कचरे के ढेर से रिस रही मीथेन गैस धरती को बर्बाद करने के लिए काफी

एक नए अध्ययन के अनुसार, 2019 के बाद से लैंडफिल में जमा कचरे से शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन के 1,000 से अधिक बड़े रिसाव हुए हैं।

By Dayanidhi

On: Tuesday 13 February 2024
 
फोटो साभार: सीएसई

एक नए अध्ययन के अनुसार, 2019 के बाद से लैंडफिल में जमा कचरे से शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस मीथेन के 1,000 से अधिक बड़े रिसाव हुए।

उपग्रह के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि दक्षिण एशिया के देश मीथेन के भारी उत्सर्जन के हॉटस्पॉट बने हुए हैं। जबकि, अर्जेंटीना और स्पेन जैसे विकसित देश अपने कचरे का उचित प्रबंधन कर इनसे होने वाले मीथेन के रिसाव पर लगाम लगा सकते हैं।

जब खाने का कचरा, लकड़ी, कार्ड, कागज और बगीचे के कचरे जैसे जैविक अपशिष्ट ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में टूटते या विघटित होते हैं तो लैंडफिल से मीथेन उत्सर्जित होती है। मीथेन, जिसे प्राकृतिक गैस भी कहा जाता है, 20 वर्षों में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में वायुमंडल में 86 गुना अधिक गर्मी जमा करती है, जिससे यह जलवायु में बदलाव को रोकने के लिए एक अहम लक्ष्य बन जाती है।

वैज्ञानिकों ने कहा है कि शहरी आबादी बढ़ने के साथ 2050 तक अप्रबंधित लैंडफिल से उत्सर्जन दोगुना हो सकता है, जिससे जलवायु आपदा से बचने की संभावना खत्म हो जाएगी।

नए आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2019 और जून 2023 के बीच कुल 1,256  मीथेन के भारी उत्सर्जन या सुपर-एमिटर घटनाएं हुई। सबसे बड़े रिसाव वाले देशों की सूची में पाकिस्तान, भारत और बांग्लादेश शीर्ष पर हैं, इसके बाद अर्जेंटीना, उज़्बेकिस्तान और स्पेन हैं।

जैविक कचरे को कम करके, उसे लैंडफिल से दूर ले जाकर लैंडफिल से होने वाले मीथेन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। मीथेन रिसाव को रोकने की कार्रवाई लगभग किसी भी अन्य उपाय की तुलना में वैश्विक तापन को तेजी से धीमा कर देती है, अक्सर किफायती होती है, कुछ उपायों के लिए भुगतान भी तब होता है जब कैप्चर की गई गैस को ईंधन के रूप में बेचा जाता है।

विघटित अपशिष्ट मानवजनित मीथेन उत्सर्जन के लगभग 20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। जीवाश्म ईंधन के उपयोग से 40 फीसदी उत्सर्जन होता है और अकेले 2022 में तेल, गैस और कोयले के उपयोग से 1,000 से अधिक मीथेन के भारी उत्सर्जन की घटनाएं हुईं, जिनमें से कई को आसानी से ठीक किया जा सकता है। मवेशी और धान के खेत अन्य 40 फीसदी उत्सर्जन का कारण बनते हैं।

भारत जलवायु संकट से बुरी तरह प्रभावित है, इसलिए मीथेन कटौती विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसके अलावा लैंडफिल की सफाई से उनके कारण लगने वाली आग, गंभीर वायु और जल प्रदूषण समाप्त हो जाएगा।

मीथेन गैस लैंडफिल के कचरे से उत्पन्न होती है जब भोजन का कचरा और अन्य कार्बनिक पदार्थ ऑक्सीजन-रहित वातावरण में सूक्ष्मजीवों द्वारा विघटित होते हैं। उचित तरीके से प्रबंधित अपशिष्ट प्रणालियां या तो लैंडफिल से कार्बनिक पदार्थों को बायोडायजेस्टर में बदल देती हैं जो मीथेन ईंधन का उत्पादन करते हैं, या लैंडफिल को कवर करते हैं और गैस को कैप्चर करते हैं।  

भारत में सबसे खराब घटना अप्रैल 2022 में दिल्ली में हुई, जब 434 टन प्रति घंटे की दर से वातावरण में मीथेन निकल गई। यह 6.8 करोड़ पेट्रोल कारों के एक साथ चलने से होने वाले प्रदूषण के बराबर है।

मीथेन वायुमंडल में एक सूक्ष्म गैस है, मात्रा के हिसाब से लगभग 0.0002 फीसदी है। अगर भारत में किसी सामान्य डंप साइट पर जाएं, तो यह तीन से 15 फीसदी के बीच हो सकता है, जो बहुत अधिक है। लैंडफिल में अक्सर आग भड़कती रहती है, जिससे कार्सिनोजेन सहित वायु प्रदूषण पूरे शहरों में फैल जाता है

