पिछले 38 सालों में उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों के ग्लेशियरों की 93 फीसदी बर्फ हुई गायब

दूसरा सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय ग्लेशियरों का इलाका, क्वेल्काया आइस कैप का सतही क्षेत्र है, जहां 1976 से 2020 तक बर्फ के क्षेत्र में 46 फीसदी की कमी आई।

By Dayanidhi

On: Wednesday 30 June 2021
 
Photo : Wikimedia Commons, Quelccaya Glacier

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि सभी चार गोलार्द्धों के उष्णकटिबंधीय इलाकों में पहाड़ की चोटी के ग्लेशियरों की बर्फ काफी कम हो गई है। पिछले 50 सालों से भी कम समय में बर्फ का यह क्षेत्र 93 फीसदी कम हो गया है।

अध्ययन के अनुसार पापुआ न्यू गिनी में पुनकक जया के पास के एक ग्लेशियर से 1980 से 2018 तक 38 साल की अवधि में लगभग 93 फीसदी बर्फ का नुकसान हो गया है। 1986 से 2017 के बीच अफ्रीका में किलिमंजारो के शीर्ष पर ग्लेशियरों द्वारा कवर किए गए क्षेत्र में लगभग 71 फीसदी की कमी आई है।

यह नासा के उपग्रह इमेजरी के द्वारा दुनिया भर के उष्णकटिबंधीय इलाकों में ग्लेशियरों की बर्फ का पता लगाने वाला पहला अध्ययन है। आंकड़ों से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से ये ग्लेशियर गायब हो रहे हैं। ये ग्लेशियर लंबे समय से आस-पास रहने वाले लोगों के लिए पानी के स्रोत रहे हैं। यह इस ओर इशारा करता है कि हाल के वर्षों में उन ग्लेशियरों ने अपनी आधे से अधिक बर्फ को खो दिया है।

प्रमुख अध्ययनकर्ता और ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर लोनी थॉम्पसन ने कहा कि दो डेटासेट ने शोधकर्ताओं को यह निर्धारित करने में मदद की कि उष्णकटिबंधीय इलाकों में ग्लेशियरों से कितनी बर्फ का नुकसान हो गया है। 

अध्ययन में चार क्षेत्रों के ग्लेशियरों द्वारा कवर किए गए क्षेत्र में बदलाव की तुलना की गई। जिसमें तंजानिया में किलिमंजारो, पेरू और बोलीविया में एंडीज, तिब्बती पठार और मध्य और दक्षिण एशिया के हिमालय और पापुआ, न्यू गिनी, इंडोनेशिया में बर्फ के इलाके शामिल थे।

थॉम्पसन ने इन सभी ग्लेशियरों के लिए अभियानों का नेतृत्व किया है और प्रत्येक से बर्फ के बारे में पता लगाया है। कोर बर्फ के लंबे स्तंभ हैं जो सदियों से सहस्राब्दियों तक क्षेत्रों की जलवायु के लिए एक समय सीमा के रूप में कार्य करते हैं।

जैसे ही हर साल एक ग्लेशियर पर बर्फ गिरती है, इसपर बर्फ की परतें बनती जाती हैं जो कि बर्फ के रसायन विज्ञान के जाल को संरक्षित करते हैं। शोधकर्ता उन परतों का अध्ययन कर सकते हैं और यह निर्धारित कर सकते हैं कि बर्फ के बनने के समय वातावरण में क्या मौजूद था।

2019 में दुनिया के सबसे ऊंचे उष्णकटिबंधीय पर्वत, हुआस्करन की चोटी की एक छवि ली गई, जिसमें देखा गया कि बर्फ की कमी की वजह से इसके नीचे की चट्टान उजागर हो रही है।

