नए शिखर पर पहुंचा सीओ2 का स्तर, पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा किया गया दर्ज

पिछले 40 लाख वर्षों में यह पहला मौका है, जब किसी महीने में कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर इतना ज्यादा दर्ज किया गया है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 07 June 2022
 

मानव इतिहास में यह पहला मौका है जब वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का मासिक औसत स्तर मई 2022 में रिकॉर्ड 420.78 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) तक पहुंच गया है। देखा जाए तो यह स्तर औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा है, जोकि सच में चिंता का विषय है। यह जानकारी नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) और स्क्रिप्स इंस्टीट्यूशन ऑफ ओशनोग्राफी द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है।

वहीं यदि एनओएए द्वारा अपनी हवाई द्वीप के शिखर पर मौजूद वेधशाला से लिए आंकड़ों को देखें तो कार्बन डाइऑक्साइड की औसत माप 420.99 पीपीएम दर्ज की गई है जोकि 2021 की तुलना में 1.8 पीपीएम ज्यादा है।

गौरतलब है कि पिछले 40 लाख वर्षों में यह पहला मौका है, जब किसी महीने में कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर इतना ज्यादा दर्ज किया गया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक 19वीं सदी के अंत तक औद्योगिक क्रांति से पहले, वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 280 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) था, लेकिन उसके बाद से जैसे-जैसे इंसान ने प्रगति की है उसके साथ-साथ उसने वातावरण पर भी व्यापक असर डाला है, जिसका नतीजा है कि आज वातावरण में मौजूद इस हानिकारक गैस का स्तर तेजी से बढ़ रहा है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक औद्योगिक क्रांति से पहले मानव इतिहास के करीब 6000 वर्षों तक सीओ2 का स्तर करीब 280 पीपीएम के आसपास था। तब से इंसानों ने करीब 1.5 लाख करोड़ टन सीओ2 का उत्सर्जन किया है। जिसका कुछ भाग अगले हजारों वर्षों तक वातावरण को गर्म करती रहेगा।  

मई 2020 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 417.64 पीपीएम रिकॉर्ड किया गया था। गौरतलब है कि यह तब है जब लॉकडाउन के कारण वैश्विक स्तर पर आई आर्थिक मंदी के चलते कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 7 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी। वहीं मई 2021 में इसका स्तर 419.13 पीपीएम दर्ज किया गया था।

हवाई, अमेरिका स्थित मौना लोवा ऑब्जर्वेटरी 1950 के दशक से पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर पर नजर बनाये हुए है, उसके अनुसार जहां 1959 में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 था, जो कि 2018 में 92.55 अंक बढ़कर 408.52 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था ।

गौरतलब है कि 2014 में पहली बार वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 400 पीपीएम के पार गया था। यदि इसका औसत देखा जाये तो हर 1959 से लेकर 2018 तक हर वर्ष वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 1.57 पीपीएम की दर से वृद्धि हो रही थी।

धरती के लिए कितना खतरनाक है सीओ2 का बढ़ता स्तर

कुछ वैज्ञानिकों की मानें तो वातावरण में 350 पीपीएम से ज्यादा सीओ2 जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से खतरनाक है। देखा जाए तो वातावरण में बढ़ती इस गैस के लिए काफी हद तक उद्योंगो और जीवाश्म ईंधन जैसे कोयले, तेल और गैस के जलने से होने वाला उत्सर्जन जिम्मेवार है। इसके साथ ही कृषि, तेजी से होता वन विनाश, परिवहन और विद्युत उत्पादन भी वातावरण में बढ़ते इसके स्तर की वजह हैं।

देखा जाए तो कार्बन डाइऑक्साइड अन्य गैसों के साथ धरती से परावर्तित होने वाली गर्मी को सोख लेती है जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है। यदि यह गैसें ऐसा न करें तो यह गर्मी अंतरिक्ष में चली जाएगी। इसकी वजह से वैश्विक तापमान में होती वृद्धि जलवायु पर असर डाल रही है।

नतीजन धरती पर बाढ़, सूखा, तूफान, दावाग्नि जैसी मौसम की चरम घटनाओं की आशंका बढ़ गई है। इसकी वजह से कहीं बहुत ज्यादा बारिश हो रही है तो कहीं पानी की बूंद तक नहीं गिर रही। इतना ही नहीं समय के साथ चक्रवात भी कहीं ज्यादा विनाशकारी होते जा रहे हैं।

सिर्फ धरती ही नहीं वातावरण में बढ़ती इस गैस का असर महासागरों और उनके इकोसिस्टम पर भी पड़ रहा है।  इससे जहां समुद्र की सतह का तापमान बढ़ रहा है। साथ ही उसके जल स्तर में भी वृद्धि हो रही है। नतीजन इनसे आने वाली बाढ़ का खतरा भी बढ़ गया है। इतना ही नहीं इसकी वजह से समुद्रों का पानी कहीं ज्यादा अम्लीय हो रहा है, जिससे समुद्रों में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। इसकी वजह से समुद्री जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है।

इस बारे में एनओएए के प्रशासक रिक स्पिनरड का कहना है कि जिस तरह से हम इंसान अपनी जलवायु में बदलाव ला रहे हैं, हमारी अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को उसके अनुकूल होना होगा। हम हर दिन अपने आसपास होते जलवायु बदलावों और उसके प्रभावों को देख सकते हैं।

मौना लोआ में मापी जा रही कार्बन डाइऑक्साइड और उसमें होती निरंतर वृद्धि इस बात की याद दिलाती है कि हमें जलवायु में आते बदलावों के लिए कहीं ज्यादा तैयार रहने की जरुरत है। साथ ही इससे निपटने के लिए तत्काल गंभीर कदम उठाने होंगे।

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