नौवीं शताब्दी में तिब्बती साम्राज्य के पतन के पीछे जलवायु परिवर्तन: अध्ययन

तिब्बती पठार की ऊंचाई के कारण इस पर जलवायु परिवर्तन का भारी असर पड़ता है, यहां तापमान और वर्षा में उतार-चढ़ाव दुनिया भर के औसत से काफी अलग होता है।

By Dayanidhi

On: Thursday 07 September 2023
 
फोटो साभार: आईस्टॉक

अध्ययन के मुताबिक, तिब्बती साम्राज्य दुनिया का सबसे ऊंचा साम्राज्य था, जो समुद्र तल से 4,000 मीटर से अधिक ऊंचाई पर स्थित था, 618 से 877 ई.पू. यह खूब फला-फूला। यहां लगभग एक करोड़ लोगों रहते थे, यह पूर्वी और मध्य एशिया में लगभग 46 लाख वर्ग किमी तक फैला हुआ था।

आबादी के विस्तार के लिए प्रतिकूल परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, जिसमें हाइपोक्सिया या ऑक्सीजन की कमी भी शामिल है। जहां ऑक्सीजन की मात्रा समुद्र तल से 40 प्रतिशत कम कम होने के बावजूद भी साम्राज्य फला-फूला। हालांकि, नौवीं शताब्दी में इसके पतन को पूरी तरह से समझा नहीं गया है। क्वाटरनेरी साइंस रिव्यूज में प्रकाशित नए अध्ययन का उद्देश्य एक महान सभ्यता के अंत में कैसी रही जलवायु की भूमिका इसको सुलझाना है।

चीन के तिब्बती पठार शोध संस्थान के जिटोंग चेन और उनके सहयोगियों ने यह निर्धारित करने के लिए झील के तलछट के भूवैज्ञानिक रिकॉर्ड की ओर रुख किया। और पता लगाया कि, 12 शताब्दी पहले पर्यावरण कैसे बदला। जार्डाई की मीठे पानी की झील के तलछट सूक्ष्म एक-कोशिका वाले शैवाल के अवशेषों को संरक्षित करते हैं जिन्हें डायटम के रूप में जाना जाता है।

शोध टीम ने प्लवक की किस्मों, जो जल निकाय के भीतर बहती हैं, आमतौर पर सतह के करीब रहते हैं। इनके पास रहने वालों में एक महत्वपूर्ण बदलाव देखा है। इसकी व्याख्या शुष्क परिस्थितियों में बदलाव करने के रूप में की जाती है, जब झील का स्तर कम हो जाता है।

ऊंचे झील के स्तर का एक अलग पैटर्न है, जो तिब्बती साम्राज्य के उदय और शिखर के दौरान गर्म और नमी वाली स्थितियों होने के बारे में बताता है। 600 से 800 ई.पू., हालात गंभीर सूखे की ओर बढ़ने से, साम्राज्य का लगभग पतन होना शुरू हो गया था।  

800 से 877 ई.पू., चेन और सहयोगी ने सूखे की वजह से फसल बर्बाद होने की आशंका जताई, जिससे आबादी के बीच धार्मिक और राजनीतिक चुनौतियों के साथ-साथ सामाजिक अशांति पैदा हो गई, जिसके कारण साम्राज्य का अंत हो जाता है।

तिब्बती पठार की ऊंचाई के कारण इस पर जलवायु परिवर्तन का भारी असर पड़ता है, तापमान और वर्षा में उतार-चढ़ाव दुनिया भर में महसूस किए गए औसत से काफी अलग होता है।

अध्ययन में कहा गया है कि, ज़ार्डाई झील आमतौर पर नवंबर से अप्रैल तक बर्फ से ढकी रहती है, लेकिन स्थानीय तापमान में -12.1 डिग्री सेल्सियस से 14.1 डिग्री सेल्सियस के बीच में बदलाव होता है, साथ ही साल भर में 71 मिमी तक बारिश भी होती है। इन वजहों का झील के स्तर और इसलिए उनमें रहने वाले जीवों पर गहरा असर पड़ता है।

2020 में झील से खोदे गए हिस्से के भीतर, 160 डायटम टैक्सा की पहचान की गई थी, हालांकि केवल 23 को काफी प्रचुर मात्रा में माना गया था।

पूर्ववर्ती सीए. 800 ई.पू., डायटम संयोजनों पर दो प्लैटोनिक रूपों, लिंडाविया रेडियोसा और लिंडाविया ओसेलाटा और एम्फोरा पैडीकुलस और एम्फोरा इनारिएन्सिस की अधिकता थी। यहां प्लैंकटोनिक और बेंटिक रूपों का अनुपात गीली और नमी वाली स्थितियों में चरम पर पहुंच गया, जिससे झील का स्तर बढ़ गया।

हालांकि 800 ई.पू., के टिपिंग बिंदु पर बेंटिक डायटम एम्फोरा पैडीकुलस और एम्फोरा इनारिएन्सिस में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जबकि उपरोक्त खुले पानी में लिंडाविया रेडियोसा और लिंडाविया ओसेलाटा में गिरावट आई। यह डायटम समुदाय 1300 ईस्वी तक कायम रहा, जब छोटे हिमयुग के दौरान झील का स्तर एक बार फिर बढ़ना शुरू हुआ।

अध्ययन में आंकड़ों का मिलान तिब्बती पठार के अन्य पुरा-पर्यावरणीय चीजों से किया गया और पुष्टि की गई कि ये जलवायु परिवर्तन का अध्ययन केवल झील तक ही सीमित नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में फैले थे। इसमें 50 किमी उत्तर में स्थित एक दूसरी झील से अनुमानित वर्षा रिकॉर्ड, साथ ही चीन से तापमान रिकॉर्ड भी शामिल थे।

जलवायु परिवर्तन को उस समय की आबादी पर इसके प्रभाव से जोड़ते हुए, कृषि और पशुपालन खेती प्रमुख आजीविका थी, जिसमें यारलुंग ज़ंग्बो नदी घाटी में फसल उत्पादन और क्वांगतांग पठार पर पशुओं की चराई शामिल थी।

साम्राज्य विस्तार के दौरान, गर्मी और बारिश ने फसल उत्पादन और जानवरों के चरने के लिए जंगली चरागाहों को प्रोत्साहित किया होगा, साथ ही उन्हें उगाने की ऊंचाई भी बढ़ी होगी। घोड़े, बकरियां और याक चरने वाले जानवर हैं और तिब्बत की व्यापारिक अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण थे।

हालांकि, लगभग 60 से 70 वर्षों में तुलनात्मक रूप से अचानक जलवायु में आई गिरावट से पौधों की वृद्धि रुक ​​गई, जिससे कृषि और ग्रामीण चराई में कमी आई। इससे भोजन की कमी के साथ-साथ व्यापार-निर्भर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि के साथ आबादी के अस्तित्व पर गंभीर प्रभाव पड़ा।

हो सकता है इसके बाद सामाजिक अशांति फैल गई, विभिन्न राजनीतिक एजेंडे के विखंडन के कारण अंततः तिब्बती साम्राज्य का अंत हो गया।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा, आज, कृषि और ग्रामीण गतिविधियां तिब्बत की वार्षिक आय का आधे से अधिक हिस्सा हैं, इसलिए कठोर वातावरण में समुदायों पर जलवायु के प्रभाव को समझना यह सुनिश्चित करने के लिए सर्वोपरि है कि वे न केवल जीवित रहें, बल्कि वे फलें-फूलें।

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