इतिहास में दूसरी बार सबसे बड़ी वृद्धि की ओर बढ़ रहा है ऊर्जा सम्बन्धी सीओ2 उत्सर्जन

जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग से 2021 में सीओ2 उत्सर्जन में 5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, जोकि करीब 150 करोड़ टन के बराबर होगी।

By Lalit Maurya

On: Tuesday 20 April 2021
 

इतिहास में यह दूसरा मौका है जब 2021 में ऊर्जा सम्बंधित कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में रिकॉर्ड वृद्धि हो सकती है| यह जानकारी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी द्वारा आज जारी रिपोर्ट ग्लोबल एनर्जी रिव्यु 2021 में सामने आई है| इसके लिए जीवाश्म ईंधन में बढ़ते निवेश को जिम्मेवार माना जा रहा है| अनुमान है कि कोविड-19 के कारण आई आर्थिक मंदी से उबरने के लिए देश बड़े पैमाने पर कोयले और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधन में निवेश कर रहे हैं|

अनुमान है कि 2021 में बढ़ते आर्थिक उत्पादन के चलते वैश्विक ऊर्जा की मांग में 4.6 फीसदी की वृद्धि हो सकती है| ऊर्जा की मांग में हो रही यह वृद्धि 2020 में आई गिरावट की तुलना में लगभग पांच गुना अधिक है| इस बढ़ती मांग के करीब 80 फीसदी हिस्से के लिए नए उभरते बाजार और विकासशील देश जिम्मेवार हैं| जहां मांग 2019 की तुलना में 3.4 फीसदी ज्यादा रहने की सम्भावना है| 

 

यदि जीवाश्म ईंधन की मांग की बात करें तो 2021 में उसके काफी बढ़ने की सम्भावना है| यदि अकेले कोयले की मांग की बात करें तो उसमें उसमें ऊर्जा के अक्षय स्रोतों की तुलना में 60 फीसदी अधिक वृद्धि होने का अनुमान है| जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग से उत्सर्जन में 5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, जोकि करीब 150 करोड़ टन के बराबर होगी| इस तरह ऊर्जा क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन 2021 में बढ़कर 3,300 करोड़ टन पर पहुंच जाएगा| 

इससे पहले 2010 में आई आर्थिक मंदी के दौरान उत्सर्जन में 6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी| अनुमान है कि यह वृद्धि 2020 के दौरान उत्सर्जन में आई कमी के 80 फीसदी को उलट देगी| इसके लिए मुख्य रूप से एशिया और अमेरिका जिम्मेवार हैं|

एक बार फिर बढ़ रही है कोयले की मांग

करीब आधे दशक से अधिक की गिरावट के बाद 2021 में कोयले की मांग में एक बार फिर वृद्धि होने का अनुमान है| इससे पहले 2014 में यह शिखर पर पहुंच गई थी| अनुमान है कि इसमें साढ़े चार फीसदी की वृद्धि हो सकती है| इसके लिए मुख्य रूप से एशिया में हो रही वृद्धि जिम्मेवार है जोकि इसमें हो रही वृद्धि के 80 फीसदी के लिए उत्तरदायी है|

अकेले चीन 50 फीसदी वृद्धि के लिए जिम्मेदार है| इसके साथ ही अमेरिका और यूरोप में भी इसकी मांग में वृद्धि दर्ज की गई है| गौरतलब है कि इससे पहले 2020 में कोयले के कारण होने वाले उत्सर्जन में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी|

कोयले की तरह ही 2021 में प्राकृतिक गैस की मांग में भी 3.2 फीसदी वृद्धि होने की सम्भावना है जो एशिया, मध्य पूर्व और रूस में बढ़ती मांग का परिणाम है| इसके 2019 की तुलना में 1 फीसदी ज्यादा रहने की सम्भावना है|

यदि अक्षय ऊर्जा की बात करें तो 2020 में उसकी मांग में करीब 3 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई थी| 2021 में  सभी प्रमुख क्षेत्रों जैसे बिजली, हीटिंग, उद्योग और परिवहन में इसकी मांग 8 फीसदी बढ़ने की सम्भावना है|

अक्षय ऊर्जा की इस बढ़ती मांग के दो-तिहाई हिस्से के लिए मूल रुप से सौर और पवन ऊर्जा जिम्मेवार हैं| अनुमान है कि बिजली उत्पादन में अक्षय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी 2021 में बढ़कर 30 फीसदी पर पहुंच जाएगी| 2020 की तुलना में पवन ऊर्जा में 17 फीसदी या 275 टेरावाट-घंटे बढ़ने की सम्भावना है जबकि सौर ऊर्जा उत्पादन में 18 फीसदी वृद्धि होने की सम्भावना है जोकि करीब 145 टेरावाट-घंटे होगी|

क्या होंगे परिणाम

ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ता उत्सर्जन एक चिंता का विषय है| यदि 1880 से अभी तक तापमान में हो रही वृद्धि को देखें तो वो 1.2 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो चुकी है| जो यदि इसी रफ्तार से जारी रहती है तो सदी के अंत तक 3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा हो जाएगी| संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि अब से लेकर 2030 तक यदि हम हर साल वैश्विक उत्सर्जन में 7 फीसदी की कटौती करेंगे। तब जाकर कहीं 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे। हालांकि ऊर्जा क्षेत्र में एक बार फिर से जिस तरह उत्सर्जन में यह वृद्धि देखी गई है उसने इस लक्ष्य को और मुश्किल बना दिया है|

इसके क्या परिणाम होंगे इस बात का अंदाजा आप हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में छपे एक शोध के निष्कर्ष से निकाल सकते हैं जिसके अनुसार यदि हम पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाए तो वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 4.59 करोड़ अरब रुपए (6 लाख अरब  डॉलर) का नुकसान उठाना पड़ेगा। जोकि विश्व के वर्त्तमान जीडीपी से करीब 7.53 गुना ज्यादा है।

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