जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों के चलते कार्बन सिंक से कार्बन उत्सर्जक बनते जा रहे हैं जंगल

विश्व धरोहर स्थलों में 257 वन क्षेत्रों को शुमार किया गया है जो 6.9 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं। यह हर साल वातावरण से औसतन 19 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड सोख रहे हैं

By Lalit Maurya

On: Thursday 28 October 2021
 
योसेमाइट नेशनल पार्क, अमेरिका; फोटो: पिक्साबे

दुनिया भर में जिन जंगलों से यह उम्मीद थी की वो बढ़ते कार्बन को सोख कर जलवायु परिवर्तन के असर को सीमित कर सकते हैं। उनके बारे में यह जानकारी चिंतित कर देने वाली है कि वो जंगल अब मानव गतिविधियों के दबाव में कार्बन सिंक से उत्सर्जक बनते जा रहे हैं।

यह जानकारी यूनेस्को, विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) और इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा सम्मिलित रूप से आज जारी की गई रिपोर्ट 'वर्ल्ड हेरिटेज फारेस्ट: कार्बन सिंक्स अंडर प्रेशर' में सामने आई है। 

रिपोर्ट के मुताबिक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थलों में शुमार यह जंगल पर्यावरण, जलवायु और जैवविधता के दृष्टिकोण से बहुत मायने रखते हैं। लेकिन जिस तरह से जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग के चलते इन पर दबाव बढ़ता जा रहा है उनसे इनकी कार्बन सोखने की क्षमता पर भी असर पड़ रहा है।

इन धरोहर स्थलों में शामिल 10 जंगल तो ऐसे हैं जो अब कार्बन सोखने से ज्यादा उत्सर्जित करने लगे हैं। वहीं विश्व धरोहर स्थलों में शामिल होने के बावजूद पिछले 20 वर्षों के दौरान इन जंगलों का करीब 35 लाख हेक्टेयर हिस्सा नष्ट हो चुका है। देखा जाए तो यह क्षेत्र बेल्जियम के कुल क्षेत्रफल से भी ज्यादा है।

इन 10 वन क्षेत्रों में इंडोनेशिया के उष्णकटिबंधीय वर्षावन, होंडुरस का रियो प्लैटानो बायोस्फीयर रिजर्व, अमेरिका का योसेमाइट नेशनल पार्क, कनाडा और यूएस का वाटरटन ग्लेशियर इंटरनेशनल पीस पार्क, दक्षिण अफ्रीका का द बार्बर्टन माखोंजवा पर्वत, मलेशिया का किनाबालु पार्क, रूस और मंगोलिया में द यूवीएस नूर बेसिन, अमेरिका का ग्रांड कैन्यन नेशनल पार्क, ऑस्ट्रेलिया का ग्रेटर ब्लू माउंटेन क्षेत्र और डोमिनिका का मोर्ने ट्रोइस पिटोन्स नेशनल पार्क शामिल है। 

हालांकि अन्य क्षेत्र अभी भी उत्सर्जन के मुकाबले कहीं ज्यादा कार्बन को सोख रहे हैं पर उनके द्वारा उत्सर्जित कार्बन की मात्रा में इजाफा होता जा रहा है जोकि बड़े खतरे की ओर इशारा करता है, क्योंकि यदि ऐसा ही चलता रहा तो यह वन क्षेत्र भी भविष्य में अवशोषण से कहीं ज्यादा कार्बन उत्सर्जित कर सकते हैं।    

जलवायु के दृष्टिकोण से कितने महत्वपूर्ण है यह वन क्षेत्र

हालांकि रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि विश्व धरोहर स्थलों के रूप में 257 वन शामिल हैं जो करीब 6.9 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में फैले हुए हैं, जोकि जर्मनी से करीब दोगुने क्षेत्र में फैले हैं। इन जंगलों ने करीब 1,300 करोड़ टन कार्बन को अपनी वनस्पति और मिट्टी में अवशोषित किया हुआ है। देखा जाए तो यह इतना कार्बन है जो कुवैत के 10,100 करोड़ बैरल तेल भंडार से उत्सर्जित हो सकने वाले कार्बन की मात्रा से भी ज्यादा है। इस कार्बन का अधिकांश हिस्सा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के जंगलों में संग्रहीत है। 

वहीं यदि 2001 से 2020 के बीच 20 वर्षों की बात करें तो यह स्थल हर साल करीब 19 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से हटा रहे हैं। यह यूनाइटेड किंगडम द्वारा जीवाश्म ईंधन से उत्सर्जित होने वाले कार्बन के लगभग आधे के बराबर है। देखा जाए तो विश्व धरोहर नेटवर्क के कुल शुद्ध कार्बन सिंक के करीब आधे हिस्से के लिए दस बड़े स्थल जिम्मेदार थे।

लेकिन ऐसे छोटे क्षेत्र भी हैं जो कार्बन अवशोषित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जो स्थानीय जलवायु के दृष्टिकोण से भी काफी महत्वपूर्ण हैं । वहीं इनमें से 55 स्थल ऐसे हैं जहां के प्रति हेक्टेयर वन औसतन एक वर्ष में उतना कार्बन अवशोषित कर सकते हैं जितना एक यात्री वाहन उत्सर्जित करता है। 

वर्ल्ड हेरिटेज कन्वेंशन और आईयूसीएन वर्ल्ड हेरिटेज आउटलुक 2020 के मुताबिक इन विश्व धरोहर स्थलों में शुमार जंगलों के लिए सबसे बड़ा खतरा जलवायु परिवर्तन और भूमि उपयोग में आता बदलाव है, जिसमें जंगलों की अवैध कटाई, कृषि और पशु चारण के लिए किया जा रहा अतिक्रमण, जंगलों में लगने वाली आग जैसी गतिविधियां शामिल हैं। इन धरोहर स्थलों के करीब 60 फीसदी क्षेत्रों पर इस तरह के खतरे रिपोर्ट किए गए हैं।

यह जंगल न केवल हमारी धरोहर हैं साथ ही यह जलवायु और जैवविविधता संरक्षण के मामले भी महत्वपूर्ण हैं। ऐसे में यह जरुरी है कि इन जंगलों को बचाने के लिए गंभीरता से प्रयास किए जाने चाहिए। जिससे यह भविष्य में भी कार्बन सिंक बने रह सकें और पहले की तरह ही कार्बन को वातावरण से अवशोषित करते रहें।  

Subscribe to our daily hindi newsletter