भारत की 30 फीसदी जमीन का मरुस्थलीकरण

भारत सहित दुनियाभर में तेजी से मरुस्थलीकरण बढ़ रहा है। इस पर नियंत्रण के उपायों पर विचार करने के लिए आगामी दो सितंबर, 2019 से ग्रेटरनोएडा में सम्मेलन होने जा रहा है, इसमें दो सौ देश भाग ले रहे हैं

By Anil Ashwani Sharma

On: Friday 26 July 2019
 
Photo: Vikas Choudhary

जलवायु परिवर्तन और लगातार इंसानी गतिविधियों ने भारत में डेजर्टिफिकेशन  (मरुस्थलीकरण ) का प्रतिशत तेजी से बढ़ाया है। यदि आंकड़ों की जुबां में बात करें तो भारत की कुल जमीन का 30 फीसदी हिस्सा मरुस्थल हो चुका है। भारत में मरुस्थली भूमि 2003 से 2013 के बीच तेजी से बढ़ी है। यह बढ़ोतरी 18.07 लाख हेक्टेयर है। यही कारण है कि इस बार भारत आगामी सितंबर,2019 में मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन की मेजबानी करेगा। यह सम्मेलन 2 से 3 सितंबर को ग्रेटर नोएडा (उत्तर प्रदेश) आयोजित किया जा रहा है। वर्तमान में दुनिया का 23 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र मरुस्थलीकरण का शिकार हो चुका है। और भारत सहित पूरी दुनिया में मरुस्थलीकरण तेजी से बढ़ रहा है। इसे यदि आंकड़ों के हिसाब से देखें तो हर मिनट विश्व स्तर पर 23 हेक्टेयर भूमि मरुस्थल में तब्दील होते जा रही है।

इस सम्मेलन में लगभग 200 देशों के भाग लेंगे और मरुस्थलीकरण, भूमि क्षरण और सूखे को नियंत्रित करने के उपायों पर विचार विमर्श करेंगे। भारत की कुल मरुस्थल भूमि का 82 फीसदी हिस्सा देश के 8 राज्यों में सिमटा हुआ है। ये राज्य हैं- राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, मध्य प्रदेश औ तेलांगना। यदि भारत के सूखा प्रभावित जिलों में से 21 ऐसे जिले, जिनका 50 फीसदी से अधिक जमीन मरुस्थलीकरण की भेंढ़ चढ़ चुका है। 2003 से 2013 के बीच देश के नौ जिलों में मरुस्थलीकरण दो प्रतिशत से अधिक दर से बढ़ा है। 

मरुस्थलीकरण  पर रोक लगाने की अपनी कार्रवाई के तहत, भारत ने पिछले महीने पांच राज्यों हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड और कर्नाटक में अपने कटे हुए जंगलों को दुबारा हरा-भरा करने के लिए एक पायलट परियोजना शुरू की है। यह परियोजना इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर के साथ शुरू की गई है। इस परियोजना को देश भर में शेष राज्यों को कवर करने के लिए आगे बढ़ाया जाएगा। चूंकि भूमि क्षरण को विकसित और विकासशील दोनों देशों में शांति और सुरक्षा के लिए बढ़ते खतरों का एक प्रमुख कारण माना जाता है, क्योंकि आजीविका के व्यापक नुकसान के कारण  संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन  कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन के सदस्य देशों ने पहले ही इस नुकसान को बदलने के लिए  अपनी प्रतिबद्धता जताई है। इस संबंध में भारत में स्थिति काफी गंभीर है, जहां इसके भौगोलिक क्षेत्र (328.7 मिलियन हेक्टेयर) के एक-तिहाई क्षेत्र प्रभावित होता है।

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