गर्म होती जलवायु के चलते पिघलता पर्माफ्रोस्ट सबसे बड़े खतरे की निशानी

अध्ययन में सन 2100 तक लगभग 40 लाख वर्ग किलोमीटर पर्माफ्रोस्ट के नुकसान होने की आशंका व्यक्त की गई है

By Dayanidhi

On: Friday 14 January 2022
 

एक वैज्ञानिक विश्लेषण के मुताबिक अरबों टन ग्रीनहाउस गैसों से लदी आर्कटिक पर्माफ्रोस्ट के पिघलने से न केवल इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे बल्कि पूरी दुनिया को खतरा है। अब तक पर्माफ्रोस्ट पर किए गए अध्ययनों में से एक के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत सड़कें, पाइपलाइन, शहर और उद्योग-ज्यादातर रूस में इस इलाके की नरम जमीन पर बने हुए हैं। मध्य शताब्दी तक इस इलाके में अत्यधिक तेजी से नुकसान होने के आसार हैं।

अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि लंबे समय से जमी हुई मिट्टी से निकलने वाली मीथेन और सीओ2 तापमान को तेजी से बढ़ा सकती है। यह धरती के तापमान में हो रही वृद्धि को कम करने के वैश्विक प्रयासों को प्रभावित कर सकता है।

अध्ययन में कहा गया है कि अत्यधिक ज्वलनशील कार्बनिक पदार्थ अब बर्फ से ढके नहीं हैं, इनके सम्पर्क में आने से जंगल में आग लगने की घटनाओं को भी बढ़ावा मिल रहा है, जो पर्माफ्रोस्ट के एक तिहाई हिस्से के लिए खतरा बन गया है।

पर्माफ्रोस्ट उत्तरी गोलार्ध के भूमि के भार के एक चौथाई हिस्से को कवर करते हैं। वर्तमान में पर्माफ्रोस्ट वातावरण में कार्बन की मात्रा को दोगुना कर सकते हैं, जो कि 1850 के बाद से मानव गतिविधि द्वारा उत्सर्जित मात्रा को तिगुना कर सकता है।

पर्माफ्रोस्ट वह जमीन होती है जिसका तापमान दो साल से भी अधिक समय से शून्य डिग्री सेल्सियस से अधिक ठंडा होता है, हालांकि अधिकतर पर्माफ्रोस्ट हजारों साल पुराने हैं।

आर्कटिक के इलाके का तापमान पिछली आधी सदी में पूरी दुनिया की तुलना में दो से तीन गुना अधिक तेजी से बढ़ा है। जो कि पूर्व-औद्योगिक स्तरों से दो से तीन डिग्री सेल्सियस अधिक है।

इस क्षेत्र में मौसम संबंधी अजीब विसंगतियां भी देखी गई है, जिसमें सर्दियों में तापमान पिछले औसत से 40 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है।  

कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक किम्बरली माइनर के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि पर्माफ्रोस्ट ने 2007 से 2016 तक तापमान को औसतन लगभग 0.4 डिग्री सेल्सियस गर्म किया है। पर्माफ्रोस्ट के पिघलने और पुराने कार्बन रिलीज की दर का तेज होना चिंताजनक है।

अध्ययन में 2100 तक लगभग 40 लाख वर्ग किलोमीटर पर्माफ्रोस्ट के नुकसान का अनुमान लगाया गया है। यहां तक ​​कि इसमें ऐसे परिदृश्य में भी शामिल थे जिसमें कई दशकों में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में काफी कमी भी आई थी।  

बढ़ता तापमान पर्माफ्रोस्ट के तेजी से पिघलने का एकमात्र कारण नहीं हैं। शोधकर्ता बताते हैं कि आर्कटिक के जंगल की आग पर्माफ्रोस्ट को तेजी से पिघलाने के लिए जिम्मेवार है और यह इसको लगातार बढ़ा रही है।

