कॉप 28 में भारत ने साझा की पहाड़ों पर किए जा रहे बचाव कार्यों की योजना

दुबई में आयोजित कॉप28 में भारतीय पवेलियन में हिमालय व पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन के असर पर चर्चा की गई

By DTE Staff

On: Friday 08 December 2023
 
फोटो: पीआईबी

ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से धरती को बचाने के लिए दुबई में आयोजित किए जा रहे वैश्विक सम्मेलन कॉप-28 का पहला सप्ताह पूरा हो चुका है। कई शपथ ली जा चुकी हैं, वादे किए जा चुके हैं। ‘नेचर पाजिटिव’, ‘यूनाइट एक्ट डिलीवर’, ‘साइंस इज द कोर’ और ‘साइंस इटसेल्फ इज नो सब्स्टीट्यूट फार एक्शन’ जैसे दिल को लुभाने वाले नारे और पंचलाइन बोली जा चुकी हैं।

198 देशों के एक लाख से अधिक प्रतिनिधि कॉप-28 में विचार-विमर्श कर रहे हैं, चिंता जता रहे हैं। सम्मेलन अब तक जीएसटी सत्र में उम्मीद जगातीं कुछ अच्छी पहल का साक्षी भी बन चुका है जिसमें सत्र के पहले ही दिन लास एंड डैमेज फंड की शपथ जैसा अहम कदम भी शामिल है।

मुख्य विचार विमर्श से इतर एक और अहम विषय पर भारत ने कॉप-28 के मंच पर एक चर्चा आयोजित की। यह चर्चा पर्वतों की पर्यावरणीय सेहत, विशेषकर हिमालय के बारे में थी। 

चर्चा का नेतृत्व भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग में जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा विभाग की प्रमुख अनिता गुप्ता ने किया। उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते दुष्प्रभावों से निपटने की तत्काल आवश्यकता बताते हुए इस दिशा में भारत द्वारा किए जा रहे कार्यों की विस्तार से जानकारी दी।

चर्चा में शामिल भारतीय और विदेशी प्रतिनिधियों ने भारत के क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम (सीसीपी) के तहत नेशनल एक्शन प्लान के बारे में गहन विमर्श किया। इसमें पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन के खतरों का आकलन, क्रायोस्फीयर के क्षेत्रीय परिदृश्य, मणिपुर में क्लाइमेट रिस्क प्रोफाइल का आकलन और भारतीय हिमालय क्षेत्र में सतत विकास के लिए किए जा रहे जलवायु अनुकूल प्रयासों की जानकारी शामिल रही।

चर्चा के दूसरे सत्र में सह आयोजक हिमाचल सरकार रही जिसमे नेशनल मिशन ऑन सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम के तहत किए जा रहे प्रयासों की जानकारी दी गई। हिमाचल प्रदेश के प्रतिनिधि ने जलवायुनुकूल गांवों के विकास के साथ कृषि और बागवानी में भी पर्यावरण हितैषी कदमों के बारे में बताया। उत्तराखंड के अल्मोड़ा स्थित जीबी पंत नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन एनवायरमेंट के निदेशक प्रो सुनील नौटियाल ने भी सत्र में विचार साझा किए।

यूकॉस्ट के महानिदेशक  प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने पारंपरिक ज्ञान के साथ-साथ विकास में विज्ञान और प्रौद्योगिकी का हस्तक्षेप ही आगे बढ़ने का सही रास्ता है और हम उत्तराखंड में इसे भावनाओं को ध्यान में रखते हुए व्यावहारिक तौर पर अपना रहे हैं।

सतत विकास के लिए अर्थशास्त्र, पारिस्थितिकी और प्रौद्योगिकी के संगम पर हमारे राज्य का ध्यान केंद्रित है और इसे कॉप28 में भी प्रस्तुत किया गया है। हम जीईपी (सकल पर्यावरण उत्पाद) का अनुसरण कर रहे हैं और यही आगे बढ़ने का रास्ता है।

