जलवायु परिवर्तन की निगरानी में अहम भूमिका निभा सकते है जानवर: शोध

अध्ययन में कहा गया है कि यदि पशु-पक्षियों में सेंसर लगा दिए जाएं तो मौसम का पूर्वानुमान लगाने में काफी आसानी हो जाएगी

By Dayanidhi

On: Friday 22 September 2023
 
फोटो साभार: मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट, जीपीएस-कॉलर वाला मूस, जिसकी मदद से तापमान, नमी आदि का पता लगाया जाता है

दुनिया के वैज्ञानिक मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए स्थानीय परिदृश्य, महासागरों और वायुमंडल पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन करने के लिए उपग्रहों, महासागरीय पल्लवों, मौसम स्टेशनों, गुब्बारों और अन्य तकनीकों पर भरोसा करते हैं।

लेकिन येल के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड ग्लोबल चेंज (बीजीसी सेंटर) और मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर के शोधकर्ताओं का कहना है कि इस काम में जानवर बहुत काम आ सकते हैं, क्योंकि वे बहुत संवेदनशील होते हैं। यह रिपोर्ट नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यदि मछलियों, पक्षियों, सीलों और अन्य प्राणियों में सेंसर लगा दिए जाएं तो जलवायु परिवर्तन के बारे में सटीक जानकारी मिल सकती है। 

अपनी रिसर्च रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने बताया है कि हम जानवरों को उड़ने, तैरने और चलने वाले मौसम स्टेशनों में बदल सकते हैं। बशर्ते कि इनमें आधुनिक सेंसर लगा दिए जाएं। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि जानवरों में सेंसर लगा कर वैज्ञानिक हवा के तापमान, समुद्र के खारेपन और वायु प्रदूषण को माप सकते हैं। साथ ही जानवरों के चयापचय में भी सुधार हो सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान में उपलबध तकनीकें कई जगह सही से काम नहीं कर पाती। जैसे कि उपग्रह बादलों से ढके जंगल के ऊपर का तापमान रिकॉर्ड कर सकते हैं, लेकिन वे जमीन पर स्थितियों को मापने में सक्षम नहीं हैं। जबकि आधुनिक जीपीएस-ट्रैकिंग सेंसर लगा एक बंदर ऐसा कर सकता है। इसके अलावा, सेंसर बढ़ते तापमान के कारण जानवरों के तनाव के स्तर में बदलाव की भी निगरानी कर सकते हैं।

अधिकांश मौसम स्टेशन समतल भूभागों और दुनिया के विकसित क्षेत्रों में बनाए गए हैं, उन्हें बहुत से दूरदराज के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थापित नहीं किया  गया है, जबकि ये क्षेत्र दुनिया में जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित हैं। ऐसे में, पहाड़ी बकरियां या पक्षी, खड़ी पहाड़ी इलाकों में ऊपर और नीचे घूमते हुए वे तापमान का गहनता से पता लगा सकती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अटलांटिक महासागर के ऊपर मौसम संबंधी गुब्बारे पायलटों को उनके मार्गों पर गड़बड़ी की चेतावनी देते हैं। लेकिन जापान से चिली के लिए उड़ान भरने पर ऐसी बहुत कम या कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।

यही कारण है कि जापानी सरकार ने ऊंचाई पर हवा की गति की ताकत मापने के लिए ऊंची उड़ान भरने वाले समुद्री पक्षियों में सेंसर लगाने का काम  शुरू कर दिया है। मौसम के पूर्वानुमान के लिए तकनीकों से सुसज्जित कछुओं से एकत्र किए गए समुद्री माप को समुद्र विज्ञान मॉडल में जोड़ा गया है।

उन्होंने कहा, जानवर हमारे सुव्यवस्थित जैविक मौसम स्टेशन हो सकते हैं।

मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट ऑफ एनिमल बिहेवियर ने पहले ही हजारों पक्षियों और जानवरों पर सेंसर लगाए हैं, जो यह पता लगाने के लिए डिजाइन किए गए हैं कि जलवायु परिवर्तन से प्रभावित प्रवासी मार्गों पर वन्यजीव कहां पनप रहे हैं और कहां संघर्ष कर रहे हैं।

जबकि ये सेंसर जैव विविधता पर नजर रखने के लिए डिजाइन किए गए हैं, इनका उपयोग मौसम की भविष्यवाणी करने और जानवरों पर लू जैसी चरम मौसम की घटनाओं के प्रभावों का पूर्वानुमान लगाने में भी किया जा सकता है।

ऐसे अन्य उदाहरण हैं कि कैसे पशु टैगिंग वास्तविक समय में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर एक जीवित उपाय प्रदान करने में मदद कर रही है। उदाहरण के लिए, टैग किए गए हाथी सील पहले से ही अंटार्कटिका में बर्फ की गहराई और समुद्र के खारेपन पर 80 फीसदी आंकड़े प्रदान करते हैं, जो वैज्ञानिकों को वर्तमान और भविष्य के जलवायु परिवर्तन के तहत समुद्र के स्तर में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने में मदद कर रहा है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि सेंसर लगे जमीन में रहने वाले जानवर न केवल कम नमूने वाले क्षेत्रों के बारे में पता लगाने में सक्षम हैं, बल्कि वे सूक्ष्म स्थानीय विवरण में भी ऐसा करने में सक्षम हैं।

शोधकर्ता ने कहा, वे एक जैविक लेंस की पेशकश करके पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों के लिए एक जबरदस्त हैं, जो निवास स्थान की बेहतरीन स्थितियों में अपना काम करते है।

स्थितियों की निगरानी के लिए जानवरों का उपयोग करने से आंकड़े एकत्र करने का अवसर भी मिलता है जो अधिक स्थानीय और व्यापक है। उदाहरण के लिए, उपग्रह एक वर्ग किलोमीटर के विभेदन पर उप-सहारा अफ्रीका में स्थितियों का एक मोटा अनुमान दे सकते हैं।

सेंसर वाला एक सफेद सारस हमें सेकंडों में जमीन पर स्थितियों की अहम जानकारी दे सकता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि ये फायदे  दुनिया भर में जंगली क्षेत्रों तक ही सीमित नहीं हैं। दुनिया के कई क्षेत्रों में अत्यधिक गर्मी होने के कारण, वाहक कबूतरों ने खतरनाक शहरी गर्मी, शहरी क्षेत्र जो आसपास के क्षेत्रों की तुलना में काफी गर्म हैं और भारी आबादी वाले क्षेत्रों में वायु प्रदूषण के स्तर की पहचान करने में मदद की

शोधकर्ता ने निष्कर्ष में कहा कि, यह मौसम पूर्वानुमान और जीव विज्ञान के लिए प्रासंगिकता के साथ विस्तृत मौसम संबंधी जानकारी की एक उपयोग में लाई जाने वाली सोने की खान की तरह है।

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