जैसे-जैसे जलवायु गर्म होती है, इन दूरस्थ इलाकों में मध्य शताब्दी तक आग की घटनाओं के 130 फीसदी से 350 फीसदी तक बढ़ने का अनुमान है, जिससे पर्माफ्रोस्ट से अधिक से अधिक कार्बन निकलने की आशंका है।

वास्तव में बर्फ से दबे हुए कार्बनिक कार्बन अधिक ज्वलनशील हो जाते हैं, जिससे "ज़ोंबी आग" जन्म लेती है, जो वसंत और गर्मियों में फिर से प्रज्वलित होने से पहले सर्दियों में सुलगती है।

माइनर और उनके सहयोगियों ने चेतावनी दी है कि ये जमीन के नीचे की आग उन वातावरणों से पुराने कार्बन को छोड़ सकती है जिन्हें पहले आग प्रतिरोधी माना जाता था।

तुरंत होने वाला सबसे बड़ा खतरा क्षेत्र के बुनियादी ढांचे के लिए है। फ़िनलैंड के औलू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जान होजॉर्ट के नेतृत्व में किए गए एक अन्य अध्ययन के मुताबिक, उत्तरी गोलार्ध पर्माफ्रोस्ट लगभग 120,000 इमारतों, 40,000 किलोमीटर सड़कों और 9,500 किलोमीटर पाइपलाइनों का सहारा है।

अध्ययन में कहा गया है कि मिट्टी की ताकत काफी कम हो जाती है क्योंकि तापमान पिघलने वाले बिंदु से ऊपर बढ़ जाता है और जमीन की बर्फ पिघल जाती है।

रूस से ज्यादा कमजोर कोई देश नहीं है, जहां कई बड़े शहर और औद्योगिक संयंत्र जमी हुई मिट्टी के ऊपर हैं। वोरकूटा शहर में लगभग 80 प्रतिशत इमारतें पहले से ही पर्माफ्रोस्ट के बदलने के चलते विकृतियां दिखा रही हैं।

रूसी आर्कटिक में लगभग आधे तेल और गैस निकाले जाने वाले इलाके ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां पर्माफ्रोस्ट के खतरे मौजूदा बुनियादी ढांचे और भविष्य के विकास के लिए खतरा हैं। 

2020 में साइबेरियन शहर नोरिल्स्क के पास अचानक जमीन के धंसने के बाद एक ईंधन टैंक फट गया, जिससे 21,000 टन डीजल पास की नदियों में गिर गया था। पौधे की नींव को कमजोर करने के लिए बर्फ में दबे पर्माफ्रोस्ट को दोषी ठहराया गया था। 

उत्तरी अमेरिका में पर्माफ्रोस्ट पर बने बड़े औद्योगिक केंद्र नहीं हैं, लेकिन हजारों किलोमीटर की सड़कें और पाइपलाइन भी तेजी से असुरक्षित होते जा रहे हैं।

जबकि वैज्ञानिक एक दशक से भी अधिक समय पहले से जानते हैं, कि आर्कटिक मिट्टी के गर्म होने पर कितनी कार्बन निकल सकती है।

नतीजतन पर्माफ्रोस्ट डायनामिक्स को अक्सर पृथ्वी प्रणाली मॉडल में शामिल नहीं किया जाता है, जिसका अर्थ है कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान के उनके संभावित प्रभाव को पर्याप्त रूप से ध्यान में नहीं रखा जाता है।

अध्ययनकर्ता ने कहा कि एक हरे-भरे, गीले आर्कटिक में, पौधे कुछ या सभी पर्माफ्रोस्ट कार्बन उत्सर्जन की भरपाई नहीं कर सकते हैं। एक भूरे, सूखे आर्कटिक में, हालांकि, मिट्टी से होने वाले सीओ2 उत्सर्जन और जंगल की आग के लिए अधिक ज्वलनशील ईंधन की मात्रा में वृद्धि होगी।

पर्माफ्रोस्ट में 3 करोड़ वर्ग किलोमीटर, आर्कटिक में इसका लगभग आधा तिब्बती पठार है जो कि एक मिलियन वर्ग किलोमीटर है। यह अध्ययन नेचर में प्रकाशित हुआ हैं।

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