गरीबी कम करने में सिएरा लियोन से सबक ले सकती है दुनिया

हालिया वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक कहता है कि इस गरीब अल्पविकसित देश ने इबोला से लड़ते हुए भी समग्र गरीबी सबसे तेजी से कम की है

By Richard Mahapatra

On: Thursday 30 July 2020
 
इबोला के प्रकोप के एक साल पहले 2013 में सिएरा लियोन में 74 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीब थे। इबोला का प्रकोप खत्म होने के एक साल बाद यानी 2017 में यह घटकर 58 प्रतिशत रह गया। Photo: UNOPS

सिएरा लियोन ने जब नई शताब्दी में प्रवेश किया था, तब शांति और समृद्धि की उम्मीद नहीं थी। उस समय इस देश में गृहयुद्ध चल रहा था जिसमें 50 हजार लोग मारे गए और 2002 तक 20 लाख लोग विस्थापित हुए। इसके 12 वर्ष बाद भी देश मेडिकल युद्ध लड़ रहा था यानी इबोला महामारी से जूझ रहा है। 2016 तक इसका लक्ष्य बीमारी को सीमित रखना था। इस दौरान विकास का काम ठप हो गया था।

लेकिन सिएरा लियोन के अंदर ऐसा कुछ चल रहा था जिसे दुनिया ने नहीं देखा। हालांकि यह दुनिया के सबसे गरीबी देशों में तब भी शुमार था और अब भी है। लेकिन इसने दुनिया को उस वक्त चौंका दिया जब वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई) में कहा गया कि इस छोटे से देश ने सबसे तेजी से गरीबी कम की है।

द ऑक्सफोर्ड पॉवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिशिएटिव और यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) ने हाल ही में यह सर्वेक्षण जारी किया है। इसमें एक जैसे आंकड़ों वाले 80 देशों की बहुआयामी गरीबी की तुलना की गई है। आय गरीबी के इतर सूचकांक में तीन पैमानों- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवनस्तर को परखा जाता है। इनमें शामिल 10 संकेतकों के विश्लेषण के आधार पर देशों को रैंकिंग दी जाती है। कोई व्यक्ति बहुआयामी गरीब तब होता है, जब वह एक तिहाई संकेतकों या इससे अधिक से वंचित रहता है। यह आकलन का दसवां साल है। इसका अध्ययन करने पर पता चलता है कि विभिन्न देश गरीबी से संबंधित इन संकेतकों पर कितनी प्रगति कर रहे हैं।

एमपीआई 2020 के अनुसार, 107 देशों में 5.9 बिलियन लोगों का विश्लेषण करने पर पाया गया कि 1.3 बिलियन लोग बहुआयामी गरीब हैं। 65 देशों ने बहुआयामी गरीबी कम की है। सिएरा लियोन में इसकी दर सबसे तेज है। इसने बहुआयामी गरीबी में सालाना 4 प्रतिशत की कमी की है। यह कमी ऐसे समय में हुई है जब देश इबोला के प्रकोप से जूझ रहा है। इबोला के प्रकोप के एक साल पहले 2013 में सिएरा लियोन में 74 प्रतिशत लोग बहुआयामी गरीब थे। इबोला का प्रकोप खत्म होने के एक साल बाद यानी 2017 में यह घटकर 58 प्रतिशत रह गया। इस प्रगति को देखकर एमपीआई 2020 के लेखक इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने इसकी तुलना दूसरे विश्वयुद्ध के बाद ब्रिटेन की बेहतर हुई जीवन प्रत्याशा से कर दी। युद्ध के दौरान ब्रिटेन में यह बेहतर नीतियों और खाद्य वितरण प्रणाली के माध्यम से संभव हुआ था।

सिएरा लियोन में 2002 में गृहयुद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद गरीबी कम करने का काम शुरू हुआ। सरकार ने बेहद प्रभावी कार्यक्रम के माध्यम से नि:शुल्क शिक्षा सुनिश्चित की। इसके साथ ही स्थानीय प्राधिकरणों को ताकत देकर बड़े पैमाने पर शासन का विकेंद्रीकरण किया। इससे मानव विकास के लिए जरूरी सेवाओं की बेहतर डिलीवरी हो पाई। सरकार इस मूलमंत्र पर चल रहा थी कि अगर परिवार का मुखिया शिक्षित होगा तो गरीबी से बाहर निकलने की प्रबल संभावना होगी। साथ ही वह आपदा से भी बेहतर तरीके से निपट सकेगा।

इसके अलावा सिएरा लियोन ने गरीबी का मापदंड भी बदल दिया। पहले वह आय से गरीबी मापता था, जिसे ऐसे तंत्र में परिवर्तित कर दिया गया जिससे गरीबी के कारण पता चलते हैं। 2017 में इस देश ने गरीबी के कारणों को जानने के लिए सर्वेक्षण किया। इससे नीति निर्माताओं को आय बढ़ाने वाली योजनाएं बनाने में मदद मिली। साथ ही साथ गरीबी को दूर करने के दीर्घकालीन उपाय भी पता चले। उम्मीद के मुताबिक सरकार ने स्वच्छ ईंधन, शिशु मृत्युदर और स्कूल में बच्चों की उपस्थिति से संबंधित योजनाओं को लागू किया। इसी का नतीजा था कि सिएरा लियोन ने पहले दो संकेतकों पर उल्लेखनीय सुधार किया।

एमपीआई 2020 की तरह स्कूलों में बढ़ते दाखिलों से गरीबी को कई स्तरों पर मापा जा सकता है। गरीबी को केवल आय और व्यय के आधार पर परखने पर खुशहाली की तस्वीर तो दिख जाती है लेकिन यह नहीं पता चलता कि गरीबी को बढ़ाने वाले कारक कौन से हैं। गरीबी रेखा से नीचे बने रहने के कारण भी इससे पता नहीं चलते। ऐसे समय में जब दुनिया समग्र मानव विकास को उसकी खुशहाली से जोड़ रही है, तब हमें गरीबी के बहुआयामी मूल्यांकन की जरूरत है। सिएरा लियोन से भी यही सबक मिलता है।  

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