गुटेरस ने विश्व, खासकर विकसित राष्ट्रों से अपील की है कि पर्वतीय देशों को तेजी से ग्लेशियर पिघलने की चुनौती से निपटने में मदद करें। भारतीय पवेलियन में जो चर्चा हुई उसका विषय ‘ हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव और परिणाम तथा जलवायनुकूल विकास की राह खोजना’था।

कृषि एवं खाद्य संगठन (एफएओ) के महानिदेशक क्यू डोंगयू ने दो दिसंबर को कॉप-28 में एक उच्च स्तरीय राउंड टेबल परिचर्चा ‘काल आफ द माउंटेंसः हू सेव्स अस फ्राम का क्लाइमेट क्राइसिस’ का संयोजन किया जो नेपाल सरकार ने कराई थी।

दुनिया में विकराल होती जलवायु समस्या के लिए पर्वत (हमारे लिए कहें तो हिमालय) सबसे कम दोषी हैं लेकिन बदलते पर्यावरण का कोप वही सबसे अधिक झेल रहे हैं। ऊंचाई पर निर्भर तापमान वृद्धि से जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहाड़ में बसे लोगों की स्थिति और दुश्वार कर रहा है। इस स्थित को इंडियन स्कूल आफ बिजनेस के डा. अंजल प्रकाश और स्पष्ट करते हैं।

वह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन और पहाड़ लंबे समय से विवाद का विषय रहे हैं। कॉप-28 में इन्हें उठाया जाना सही कदम है। हिमालयी क्षेत्र बीते एक-दो वर्ष में जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर घटनाओं का सामना कर रहा है। इन घटनाओं की संख्या और तीव्रता आने वाले समय के साथ तेज होगी और जलवायु परिवर्तन इसे और बढ़ा रहा है।

भारत में हिमाचल और उत्तराखंड जलवायु संबंधी चरम मौसमी घटनाओं का प्रकोप झेल रहे हैं। इसी कारण एक साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन की अतिगंभीर समस्या से निपटने की जरूरत है। 1.5 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ने का लक्ष्य इस सदी के अंत तक का था जो अब वर्ष 2050 तक पहुंच चुका है।

क्लाइमेट माडल बता रहे हैं कि विश्व में अपनी स्थिति के अनुसार हम सदी के अंत तक दो से तीन डिग्री अधिक तापमान की स्थिति में पहुंच सकते हैं। हिमालयी और ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में ऊंचाई पर निर्भर तापमान वृद्धि वैश्विक औसत से कहीं अधिक होगी।

इसके प्रभाव से ग्लेशियर जल्द और अधिक तेजी से पिघलने लगेंगे। ये ग्लेशियर दक्षिण एशिया की दस नदियों के लिए स्रोत की तरह हैं, जिस कारण पानी की भारी कमी की समस्या सामने आएगी जैसा कि हम पहले भी बताते रहे हैं।

यूएन चीफ़ ने पहले ही कप 28 के पटल से समक्ष पर्वतीय क्षेत्रों पर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव पर गहरी चिंता जताते हुए सभी देशों को ध्यान देने की अपील की है। यूएन के महासचिव एंटोनियो गुटेरस ने दो दिसंबर को कहा कि पहाड़ गंभीर चेतावनी दे रहे हैं और कॉप-28 को मजबूत राहत योजना के साथ सामने आना चाहिए।

आंकड़े बताते हैं कि विश्व में करीब दो अरब लोग पहाड़ों की तलहटी में बसे हैं। ग्लेशियर पिघलने से पहाड़ों पर बसे लोग अचानक आने वाली बाढ़ के खतरे की जद में होंगे।

पहाड़ों की गंभीर स्थिति को देखते हुए ही कॉप-28 के अध्यक्ष सुल्तान अल जाबेर ने उद्घाटन समारोह के बाद पहले पूर्ण सत्र में संवदेनशील पर्वतीय इकोसिस्टम की संरक्षा की जरूरत का संकेत करते हुए कहा था कि कॉप के पूरक एजेंडा के अनुसार ‘माउंटेंस एंड क्लाइमेट चेंज’ विषय पर चर्चा हो ।

