कार्बन का रहस्यमय व्यापार

हमने पाया है कि मौजूदा कार्बन बाज़ार दुनिया में उत्सर्जन बढ़ा सकते हैं।

By Sunita Narain

On: Wednesday 25 October 2023
 

इस वर्ष के अंत में दुबई में होने वाले अगले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (कॉप 28) में कार्बन बाजार के विनियमन के मुद्दे पर चर्चा की जाएगी। दुनिया भर के नेताओं को स्वैच्छिक कार्बन बाजार की गलतियों से सीखने की जरूरत है ताकि वैश्विक परिवर्तन के लिए बनाया गया यह नया बाजार तंत्र, उन्हें न दोहराए। “डिसक्रेडिटेड” पत्रिका (1-15, अक्टूबर 2023) और सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की रिपोर्ट में प्रकाशित हमारी जांच में कई ऐसे असुविधाजनक सत्य पाए गए हैं जो हमें बदलाव लाने की दिशा में प्रेरित कर सकते हैं।
हमने पाया है कि मौजूदा कार्बन बाजार दुनिया में उत्सर्जन बढ़ा सकते हैं। क्रेडिट के खरीदार (उदाहरण के तौर पर कोई  एयरलाइन जिसने अपने ग्राहकों को अपने कार्बन फुटप्रिंट की भरपाई करने का आश्वासन दिया है या एक खाद्य कंपनी जिसने खुद को नेट-जीरो घोषित किया है) अपना उत्सर्जन जारी रखते हैं या कई मामलों में उन्होंने यह कहते हुए अपना उत्सर्जन बढ़ा दिया है कि उन्होंने क्रेडिट खरीदा है। लेकिन चूंकि ये क्रेडिट या तो अपने असली मूल्य से कहीं अधिक मार्क किए हुए हैं या वे अस्तित्व ही नहीं रखते इसलिए ये कटौती काल्पनिक ही है। यह  एक ऐसा दोहरा खतरा है जिसकी जलवायु संकटग्रस्त दुनिया को कोई आवश्यकता     नहीं है।
यह स्पष्ट है कि पहला कदम बाजार में पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। जब मेरे सहकर्मियों ने जानकारी इकठ्ठा करने का प्रयास किया तो उन्हें कड़े प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। उन्हें परियोजना स्थलों पर जाने से पहले गैर-प्रकटीकरण (डिस्क्लोजर) समझौतों (एनडीए) पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा गया था। उन्हें (पेरिस स्थित एक निवेशक कंपनी द्वारा) यह भी कहा गया था कि भारतीय गांवों में यात्रा करना बहुत खतरनाक था और प्रमुख कंपनियों में से एक ईकी एनर्जी सर्विसेज ने कहा था कि “कंपनी साइलेंट पीरियड में चल रही है।”
दूसरा कदम है बाजार के उद्देश्यों को तय करना, स्वैच्छिक, द्विपक्षीय या बहुपक्षीय और तदनुसार नियम डिजाइन करना। यदि बाजार का उद्देश्य उन परियोजनाओं में निवेश करना है जिससे दुनिया के विभिन्न हिस्सों में उत्सर्जन में कमी आएगी, तो बाजार को परियोजनाओं की वास्तविक लागत के भुगतान पर आधारित होना चाहिए। वर्तमान में, बाजार नवीकरणीय ऊर्जा परियोजना या बायोगैस परियोजना की लागत से कम भुगतान करता है। गरीब वस्तुतः इस बाजार में अमीर उत्सर्जकों को सब्सिडी दे रहे हैं।
