स्ट्रोक, माइग्रेन, मिर्गी जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों का स्वास्थ्य बिगाड़ सकता है जलवायु परिवर्तन, जानें कैसे

रिसर्च से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों का प्रभाव उन लोगों पर काफी गहरा होगा, जो पहले ही न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे हैं

By Lalit Maurya

On: Tuesday 21 May 2024
 
भारत में मानसिक समस्याओं से जूझता बुजुर्ग; फोटो: आईस्टॉक

जलवायु परिवर्तन आज एक ऐसा कड़वा सच बन चुका है, जिससे दुनिया में शायद ही कोई ऐसा हो जो प्रभावित न हुआ हो। किसी पर कम तो किसी पर ज्यादा लेकिन इन बदलावों ने हर इंसान के जीवन पर किसी न किसी रूप में प्रभाव डाला है। लेकिन दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो पहले ही अनगिनत समस्याओं से जूझ रहे हैं। इनमें वो लोग भी शामिल हैं जो मानसिक और तंत्रिका सम्बन्धी विकारों जैसे स्ट्रोक, माइग्रेन, मिर्गी जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं।

जीवन के हर मोड़ पर अपनी बीमारियों की वजह से संघर्ष करते इन लोगों के स्वास्थ्य के लिए जलवायु परिवर्तन कहीं ज्यादा पीड़ादेह साबित हो रहा है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से मौसम के पैटर्न में आता बदलाव और चरम मौसमी घटनाएं मानसिक बीमारियों से जूझ रहे लोगों के स्वास्थ्य पर कहीं गहरा प्रभाव डाल रही हैं। इस अध्ययन के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल लैंसेट न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

अध्ययन यूसीएल क्वीन स्क्वायर इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोलॉजी के प्रोफेसर संजय सिसौदिया के नेतृत्व में किया गया है, जिसमें शोधकर्ताओं ने 1968 और 2023 के बीच प्रकाशित 332 शोधों की समीक्षा की है। इस रिसर्च के जो नतीजे सामने आए हैं, उनको देखते हुए शोधकर्ताओं ने इस बात की आशंका जताई है कि जलवायु में आते बदलावों का प्रभाव उन लोगों पर काफी गहरा होगा जो पहले ही न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे हैं।

ऐसे में शोधकर्ताओं ने यह समझने की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया है कि जलवायु में आता बदलाव न्यूरोलॉजिकल समस्याओं से जूझ रहे लोगों के स्वास्थ्य को कैसे प्रभावित करता है, ताकि उनके स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभावों के साथ-साथ बढ़ती असमानताओं को रोका जा सके।

इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज 2016 अध्ययन के आधार पर तंत्रिका तंत्र संबंधी 19 स्थितियों की जांच की है। इनमें स्ट्रोक, माइग्रेन, अल्जाइमर, मेनिनजाइटिस, मिर्गी और मल्टीपल स्केलेरोसिस शामिल हैं। साथ ही शोधकर्ताओं ने चिंता, अवसाद और सिजोफ्रेनिया जैसे सामान्य मानसिक विकारों पर भी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण किया है।

गौरतलब है कि सिजोफ्रेनिया, एक ऐसा विकार है जो व्यक्ति की स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है। इस बारे में जानकारी देते हुए प्रोफेसर सिसौदिया ने प्रेस विज्ञप्ति में लिखा है कि, “इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि जलवायु परिवर्तन मस्तिष्क की कुछ स्थितियों, विशेष रूप से स्ट्रोक और तंत्रिका तंत्र संबंधी संक्रमणों को प्रभावित करता है।“

कैसे जलवायु परिवर्तन से बिगड़ रहा मानसिक स्वास्थ्य

उनके मुताबिक बेहद ज्यादा तापमान और दैनिक तापमान में आया बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव, विशेष रूप से जब वो मौसम के लिए असामान्य हो, तो जलवायु में आए ऐसे बदलाव मस्तिष्क संबंधी रोगों को प्रभावित करते देखे गए हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक रात के समय तापमान भी बेहद मायने रखता है, क्योंकि गर्म रातें नींद में खलल डाल सकती हैं। यह तो सभी जानते हैं, कि बेहतर नींद स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी होती है। नतीजन खराब नींद की वजह से दिमाग से जुड़ी कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

शोधकर्ताओं ने देखा है कि जब भीषण गर्मी या लू चल रही हो तो उस दौरान स्ट्रोक की वजह से अस्पताल में भर्ती होने वाले लोगों की संख्या में इजाफा देखा गया है। इसी तरह इसकी वजह से विकलांगता या मृत्यु दर में भी वृद्धि के सबूत मिले हैं।

ऐसा ही कुछ मनोभ्रंश से पीड़ित लोगों में भी देखा गया है जिन्हें बढ़ते तापमान की वजह से पड़ रही भीषण गर्मी, लू और उससे सम्बंधित बीमारी या हाइपोथर्मिया से खतरा रहता है। साथ ही चरम मौसमी घटनाओं जैसे बाढ़ या जंगल में लगने वाली आग से भी इन्हें नुकसान की आशंका रहती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जोखिम के बारे में सीमित जागरूकता, के साथ-साथ मदद लेने या सावधानी बरतने की क्षमता में कमी (जैसे गर्म मौसम में अधिक पानी पीना और मौसम के अनुकूल कपड़े पहनना आदि) के चलते जोखिम बढ़ जाता है। 

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह जोखिम, कमजोरी, एक साथ कई बीमारियों और मानसिक स्थिति को प्रभावित करने वाली दवाओं से और बढ़ जाता है। यही वजह है कि अत्यधिक तापमान, भीषण गर्मी, लू, दैनिक तापमान में भारी उतार-चढ़ाव के चलते मनोभ्रंश के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों और उससे जुड़ी मृत्यु दर में वृद्धि होती है। इसी तरह बढ़ते तापमान, दैनिक तापमान में बदलाव या बेहद सर्द या गर्म मौसम के पड़ते प्रभाव की वजह से कई मानसिक विकारों के मामले में अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों और मृत्युदर के बढ़ते जोखिम में संबंध देखा गया।

शोधकर्ताओं के मुताबिक जैसे-जैसे तापमान में इजाफा हो रहा है, चरम मौसमी घटनाएं भी विकराल रूप ले रही हैं। नतीजन आम लोगों की पर्यावरण की कहीं ज्यादा बिगड़ी स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।

उन्होंने कुछ दूसरे अध्ययनों का भी हवाला दिया है, जिनके मुताबिक भविष्य में जलवायु परिवर्तन की वजह से मस्तिष्क संबंधी बीमारियों प्रभावित हो सकती हैं। ऐसे में इनसे निपटने की योजना बनाना कहीं ज्यादा जटिल हो सकता है। देखा जाए तो जलवायु से जुड़ी यह चिंताएं, तनाव में इजाफा करती हैं।

खासकर वो लोग जो पहले ही मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से जूझ रहे हैं, उनके के लिए यह कहीं ज्यादा समस्याएं पैदा कर सकती हैं। इनकी वजह से जलवायु परिवर्तन और दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं से निपटना कठिन हो जाता है। ऐसे में इन समस्याओं से निपटने के लिए जल्द से जल्द कदम उठाना बेहद जरूरी है।

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