फरवरी में पाकिस्तान के लाहौर के पास 214 टन प्रति घंटे की दर से रिसाव हुआ। बांग्लादेश में मीथेन रिसाव का आकलन करना कठिन है क्योंकि यहां गैस पाइपों का अवैध दोहन आम बात है, जिससे शहरी क्षेत्रों में बड़े रिसाव होते हैं जिन्हें लैंडफिल उत्सर्जन से अलग करना मुश्किल हो सकता है।

अधिकतर अमीर देशों ने कचरे के ढेर से बड़े पैमाने पर निकलने वाले मीथेन रिसाव की समस्या का सामना किया है, हालांकि बायोडायजेस्टर के बारे में कुछ चिंताएं बनी हुई हैं, उदाहरण के लिए यूके में चार फीसदी गैस का रिसाव पाया गया है।

शोधकर्ताओं के अनुसार, लैंडफिल को मिट्टी से ढकना तेज और सस्ता उपाय है, लेकिन यह उनकी सभी प्रदूषण समस्याओं का केवल आंशिक समाधान है। भारत और अधिकांश विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में अधिकांश लैंडफिल का निर्माण वैज्ञानिक तरीके से नहीं किया गया है, लैंडफिल गैसों या खतरनाक कचरे को इकट्ठा करने के लिए किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है।

उन्होंने कहा, हम उन्हें प्रदूषण केंद्र कह सकते हैं। आप किसी भी प्रकार के प्रदूषण का नाम लें, चाहे वह भूमि प्रदूषण हो, सतही और भूजल प्रदूषण हो, वायु प्रदूषण हो, आपको वहां सब कुछ मिलेगा, और यह बहुत ही चिंताजनक है।

भारत सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत, कचरे को देखने के तरीके में भारी बदलाव आया है। हम अपने देश को कचरे से मुक्त बनाना चाहते हैं।

शोधकर्ता ने बताया कि भारत में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड(सीपीसीबी)  ने 3,000 से अधिक डंपों की पहचान की थी और अब तक लगभग एक तिहाई पुराने लैंडफिल कचरे का उपचार किया जा चुका है। इसमें कूड़े के ढेरों की खुदाई करना, जैविक कचरे को हवा देकर उसे सीओ2 में बदलना, जलने योग्य कचरे को ईंधन के रूप में उपयोग करना और शेष जो पदार्थ विषैले नहीं हैं उनको भवन निर्माण में उपयोग करना शामिल है।

मीथेन के जलवायु प्रभाव को समझना एक आम आदमी के लिए थोड़ा तकनीकी हो सकता है लेकिन हर कोई अपने शहर को साफ देखना चाहता है।

स्वच्छ सर्वेक्षण के अनुसार, मध्य प्रदेश के इंदौर शहर को भारत का सबसे स्वच्छ शहर माना गया है। यह अपने अधिकांश जैविक कचरे को स्रोत पर ही अलग कर देता है, जो नए मीथेन-उत्पादक लैंडफिल से बचने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। इसके बजाय, एक नया बायोमेथेन संयंत्र एक दिन में 17 टन मीथेन ईंधन का उत्पादन कर सकता है।

शहर ने 40 हेक्टेयर लैंडफिल का भी समाधान किया है और इसके अधिकांश भाग को शहर के जंगल से बदल रहा है। जो चीज शुरू में मीथेन ग्रीनहाउस गैस का उत्पादन कर रही थी उसे अब एक ऐसी जगह में परिवर्तित किया जा रहा है जो वास्तव में सीओ2 को अलग कर सकती है।

शोधकर्ता ने कहा सबसे अच्छा विकल्प वह है जिसे हम वहन कर सकते हैं और सरल समाधानों के साथ कदम दर कदम आगे बढ़ते हुए, स्थानीय स्तर पर समस्याओं को हल करके, हम सिस्टम को धीरे-धीरे अपग्रेड कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि भारत के साथ-साथ कोलंबिया, चिली और मलेशिया जैसे देशों में भी प्रगति हो रही है। लेकिन जनसंख्या वृद्धि ज्यादातर वैश्विक दक्षिण में दर्ज की जाएगी, जहां हमारे पास अपशिष्ट के लिए बुनियादी ढांचे की कमी है, इसलिए अगर हम मौजूदा प्रथाओं को जारी रखते हैं तो हमारे लिए एक बड़ी समस्या होगी।

 मीथेन में कटौती एक बहुत अच्छा जलवायु निवेश है। यदि आपके पास जलवायु परिवर्तन पर खर्च करने के लिए 10 लाख डॉलर हैं, तो मीथेन को आपकी प्राथमिकता सूची में ऊपर होना चाहिए।

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