तीसरा, बाजार केवल परियोजना डेवलपर्स, सलाहकारों और लेखा परीक्षकों के हित में काम करता प्रतीत होता है। समुदायों को इस आमदनी  से वस्तुतः कुछ भी नहीं मिलता है और इसका मतलब है कि उत्सर्जन कटौती कार्यक्रम में उनकी कोई हिस्सेदारी नहीं होती। कार्बन बाजार को अपनी सालाना आय को सत्यापन योग्य तरीके से समुदायों के साथ साझा करना आवश्यक होना चाहिए। घरेलू उपकरणों का मुद्दा लेते हैं, उदाहरण के लिए बेहतर कुकस्टोव। यह बाजार तेजी से बढ़ रहा है और यह समझ में भी आता है, क्योंकि यह परियोजना डेवलपर्स के लिए आकर्षक है। चूल्हे की लागत, जो कार्बन क्रेडिट लाभ के संदर्भ में परिवारों को मिलती है, परियोजना के 5 से 6 वर्षों के जीवनकाल में डेवलपर की कमाई का बमुश्किल 20 प्रतिशत है। दूसरे शब्दों में, कार्बन राजस्व का 80 प्रतिशत लाभ के रूप में रखा जाता है और यह एक बड़ी रकम है क्योंकि ऐसी प्रत्येक परियोजना में वितरित करने के लिए हजारों उपकरण होते हैं। और यह तब है जब हम मान रहे हैं कि इन उपकरणों को मुफ्त में बांटा जा रहा हो। कुछ स्थानों पर, जैसा कि हमने पाया है, गरीब परिवारों ने वास्तव में इन कुकस्टोवों के लिए भुगतान किया है और डेवलपर एवं उसके अमीर ऑफसेट ग्राहकों ने भारी मुनाफा कमाया है।
इसके अलावा वास्तविक कार्बन कटौती के बारे में स्पष्ट प्रश्न है, जिसका उपयोग कंपनियों द्वारा उत्सर्जन जारी रखने के लिए किया गया है। घरेलू उपकरण कार्यक्रम के मामले में, कंपनियां स्टोव के वितरण के आधार पर कार्बन कटौती की गणना करती हैं। इसके वास्तविक उपयोग के बारे में बहुत कम जानकारी है। हमारे शोध में पाया गया कि लोग खाना पकाने के लिए कई साधनों  का उपयोग कर रहे थे। इसलिए, परियोजना डेवलपर्स, सत्यापनकर्ताओं, लेखा परीक्षकों और रजिस्ट्रियों की एक पूरी सेना मौजूद होने के बावजूद, परियोजना डेवलपर्स ने  उत्सर्जन में कटौती को व्यापक तौर पर ओवर एस्टीमेट किया है। एक सबक जो अवश्य सीखना चाहिए वह है परियोजना के डिजाइन को सरल रखना और परियोजनाओं का नियंत्रण सार्वजनिक संस्थानों और लोगों के हाथों में देना।
सबसे गंभीर मुद्दा यह है कि कार्बन का भुगतान किसके खाते में किया जाए। यह कोई काल्पनिक प्रश्न नहीं बल्कि वास्तविक प्रश्न है। गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से भारत की 50 प्रतिशत विद्युत ऊर्जा आवश्यकताओं के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, जलविद्युत सहित नवीकरणीय ऊर्जा के प्रत्येक मेगावाट को गिनने और इसमें शामिल करने की आवश्यकता होगी। लगभग 675 भारतीय नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाएं 268 मिलियन कार्बन क्रेडिट के लिए वेरा और गोल्ड स्टैंडर्ड रजिस्ट्री के तहत पंजीकृत हैं, जिनमें से 14.8 करोड़ सेवानिवृत्त हो चुके हैं (या ऑफसेट के खिलाफ दावा किया गया है)। इन्हें भारत के एनडीसी (राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान) में कैसे शामिल किया जा सकता है? या वे शामिल हो सकते हैं? क्या इससे दोहरा हिसाब-किताब नहीं होगा?
सच तो यह है कि मौजूदा स्वैच्छिक कार्बन बाजार सस्ते विकल्पों पर आधारित है। इसका मतलब यह है कि देशों ने उत्सर्जन में कटौती के सबसे सस्ते विकल्प (जो वे वहन कर सकते थे) को “बेच” दिया है। वे अब विदेशी संस्थाओं और सरकारों की बैलेंस शीट में होंगे। इसका मतलब केवल यह है कि देश कठिन विकल्पों में निवेश करने में सक्षम नहीं होंगे। यह उत्सर्जन में योगदान देगा और हमारे साझा भविष्य को खतरे में डाल देगा।

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