कोलोराडो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए विश्लेषणों से पता चला है कि 1970 से 2003 तक उस पहाड़ की चोटी पर ग्लेशियर की बर्फ का क्षेत्र लगभग 19 फीसदी कम हो गया था। दूसरा सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय ग्लेशियरों का इलाका, क्वेल्काया आइस कैप का सतही क्षेत्र है, जहां 1976 से 2020 तक बर्फ के हिस्से में 46 फीसदी की कमी आई।

थॉम्पसन के पहले अभियान के समय के आसपास, नासा ने अपने लैंडसैट मिशन का पहला संस्करण लॉन्च किया था। लैंडसैट उपग्रहों का एक संग्रह है जो पृथ्वी की सतह की तस्वीर लेता है और 1972 से विभिन्न रूपों में काम कर रहा है। यह पृथ्वी, बर्फ और पानी का सबसे लंबा निरंतर अंतरिक्ष आधारित आंकड़े अथवा रिकॉर्ड प्रदान करता है।

थॉम्पसन ने कहा हमारे पास इन पहाड़ों के बर्फ के कोर रिकॉर्ड हैं और लैंडसैट में ग्लेशियरों की विस्तृत छवियां हैं, यदि हम उन दो डेटा सेटों को जोड़ते हैं, तो हम स्पष्ट रूप से देखते हैं कि वहां क्या हो रहा है।  

उष्णकटिबंधीय इलाकों में ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के प्रति अधिक तेजी से प्रतिक्रिया करते हैं । चूंकि वे दुनिया के सबसे गर्म क्षेत्रों में मौजूद हैं। वे केवल बहुत अधिक ऊंचाई पर ही जीवित रह सकते हैं जहां की जलवायु ठंडी होती है। पृथ्वी के वायुमंडल के गर्म होने से पहले, वहां की बर्फ के रूप में गिर जाता है। अब, इसका अधिकांश भाग बारिश के रूप में गिरता है जिससे मौजूदा बर्फ और भी तेजी से पिघलती है।

मैरीलैंड-बाल्टीमोर काउंटी विश्वविद्यालय में सहयोगी शोध प्रोफेसर क्रिस्टोफर शुमन ने कहा अब अधिक ऊंचाई पर बर्फ लगातार नहीं रह सकती है। गर्म हवा के चलते पिघलती हुई बर्फ का क्षेत्र बहुत कम हो जाता है, जबकि बहुत अधिक ऊंचाई पर अभी भी एक निश्चित मात्रा में बर्फ के गिरने से वहां का वातावरण  पर्याप्त ठंडा हो जाता है, लेकिन बर्फ के इस क्षेत्र को उस आयाम तक बनाए रखना आसान नहीं है।

लगातार अधिक मात्रा में पिघलते उन ग्लेशियरों के पास रहने वाले लोगों पर इसका गहरा असर हो सकता है। अध्ययन में क्वेल्काया के बर्फ वाले इलाके के पास रहने वाले एक समुदाय की कहानी और ग्लेशियर से पास की झील में गिरने वाली भारी मात्रा में बर्फ के कारण बाढ़ के बाद का विवरण दिया गया है। बाढ़ ने उन खेतों को नष्ट कर दिया जहां किसान परिवार ने खेती करने में वर्षों बिताए थे और परिवार को इतना डरा दिया कि वे शहर में एक नया जीवन शुरू करने के लिए मजबूर हो गए।

पापुआ न्यू गिनी में, बर्फ वाली जगहों के पास रहने वाले कई स्वदेशी लोगों के लिए बर्फ का सांस्कृतिक महत्व है, क्योंकि वे बर्फ को अपने भगवान का सिर मानते हैं। थॉम्पसन का मानना ​​है कि वहां के बर्फ के क्षेत्र दो या तीन साल के भीतर पूरी तरह से गायब हो जाएंगे। थॉम्पसन ने कहा उन ग्लेशियरों के लिए बहुत देर हो चुकी है, लेकिन वातावरण में उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा को धीमा करने का प्रयास करने में अभी भी देरी नहीं हुई, जो ग्रह को गर्म कर रहे हैं।

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