जैव विविधता के संरक्षण योजनाओं को प्रभावित कर रहा है जलवायु परिवर्तन

अध्ययन में पाया गया कि 51 फीसदी देशों ने उन जगहों में नए संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण किया है जहां जलवायु में बदलाव धीमी गति से हो रहा है

By Dayanidhi

On: Wednesday 17 February 2021
 

एक दशक से भी अधिक समय से, दुनिया भर के देशों में, वहां की सरकारों ने जैव विविधता के संरक्षण के लिए अपने संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क को फैलाने के लिए काफी काम किया है। एक नए अध्ययन के अनुसार, इन संरक्षित क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन से लंबे समय तक पड़ने वाले प्रभावों को ध्यान में नहीं रखा गया है। 

राष्ट्रीय उद्यानों जैसे संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण और प्रबंधन जैव विविधता संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। जलवायु परिवर्तन के रूप में, हालांकि, प्रजातियों को अपने विशिष्ट निवास स्थान की जरूरतों को बनाए रखने के लिए इसे फैलाना होगा। वे प्रजातियां जो 10 साल पहले संरक्षित क्षेत्रों में थीं, वे संरक्षित क्षेत्र के बाहर के क्षेत्र में जा सकती हैं। ताकि वे सहने योग्य तापमान और भोजन की खोज कर सकें, जो उनके जीवित रहने के लिए आवश्यक है।

बदलती जलवायु में प्रजातियां कहां पलायन करेंगी इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। इसके बजाय, नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर मैथमेटिकल एंड बायोलॉजिकल सिंथेसिस (निंबिओस) और यूनिवर्सिटी ऑफ टेनेसी डिपार्टमेंट ऑफ इकोलॉजी एंड इवोल्यूशनरी बायोलॉजी (ईईबी) के अध्ययनकर्ताओं ने जैव विविधता संरक्षण के लिए यह देखने का फैसला किया कि संरक्षित क्षेत्रों के बाहर कितनी जमीन उपलब्ध है जो संभावित रूप से नए संरक्षित क्षेत्रों के रूप में काम कर सकती है।   

उन्होंने जलवायु परिवर्तन के तहत जैव विविधता को बनाए रखने के लिए संरक्षित क्षेत्रों के नेटवर्क का विस्तार करने के लिए उपयोग किए जाने वाले तीन प्रमुख प्राथमिकता वाले दृष्टिकोणों का पहला विश्व स्तरीय मूल्यांकन किया है। बदलते परिवेश में जैव विविधता और प्रजातियों के आवास की जरूरतों को पूरा करने, उनको बचाएं जाने के परिणाम अच्छी तरह से नहीं आते हैं। यह अध्ययन ग्लोबल चेंज बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

अध्ययनकर्ता लुइस कार्रास्को ने कहा हमने उन स्थानों का अध्ययन किया जो जलवायु परिवर्तन के रूप में जैव विविधता के लिए सबसे अधिक अहम थे, लेकिन हमने पाया कि अधिकांश देश इस प्रकार की भूमि को संरक्षण की योजना में शामिल नहीं करते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने उन क्षेत्रों में स्थित नए संरक्षित क्षेत्रों के परिमाण को देखा जहां जलवायु परिवर्तन के धीमा होने का अनुमान है, ऐसे क्षेत्र जहां अधिक संख्या में प्रजातियों को आश्रय दे सकते हैं और ऐसे क्षेत्र जो संरक्षित क्षेत्रों के बीच संपर्क बढ़ाते हैं, जो प्रजातियों को प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों से बचने के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाने की अनुमति देते हैं।

कार्रास्को ने कहा कि नए संरक्षित क्षेत्र कहां बनाएं जाए, यह तय करना बहुत कठिन है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के तहत जैव विविधता की रक्षा करने में मदद करने की संभावना वाले क्षेत्रों की अनदेखी करना खतरनाक हो सकता है। क्योंकि हमें यकीन नहीं है कि वर्तमान संरक्षित क्षेत्र जैव विविधता के भविष्य के वितरण को पर्याप्त रूप से कवर कर सकते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने प्रत्येक देश की भूमि में संरक्षित क्षेत्रों को जोड़ने की क्षमता को भी देखा जो भविष्य में जैव विविधता के स्तर को बनाए रख सकते हैं।

ईईबी के सहायक प्रोफेसर और अध्ययनकर्ता जिंगली गियाम ने बताया कि हमारे अध्ययन में शामिल 94 फीसदी देशों में भूमि की बेहतर तरीके से सुरक्षा करने की क्षमता है जहां जलवायु धीरे-धीरे बदल रही है। इस तरह की भूमि जैव विविधता के लिए एक शरण के रूप में उपयोग हो सकती है, जिसमें घाटियां, पहाड़ और जलाशय वाली भूमि शामिल है।

हमने पाया कि 51 फीसदी देशों ने उन जगहों में नए संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण किया है जहां जलवायु में बदलाव धीमी गति से हो रहा है। जबकि 58 फीसदी ने जहां जैविक विविधता नहीं है ऐसे क्षेत्रों में संरक्षित क्षेत्र बनाएं है, इन जगहों पर ऐसी भूमि का चुनाव किया गया है, जहां लोग नहीं रहते हैं या वहां तक पहुंच आसान नहीं है।

हमें उम्मीद है कि देश लंबी अवधि में जैव विविधता के संरक्षण के लिए अपनी जलवायु अनुकूलन रणनीतियों में सुधार के अवसरों की पहचान करने के लिए हमारे निष्कर्षों का उपयोग करेंगे।

अध्ययन से पता चलता है कि देशों ने जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जैव विविधता की रक्षा के लिए संरक्षित क्षेत्रों की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है।

कार्रास्को ने कहा संरक्षित क्षेत्रों का पता लगाने और उन्हें संभालने के लिए वर्तमान में कई तरह की रणनीतियां विकसित की जा रही हैं। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले दशक के दौरान इन रणनीतियों को व्यापक रूप से लागू किया जाएगा।

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