जलवायु संकट: प्राकृतिक बर्फ को तरस जाएंगे यूरोप के 98 फीसदी स्की रिसॉर्ट

रिसर्च से पता चला है कि तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यूरोप के करीब 98 फीसदी स्की रिसॉर्ट प्राकृतिक बर्फ के लिए जद्दोजहद कर रहे होंगें

By Lalit Maurya

On: Tuesday 05 September 2023
 
दिसंबर के दौरान आल्प्स के एक स्की बेस में जमा सैलानियों की भीड़; फोटो: आईस्टॉक

स्की पर्यटन यूरोप के पर्वतीय क्षेत्रों में अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन जिस तरह जलवायु में बदलाव आ रहे हैं उसके चलते इसपर मंडराता खतरा और गहराता जा रहा है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यूरोप के करीब 98 फीसदी स्की रिसॉर्ट प्राकृतिक बर्फ के लिए जद्दोजहद कर रहे होंगें।

वहीं दूसरे परिदृश्य में यदि हम वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने में कामयाब भी हो जाएं तो भी यूरोप के 53 फीसदी स्की रिसॉर्ट प्राकृतिक बर्फ की भारी कमी का सामना करने को मजबूर होंगें।

वैश्विक तापमान में पहले ही 1.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो चुकी है। वहीं जिस तरह तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके चलते इस बात की आशंका बनी हुई है कि सदी के अंत तक बढ़ता तापमान 2.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। यह जानकारी अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में 28 अगस्त 2023 को प्रकाशित नए अध्ययन में सामने आई है।

रिसर्च से पता चला है कि जैसे-जैसे धरती और गर्म होती जाएगी, स्की पर्यटन के लिए पर्याप्त बर्फ न होने का जोखिम बढ़ता जाएगा। हालांकि यह जोखिम विभिन्न पर्वतीय क्षेत्रों और देशों में अलग-अलग होने की आशंका है। बता दें कि अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 28 यूरोपीय देशों के 2,234 स्की रिसॉर्ट्स पर बढ़ते तापमान के प्रभावों की जांच की है।

गौरतलब है कि यूरोप की बर्फ से ढंकी पहाड़ियां लम्बे समय से सैलानियों को आकर्षित करती रही हैं। यही वजह है कि हर साल बड़ी संख्या में लोग स्की टूरिज्म के लिए यूरोप आते हैं। आंकड़ों की भी मानें तो यूरोप वैश्विक स्तर पर स्की पर्यटन का सबसे बड़ा केंद्र है, जहां दुनिया के करीब आधे स्की रिसॉर्ट्स मौजूद हैं। जो हर साल करीब 248,436 करोड़ रुपए (3,000 करोड़ डॉलर) की आमदनी करते हैं। इसकी मदद से यह स्थानीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

वहीं दुनिया के 80 फीसदी ऐसे स्की रिसॉर्ट्स यूरोप में ही हैं जहां हर साल 10 लाख से ज्यादा स्कीयर आते हैं। लेकिन जैसे-जैसे जलवायु में बदलाव आ रहे हैं यह पहाड़ अपनी बर्फ को खोते जा रहे हैं और स्की टूरिज्म पर खतरा बढ़ता जा रहा है।

विशेषज्ञों की टीम ने यह भी चेताया है कि कृत्रिम तरीके से बनाई बर्फ इस समस्या को आंशिक रूप से हल जरूर कर सकती हैं। लेकिन इसके साथ ही स्नो ब्लोअर जैसी मशीनों के बढ़ते उपयोग से अन्य समस्याएं पैदा हो जाएंगी। पता चला है कि कृत्रिम बर्फबारी के लिए इन मशीनों के बढ़ते उपयोग से बिजली, पानी की मांग बढ़ जाएगी। साथ ही स्की इंडस्ट्री के कार्बन फुटप्रिंट में भी वृद्धि होगी।

कृत्रिम बर्फ के बढ़ते उपयोग से पैदा हो सकती हैं अन्य समस्याएं

रिसर्च में यह भी सामने आया है कि कृत्रिम बर्फ के उपयोग के बावजूद भी तापमान में दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ करीब एक चौथाई से अधिक रिसॉर्ट्स को बर्फ की कमी का सामना करना पड़ेगा। वहीं तापमान में चार डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा बढ़कर 71 फीसदी को पार कर जाएगा।

हाल में किए एक अन्य शोध से पता चला है कि आल्प्स तेजी से अपनी बर्फ खो रहा है। वहां बर्फ में इतनी कमी आई है जितनी पिछले 600 वर्षों में कभी नहीं देखी गई। पता चला है कि वहां बर्फ का आवरण अब पहले की तुलना में 36 दिन कम रहता है।

रिसर्च से पता चला है कि पिछले 50 वर्षों में आल्प्स में प्रति दशक बर्फ के आवरण की अवधि में 5.6 फीसदी की कमी आ रही है। यह यह गिरावट उस क्षेत्र को सबसे ज्यादा प्रभावित कर रही है जहां अर्थव्यवस्था और संस्कृति काफी हद तक सर्दियों के मौसम पर निर्भर है।

ऐसा नहीं है कि इस समस्या केवल आल्प्स ही जूझ रहा है। रिसर्च से पता चला है कि रॉकी पर्वत से लेकर आल्प्स तक स्की रिसॉर्ट्स, विशेष रूप से जो 1,500 मीटर से कम ऊंचाई पर हैं वो पहले ही स्कीइंग के मौसम में कमी और उसकी आदर्श परिस्थितियों में गिरावट का अनुभव कर रहे हैं। इन क्षेत्रों में कभी-कभी बर्फ की जगह बारिश होती है।

इस बारे में फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च के वैज्ञानिक और अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ लेखक सैमुअल मोरिन ने जानकारी दी है कि, “आने वाले समय में यूरोप के सभी पर्वतीय क्षेत्रों में जलवायु में आते बदलावों के चलते स्की रिसॉर्ट्स में पिछले दशकों की तुलना में बर्फ की स्थिति और खराब हो जाएगी।“

इससे पहले जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे एक अध्ययन से पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते यूरोप में अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या बढ़ रही है। वहीं दूसरी तरफ अत्यधिक ठन्डे दिनों की संख्या कम हो रही है। जो आने वाले समय में नए खतरे पैदा कर सकता है।

पता चला है कि यूरोप में सर्द दिन औसतन तीन डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गए हैं। वहीं कई स्थानों पर तो तापमान सर्दियों के औसत तापमान से भी कहीं ज्यादा हो गया है । तापमान में होने वाले इन बदलावों का असर यूरोप के 94 फीसदी से अधिक स्टेशनों पर देखा गया, जो इस बात का स्पष्ट संकेत देता है कि यूरोप में स्थानीय इलाकों पर भी जलवायु परिवर्तन का असर पड़ रहा है।

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