जलवायु परिवर्तन से विकासशील देश होंगे सबसे अधिक प्रभावित

अध्ययन में दुनिया के 82 देशों के विश्लेषण के बाद कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सबसे अधिक नुकसान विकासशील देशों को होगा, इसमें अंगोला को सबसे अधिक नुकसान होगा

By Dayanidhi

On: Friday 22 November 2019
 
जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक नुकसान अंगोला को हो सकता है। Photo: Creative commons

क्लाइमेट चेंज रेजिलिएंस इंडेक्स के नए विश्लेषण के अनुसार जलवायु परिवर्तन विश्व अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा, जिसके कारण 2050 तक 7.9 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की लागत आएगी, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता सूखा, बाढ़ और फसल के उत्पादकता में कमी आदि के आधार पर इस राशि का अनुमान लगाया गया है।

इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) क्लाइमेट चेंज रेजिलिएंस इंडेक्स ने पाया कि कुछ देश जलवायु परिवर्तन को लेकर गंभीर है और अगर उन्होंने अपने प्रयास जारी रखे तो वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से कम रहता है तो वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में तीन फीसदी वृदिध् हो सकती है। 

विश्लेषण में प्रत्येक देश को जलवायु परिवर्तन से होने वाले नुकसान के प्रत्यक्ष खतरों का आकलन किया गया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की घटनाएं लगातार बढ़ रहीं हैं। विश्लेषण से पता चला कि अफ्रीका सबसे अधिक जोखिम में है।ईआईयू कंट्री एनालिसिस डायरेक्टर जॉन फर्ग्यूसन ने कहा, जब हम पहले से ही वैश्विक असमानता से निपट रहे हैं, वहीं जलवायु परिवर्तन के प्रभाव विकासशील देशों के लिए बहुत बड़ी चुनौती लेकर आए हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया-प्रशांत की अर्थव्यवस्था को 2050 तक 2.6 फीसदी तक के नुकसान की आशंका है, इस क्षेत्र में विकासशील देशों के सबसे अधिक प्रभावित होने की आशंका व्यक्त की गई है। जबकि अंगोला को 6.1 फीसदी जीडीपी का नुकसान हो सकता है। 

अध्ययन में क्वालिटी इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी के साथ-साथ गंभीर सूखे, मिट्टी का कटाव और बढ़ते समुद्र के स्तर के भौगोलिक खतरों को भी इसमें शामिल किया है। अध्ययन में कहा गया कि अंगोला में भूमि क्षरण एक बहुत बड़ी आर्थिक बाधा साबित होगी, क्योंकि कृषि इस देश का सबसे अधिक रोजगार देने वालों में से एक है। नाइजीरिया (5.9 प्रतिशत जीडीपी में नुकसान), मिस्र (5.5 प्रतिशत), बांग्लादेश (5.4 प्रतिशत) और वेनेजुएला (5.1 प्रतिशत) विश्लेषण में ये सबसे अधिक जलवायु की चपेट में आने वाले देश थे।

जॉन फर्ग्यूसन ने कहा, रूस ने 2050 तक सकल घरेलू उत्पाद का पांच प्रतिशत नुकसान का पूर्वानुमान लगाया है, रूस जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अधिक प्रभावित होगा। दुनिया के देशो ने 2015 में पेरिस में तापमान में वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे और यदि संभव हो तो 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित करने की सहमति व्यक्त की थी। ऐसा करने के लिए, वैश्विक अर्थव्यवस्था को तेजी से अपने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना चाहिए।

फर्ग्यूसन ने कहा वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान होने वाला है, इसलिए अब यह बाद में करने का मामला नहीं रहा, हमें जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए कठोर कदम उठाने की जरुरत है। 

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