दुबई में चल रहे  कॉप-28 जलवायु सम्मेलन में वैश्विक जलवायु प्रणाली में पर्वतीय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण भूमिका पर विस्तार से चर्चा की गई। सम्मेलन में पर्वतीय देशों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। सम्मेलन में कहा गया कि यह पहल न केवल 100 से अधिक देशों में रहने वाले एक अरब से अधिक लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि संपूर्ण पृथ्वी के लिए भी एक जरूरी विषय है।

पर्वतीय जलवायु का स्वास्थ्य सीधे तौर से वैश्विक जलवायु से जुड़ा हुआ है। सम्मलेन का उद्देश्य इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करते हुए इस दिशा में ठोस रणनीती तैयार करना व सभी देशों का सहयोग सुनिश्चित करना रहा। किर्गीस्तान 20 वर्षों से अधिक समय से सभी स्तरों पर पर्वतीय मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय वार्ता में एकीकृत करने का समर्थन कर रहा है।

सम्मेलन के पहले प्लेनरी सेशन में उम्मीद जताई गई कि इस पहल के कार्यान्वयन में, संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के तहत अपनाई गई वैश्विक कार्य योजना के कार्यान्वयन में न केवल पर्वतीय देश बल्कि अन्य सभी देश अपना समर्थन देंगे। किर्गीस्तान द्वारा आह्वान किया गया कि पर्वतीय देश एकजुट होकर जलवायु परिवर्तन की दिशा में पर्वतीय पारिस्थितिकी प्रणालियों की जलवायु और पर्यावरणीय समस्याओं के समधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।

भूटान: भूटान ने कॉप 28 में पहाड़ और जलवायु परिवर्तन पर बातचीत के लिए किर्गिस्तान के हस्तक्षेप का दृढ़ता से समर्थन किया। वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर यह बात साबित हो चुकी है कि पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति बेहद संवेदनशील है।

जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय के इकोसिस्टम को काफी क्षति हो चुकी है जो निरंतर जारी है। आईपीसीसी रिपोर्ट के मुताबिक पिछले तीन दशकों से बर्फ की चादर के नुकसान में चार गुना वृद्धि हुई है।

वैश्विक स्तर पर अगर देखें तो हिमालय में ग्लेशियर पिघलने की घटना ज्यादा चिंताजनक है। ग्लोबल वार्मिंग की दर 1.5 डिग्री सेल्सियस है और इस गति से एक अनुमानुसार वर्ष 2100 तक हिंदूकुश क्षेत्र के एक तिहाई ग्लेशियर खत्म हो जाएंगे।

उच्च प्रभाव वाली जलवायु घटनाएं कृषि, ऊर्जा, जैव विविधता, वन, खाद्य सुरक्षा, बुनियादी ढांचे, सार्वजनिक स्वास्थ्य और विकास जैसे संवेदनशील क्षेत्रों पर दबाव डाल रही हैं। इससे लोगों की आजीविका पर भी मुश्किलें आ रही हैं।

ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव न केवल पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित है, बल्कि मैदानी इलाकों में भी तेजी से बर्फ की चादर पिघलने से सदी के अंत से पहले ही समुद्र के स्तर में विनाशकारी वृद्धि हो सकती है।

आईपीसीसी रिपोर्ट ने पुष्टि की है कि बर्फ की चादर और ग्लेशियर द्रव्यमान (ग्लेशियर मास) के नुकसान ने 2006 से 2018 तक दुनिया के समुद्र स्तर में औसतन 42% की वृद्धि की है जिसके परिणामस्वरूप छोटे द्वीप और पर्वतीय आबादी क्षेत्र विलुप्त हो जाएंगे।

साभार: क्लाइमेट ट्रेंडस

Subscribe to our daily hindi newsletter