जलवायु में भारी बदलाव के पीछे गर्मी ही नहीं, बल्कि नमी भी शामिल: अध्ययन

1980 से 2019 तक, दुनिया लगभग 1.42 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है। लेकिन नमी से ऊर्जा को ध्यान में रखते हुए, दुनिया 2.66 डिग्री सेल्सियस गर्म और नम हो गई है।

By Dayanidhi

On: Friday 04 February 2022
 

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि जलवायु में चरम बदलाव के लिए केवल ग्लोबल वार्मिंग ही नहीं बल्कि नमी भी जिम्मेवार है। शोधकर्ताओं का कहना है कि तापमान अपने आप में जलवायु परिवर्तन को मापने का सबसे अच्छा तरीका नहीं है। क्योंकि यह उष्णकटिबंधीय इलाकों में पड़ने वाले प्रभाव को कम करता है। लेकिन गर्मी के साथ हवा की नमी से पता चलता है कि 1980 के बाद से जलवायु परिवर्तन की गणना पहले की तुलना में लगभग दोगुना तक गलत हो सकती है।

शोधकर्ता राम रामनाथन ने कहा चरम मौसम में उत्पन्न ऊर्जा, जैसे तूफान, बाढ़ और वर्षा हवा में पानी की मात्रा से संबंध रखती हैं। अब अमेरिका और चीन के वैज्ञानिकों की एक टीम ने एक स्पष्ट मौसम माप का उपयोग करने का फैसला किया जिसे समकक्ष संभावित तापमान कहा जाता है। यह वायुमंडल की नमी ऊर्जा को दर्शाता है। रामनाथन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो के स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी और कॉर्नेल विश्वविद्यालय में एक जलवायु वैज्ञानिक हैं। शोधकर्ता ने बताया कि यह तापमान की तरह, डिग्री में व्यक्त किया जाता है।

रामनाथन ने कहा जलवायु परिवर्तन के दो चालक हैं: तापमान और आर्द्रता। अब तक हमने ग्लोबल वार्मिंग को केवल तापमान के संदर्भ में मापा है। उन्होंने कहा लेकिन नमी से ऊर्जा जुड़कर खतरनाक हीट वेव या लू, वर्षा और चरम सीमा के अन्य उपाय एक दूसरे से बहुत बेहतर संबंध रखते हैं।

रामनाथन ने कहा ऐसा इसलिए है क्योंकि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, हवा में अधिक नमी होती है, प्रत्येक डिग्री फ़ारेनहाइट के लिए लगभग 4 फीसदी (प्रत्येक डिग्री सेल्सियस के लिए 7 फीसदी के बराबर)। जब वह नमी एकत्रित होती है, तो वह गर्मी या ऊर्जा छोड़ती है तब बारिश होती है।

उन्होंने कहा इसके अलावा, जल वाष्प वातावरण में एक शक्तिशाली गर्मी को एकत्रित करने वाली गैस है जो जलवायु परिवर्तन को बढ़ाती है। अध्ययन में कहा गया है कि 1980 से 2019 तक, दुनिया लगभग 1.42 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो चुकी है। लेकिन नमी से ऊर्जा को ध्यान में रखते हुए, दुनिया 2.66 डिग्री सेल्सियस गर्म और नम हो गई है। उष्णकटिबंधीय इलाकों में तापमान 7.2 डिग्री सेल्सियस जितना दर्ज किया गया है।

रामनाथन ने कहा केवल तापमान को देखते हुए, ऐसा लगता है कि उत्तरी अमेरिका, मध्य अक्षांशों और विशेष रूप से ध्रुवों में बढ़ता तापमान सबसे अधिक स्पष्ट है। जबकि उष्णकटिबंधीय में ऐसा कम देखा गया है। उन्होंने कहा लेकिन ऐसा नहीं है, क्योंकि उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अधिक नमी नियमित तूफान से लेकर उष्णकटिबंधीय चक्रवात और मानसून तक तूफान की गतिविधि में बढ़ोतरी कर देती है। रामनाथन ने कहा कि अप्रत्यक्ष ऊर्जा में यह वृद्धि हवा में पहुंच जाती है जिससे मौसम चरम पर होता है, जहां बाढ़, तूफान आना और सूखा पड़ना शामिल है।

इलिनोइस विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक डोनाल्ड वुएबल्स ने कहा कि यह समझ में आता है क्योंकि अत्यधिक वर्षा में जल वाष्प महत्वपूर्ण है। गर्मी और नमी दोनों महत्वपूर्ण हैं। मियामी विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक कैथरीन मच ने कहा कि वर्तमान और भविष्य में मानव स्वास्थ्य और कल्याण पर गर्मी के प्रभावों को आकार देने में नमी की महत्वपूर्ण भूमिका है। यह अध्ययन 'प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज' में प्रकाशित हुआ है।

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