्रमुख स्रोत है। मूंगफली इस क्षेत्र की सबसे प्रमुख नकदी फसलों में से एक है, जिसकी खेती मुख्य तौर पर महिला किसान करती हैं।
लेकिन, इन महिलाओं को अपने छोटे खेतों, सीमित भंडारण सुविधाओं, बाजार से संपर्क में समस्या के साथ ही कीमतों में उतार-चढ़ाव के कारण बिचौलियों की धोखाधड़ी जैसी चुनौतियों से लगातार जूझना पड़ता है। उन्हें अप्रत्याशित बारिश, खराब मिट्टी और वैज्ञानिक कृषि पद्धतियों की कमी के कारण आने वाली अत्यधिक उत्पादन लागत का सामना भी करना पड़ता है।
इन चुनौतियों को देखते हुए किसानों और गैर-लाभकारी संस्थाओं ने एक महिला उत्पादक समूह की स्थापना करने का फैसला किया, जो दहलीज पर सामूहिकता के विचार को बढ़ावा देता है। महिलाएं ही इस पहल को चला रही हैं और इसका प्रबंधन भी उन्हीं के हाथों में है। आज यह पहल इन चुनौतियों के एक स्थायी समाधान के तौर पर सामने आई है।
सामूहिक मोर्चे की सफलताएं
इस सामूहिक प्रयास के सबसे आखिर में आते हैं महिला उत्पादक समूह, जिनमें 22-25 महिला किसान हैं। ये महिलाएं फसल पैदा करने और उपज को उनके द्वारा गांवों में चलाए जा रहे संग्रह केंद्रों तक पहुंचाने में मदद करती हैं। इस समय 30 गांवों में 70 उत्पादक समूह हैं।
इसके बाद यह उपज गांवों के केंद्र से सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट तक भेजी जाती है, जिसे जिला स्तर पर स्थापित किया गया है। इन महिला उत्पादक समूहों में से किसी एक समूह को हर साल नोडल ग्रुप बनाया जाता है, जो इस काम से जुड़ी पूरी प्रक्रिया की देखरेख की जिम्मेदारी उठाती है।
अच्छी कीमत पाने के लिए अलग-अलग समूहों से दो-तीन महिलाओं को चुना जाता है, जिन्हें गैर-लाभकारी संस्थाएं प्रशिक्षण देती हैं, ताकि वे अपनी उपज की जांच कर सकें, कीमतें तय कर सकें और मुख्य बाजार से खरीददार ला सकें। एक बार जब खरीददार तय हो जाता है, पैसे उनके बैंक खातों में आ जाते हैं, तब वे सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट में मौजूद महिलाओं की टीम को इसकी सूचना देती हैं, जो गांवों में स्थित केंद्रों से वांछित मात्रा में उपज खरीदती है, फिर उसके पैक कर खरीददार को ऑर्डर भेज देती हैं।
इस पहल को पहले 3 वर्षों में शानदार सफलता मिली है। पहले साल में खेतों से 17,500 किलो मूंगफली इकट्ठा की गई। कोरोना के कहर के बावजूद यह मात्रा बढ़कर साल 2020 में 52,300 किलो और साल 2021 में 70,000 किलो तक पहुंच गई। इस सामूहिक प्रयास के तहत 2020 में व्यापार भी शुरू किया गया। उस समय बाजार में 40,000 किलो से कुछ कम मूंगफली बेची गई।
लेकिन, अगले ही साल 2021 में यह मात्रा बढ़कर 50,000 किलो तक पहुंच गई। इस मॉडल के वार्षिक टर्नओवर में भी बढ़ोतरी दर्ज हुई है, शुरुआत में यह टर्नओवर 10 लाख रुपये से भी कम था, जो अब 30 लाख रुपये तक पहुंच गया है। बल्कि, 2021 में उन्होंने पहली बार 4.27 लाख रुपये का मुनाफा भी कमाया। जिसे सभी सदस्यों के बीच बोनस के तौर पर बांट दिया गया।
इस पहल के तहत अब डिजिटल सेवाओं में निवेश किया जा रहा है, ताकि वह अपनी गतिविधियों को बढ़ा सकें। उन्होंने विभिन्न मंडियों में कीमतों की निगरानी करने के लिए स्क्रीन लगाई हैं। गांवों में मौजूद संग्रह केंद्रों के बीच संचार सेवाओं को बेहतर किया गया है।
इस सामूहिक प्रयास के तहत अब भोले बाबा महिला उत्पादक के नाम से कंपनी की स्थापना की प्रक्रिया चल रही है। यह कंपनी विभिन्न उत्पादों को बनाने के लिए मूंगफली का प्रसंस्करण करेगी, फिर अपने ब्रांड के तहत सीधे ग्राहकों को ये उत्पाद बेचेगी। कंपनी पर सभी सदस्यों का सामूहिक तौर पर स्वामित्व होगा और इसके बोर्ड की सभी डायरेक्टर भी महिलाएं ही होंगी।
वे पलाश के पेड़ से निकलने वाले गम का व्यवसाय करने की योजना भी बना रही हैं, क्योंकि इनमें से कई सदस्य पहले से इसके संग्रह का काम करती रही हैं। उनकी योजना अगले 3 साल में वार्षिक टर्नओवर को 1 करोड़ रुपये तक पहुंचाने की है।
इस पहल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि सामूहिक तौर पर काम करके ये महिला किसान न सिर्फ स्थायी तरीके से खेती कर सकती हैं, बल्कि अपनी कमाई से अपने परिवार का पालन-पोषण भी कर सकती हैं। यह बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि, अधिकतर कृषक परिवारों में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के पास निवेश और सेवाओं तक पहुंच काफी कम है। ऐसे हालात में उन्हें उनके ही खेतों पर अवैतनिक श्रमिक की तरह काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।