उष्णकटिबंधीय इलाकों में 2100 तक गर्मियों के मौसम का हर दिन होगा भीषण लू की जद में: अध्ययन

उष्णकटिबंधीय इलाकों में लाखों लोग सन 2100 तक साल के आधे महीनों के दौरान खतरनाक गर्मी की चपेट में आ सकते हैं

By Dayanidhi

On: Friday 26 August 2022
 
फोटो : नासा

शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी कि अगर मानवजाति जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने का प्रबंधन करती है, तो भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कई लाखों लोग 2100 तक खतरनाक गर्मी की चपेट में आ सकते हैं।

हाल ही में भारत समेत एशिया के अधिकतर इलाकों में रिकॉर्ड तोड़ हीट वेव या लू चली, इन घातक घटनाओं की संख्या के बढ़ने की आशंका है। नए शोध में कहा गया है कि भविष्य में बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के आधार पर, इस सदी के अंत तक दुनिया भर में गर्मी बढ़ जाएगी।

प्रमुख शोधकर्ता लुकास वर्गास जेपेटेलो ने कहा कि हाल में हुई ग्रीष्मकाल की रिकॉर्ड-तोड़ गर्मी की घटनाएं उत्तरी अमेरिका और यूरोप जैसी जगहों पर बहुत अधिक सामान्य हो जाएंगी। जेपेटेलो हार्वर्ड में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं।

उन्होंने कहा गर्मी के चलते भूमध्य रेखा के करीब कई जगहों पर 2100 तक आधे से अधिक साल में घर से बाहर काम करने की एक चुनौती होगी, भले ही हम उत्सर्जन पर अंकुश लगाना ही शुरू क्यों न कर दें।

वाशिंगटन विश्वविद्यालय और हार्वर्ड विश्वविद्यालय की अगुवाई में किया गया यह अध्ययन 2100 के लिए संभावित परिदृश्यों की एक विस्तृत श्रृंखला को सामने लाता है। इससे पता चलता है कि उत्सर्जन के कारण इलाके भविष्य में रहने योग्य नहीं होंगे, साथ ही इसका समाधान भी सामने रखा गया है कि कैसे उन्हें रहने योग्य बनाया जा सकता है।

क्या होता है हीट इंडेक्स?

हवा के तापमान और नमी के संयोजन को देखा जाता है जिसे "हीट इंडेक्स" के रूप में जाना जाता है, जो मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव को मापता है। राष्ट्रीय मौसम सेवा द्वारा "खतरनाक" ताप सूचकांक को 39.4 डिग्री सेल्सियस के रूप में परिभाषित किया गया है। एक "बहुत खतरनाक" ताप सूचकांक 51 डिग्री सेल्सियस है, जिसे लोगों के लिए सबसे अधिक असुरक्षित माना जाता है।

वर्गास जेपेटेलो ने कहा इन मानकों को पहले बॉयलर रूम जैसी जगहों पर घर के अंदर काम करने वाले लोगों के लिए बनाया गया था। तब ऐसी स्थिति के बारे में नहीं सोचा गया था जो बाहरी, परिवेश के वातावरण में होगी, लेकिन अब हम उन्हें देख रहे हैं।

भयानक स्थिति

अध्ययन में पाया गया है कि भले ही देश पेरिस समझौते के लक्ष्य में तय तापमान की सीमा को 2 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करते हैं, तब भी "खतरनाक" सीमा को पार करना अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, चीन और जापान में 2100 तक तीन से 10 गुना अधिक आम हो जाएगा। उसी परिदृश्य में, उष्णकटिबंधीय में खतरनाक दिन 2100 तक दोगुने हो सकते हैं, जो आधे साल को कवर करते हैं।

सबसे खराब स्थिति में, जिसमें 2100 तक उत्सर्जन अनियंत्रित रहता है, "बेहद खतरनाक" स्थितियां, जिसमें लोगों को किसी भी समय बाहर नहीं रहना चाहिए, भूमध्य रेखा के करीब के देशों में यह आम हो सकता है, विशेष रूप से भारत और उप-सहारा अफ्रीका में।

वर्गास जेपेटेलो ने कहा यह सोचना बेहद डरावना है कि अगर साल में 30 से 40 दिन बेहद खतरनाक सीमा से अधिक हो जाएं तो क्या होगा। ये भयावह परिदृश्य हैं जिन्हें रोकने की हमारे पास अभी भी क्षमता है। 

अध्ययन भविष्य की स्थितियों की सीमा की गणना करने के लिए संभावना आधारित पद्धति का उपयोग करता है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट में शामिल चार भविष्य के उत्सर्जन मार्गों का उपयोग करने के बजाय, शोधकर्ता एक सांख्यिकीय दृष्टिकोण का उपयोग करते हैं।

यह जनसंख्या अनुमानों, आर्थिक विकास और कार्बन तीव्रता के साथ ऐतिहासिक आंकड़ों को जोड़ता है। प्रत्येक डॉलर की आर्थिक गतिविधि के लिए उत्सर्जित कार्बन की मात्रा- भविष्य में सीओ 2 की मात्रा की संभावित सीमा का पूर्वानुमान लगाने के लिए किया जा सकता है।

सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर एड्रियन राफ्टी ने कहा सांख्यिकीय दृष्टिकोण कार्बन उत्सर्जन और भविष्य के अनुमानित तापमान के बारे में बताता है। राफ्टी वायुमंडलीय विज्ञान में एक सहायक के साथ सांख्यिकी और समाजशास्त्र के प्रोफेसर हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने बहुत अधिक कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को वैश्विक तापमान वृद्धि की एक श्रृंखला में बदला, फिर देखा कि यह वैश्विक मासिक मौसम के पैटर्न को किस तरह प्रभावित करेगा।

सह-अध्ययनकर्ता  और वायुमंडलीय विज्ञान के प्रोफेसर डेविड बत्तीस्टी ने कहा दक्षिण-पूर्वी और मध्य अमेरिका सहित-मध्य अक्षांशों में गर्मी के खतरनाक स्तर वाले दिनों की संख्या 2050 तक दोगुनी से अधिक हो जाएगी।

बावजूद कार्बन उत्सर्जन और जलवायु प्रतिक्रिया के बहुत कम अनुमान के, 2100 तक अधिकांश उष्णकटिबंधीय इलाकों में साल के लगभग आधे महीने गर्मी के 'खतरनाक' स्तर का सामना करेंगे।

अध्ययन के परिणाम भविष्य में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और आबादी, विशेष रूप से बाहर काम करने वाले श्रमिकों को खतरनाक गर्मी से बचाने की आवश्यकता पर जोर देते हैं। यह अध्ययन ओपन-एक्सेस जर्नल कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।

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