भारत में खेती से बढ़ रहा है ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन, सरकार ने माना

केंद्रीय वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने यूएनएफसीसीसी को अपनी एक रिपोर्ट सौंपी हैं

By Anamika Yadav

On: Saturday 13 January 2024
 
भारत में कृषि उत्सर्जन के कई कारण हैं। फोटो: विकास चौधरी

भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कृषि दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। हालांकि 2016 से 2019 तक कुल उत्सर्जन में कृषि की हिस्सेदारी 14.4 प्रतिशत से घटकर 13.4 प्रतिशत हुई है, लेकिन फिर भी इस क्षेत्र से होने वाला पूर्ण उत्सर्जन 3.2 प्रतिशत बढ़ गया, जो 421 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के समकक्ष (MtCO2e) तक पहुंच गया।

कृषि के कारण कुल उत्सर्जन 4.5 प्रतिशत बढ़कर 2019 में 2,647 MtCO2e हो गया, जो 2016 में 2,531 MtCO2e था। केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) को सौंपे गए तीसरे नेशनल काम्युनिकेशन एंड इनिशियल एडप्टेशन कॉम्युनिकेशन में इसकी सूचना दी गई है।

कृषि क्षेत्र से ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन का स्रोत पशुधन की वजह से होने वाले मीथेन से उत्पन्न होता है, जो मवेशी, भेड़, बकरी और भैंस जैसे जानवरों में पाचन प्रक्रिया का एक प्राकृतिक हिस्सा है। इस क्षेत्र में अन्य प्रमुख ग्रीन हाउस गैस के स्रोत चावल की खेती और कृषि मिट्टी से उत्सर्जित नाइट्रस ऑक्साइड हैं।

सामूहिक रूप से, ये स्रोत कुल कृषि उत्सर्जन में 90 प्रतिशत से अधिक का योगदान करते हैं। कृषि अवशेषों को खेत में जलाने से भी अतिरिक्त उत्सर्जन होता है।

दिलचस्प बात यह है कि खेतों में कृषि अवशेष जलाने को छोड़कर अन्य सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन में वृद्धि देखी गई। रिपोर्ट में कहा गया है कि पशुधन से मीथेन उत्सर्जन में 0.2 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई है, जो कि पशु आबादी में वृद्धि के कारण है, जिसमें क्रॉस-ब्रीड मवेशियों की संख्या में 10 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि भी शामिल है।

खेती का क्षेत्रफल बढ़ने से चावल से मीथेन उत्सर्जन 3 प्रतिशत बढ़ गया। 2016 में चावल का क्षेत्रफल 43.1 मिलियन हेक्टेयर था जो 2019 में 43.6 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया। हालांकि, इसी समय अवधि के दौरान, चावल की खेती से पानी बचाने और मीथेन उत्सर्जन को कम करने वाले कई जल वातन व्यवस्था की हिस्सेदारी 2016 में 12.4 प्रतिशत से बढ़ कर अब 21.9 प्रतिशत हो गई है, जो 9.5 प्रतिशत अंकों की शुद्ध वृद्धि दर्शाता है।

मिट्टी से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन में 13.6 प्रतिशत की सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई, जिसका श्रेय सिंथेटिक उर्वरक-आधारित नाइट्रोजन की खपत में वृद्धि को दिया गया। जबकि खाद प्रबंधन ने क्षेत्र के उत्सर्जन में 1 प्रतिशत की वृद्धि का योगदान दिया, फसल अवशेष जलाना कृषि के भीतर एकमात्र उप-क्षेत्र था जिसने 5.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की है।

जबकि भारत की स्वैच्छिक घोषणा में कृषि में विशिष्ट शमन गतिविधियों और उत्सर्जन में कटौती को शामिल नहीं किया गया है, उन्हें देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए आवश्यक जीवित उत्सर्जन पर विचार करते हुए, रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र में अनुकूलन की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया गया है।

रिपोर्ट में कृषि को अधिक टिकाऊ बनाने के लिए भारत द्वारा की गई पहलों पर भी चर्चा की गई है। हालांकि, रिपोर्ट में कृषि उप-क्षेत्रों में उठाए गए अनुकूली उपायों के बारे में बताया गया है, लेकिन कृषि उत्सर्जन में सबसे बड़ा योगदानकर्ता होने के बावजूद, विशेष रूप से पशुधन क्षेत्र से जुड़े किसी भी अनुकूलन उपायों की अनदेखी की गई है।

रिपोर्ट में मिट्टी से नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन बढ़ रहा है, यह तो बताया गया है, लेकिन कौन सी फसलें और मिट्टी कितना उत्सर्जन कर रही हैं, इसका विवरण गायब है।

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