मनरेगा के लिए मांगे थे 98 हजार करोड़, मिले मात्र 60 हजार करोड़

संसदीय समिति ने मनरेगा मजदूरों के नए हाजिरी सिस्टम के अलावा बजट में कमी और बकाया भुगतान को लेकर सवाल उठाए हैं

By Raju Sajwan

On: Thursday 23 March 2023
 

महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार अधिनियम (मनरेगा) योजना के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वर्ष 2023-24 के बजट के लिए 98 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने इसमें लगभग 38 प्रतिशत की कटौती कर दी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश किए गए आम बजट 2023-24 के लिए मनरेगा का अनुमानित बजट 60 हजार करोड़ रुपए रखा है।

संसद की ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में मनरेगा के बजट पर कई सवाल उठाए गए हैं। समिति की यह रिपोर्ट 14 मार्च 2023 को लोकसभा और 15 मार्च 2023 को राज्यसभा के पटल पर रखी गई।

रिपोर्ट में संसदीय समिति ने मनरेगा के बजट में कटौती पर चिंता जताते हुए कहा है कि जब ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से 98 हजार करोड़ रुपए की मांग की थी तो वित्त मंत्रालय से किस गणना के आधार पर मनरेगा का बजट 60 हजार करोड़ रुपए कर दिया?

संसदीय समिति ने वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान के मुकाबले भी बजट में कमी को लेकर चिंता जताई है। रिपोर्ट में कहा गया है, "समिति यह जानकर चिंतित है कि वर्ष 2022-23 के संशोधित अनुमान की तुलना में वर्ष 2023-24 में मनरेगा के लिए बजट अनुमान में 29,400 करोड़ रुपए की कटौती की गई।"

समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि मनरेगा अधिनियम में काम करने के इच्छुक ग्रामीण जनसंख्या के वंचित वर्ग को काम करने का अधिकार प्राप्त है। यह उस बेरोजगार वर्ग, जिनके पास अपना और अपने परिवार के भरण पोषण का साधन नहीं है के लिए एकमात्र साधन है।

मनरेगा की भूमिका और महत्ता कोरोना काल में स्पष्ट दिखाई दी, जब इसके जरूरतमंद लोगों के लिए संकट में उम्मीद की किरण का काम किया। समिति ने कहा है कि इस योजना का महत्व वर्ष 2020-21 और 2021-22 में संशोधित अनुमान के तौर पर देखा जा सकता है। 2020-21 में अनुमानित बजट 61,500 करोड़ को संशोधित कर 1,11,500 करोड़ रुपए किया गया, जबकि 2021-22 में 73 हजार करोड़ रुपए का संशोधित कर 99,117.53 करोड़ रुपए किया गया, ताकि कोरोना काल में काम की मांग में वृद्धि की जरूरत को पूरा किया जा सके।

रिपोर्ट में लिखा गया है कि चालू वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान मनरेगा के लिए अनुमानित बजट 73 हजार करोड़ रुपए का बढ़ा कर संशोधित बजट 89,400 करोड़ रुपए किया गया। बावजूद इसके 2023-24 में मनरेगा के लिए मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित 98 हजार करोड़ रुपए की तुलना में 60 हजार करोड़ रुपए किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक समिति मनरेगा के तहत आबंटन में कमी के औचित्य को समझ नहीं पाई है। चूंकि इस योजना के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए पर्याप्त बजटीय आवंटन बेहद जरूरी है, इसलिए संसदीय समिति का दृढ़ मत है कि धनराशि में कटौती के मामले में पुनर्विचार किया जाना चाहिए।

समिति ने कहा है कि वित्त मंत्रालय को सपष्ट किया जाना चाहिए कि ग्रामीण विकास विभाग ने किस प्रकार मनरेगा के लिए बजट की मांग करते वक्त 98 हजार करोड़ रुपए की गणना कैसे की? यदि काम करने की सहमति क चरण पर ही इस प्रकार का अनुमान प्राप्त नहीं होता तो ग्रामीण विकास विभाग द्वारा इस प्रकार का प्रस्ताव ही नहीं दिया जाता।

संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि ग्रामीण विकास विभाग जमीनी स्तर पर मनरेग के अंतर्गम काम की मौजूदा भारी मांग का अधिक सटीकता से अनुमान लगाए और वित्त मंत्रालय से मनरेगा के लिए आवंटन में वृद्धि के लिए पत्राचार करे साथ ही अपने प्रशासनिक कौशल का इस्तेमाल करे।

14 हजार करोड़ रुपए बकाया
रिपोर्ट में मनरेगा के तहत बकाया भुगतान पर भी सवाल उठाए गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार ग्रामीण विकास विभाग ने सूचना दी है कि 25 जनवरी 2023 तक मजदूरी का 6231 करोड़ रुपया और सामग्री का 7616 करोड़ रुपया बकाया है।

समिति ने देरी से भुगतान पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस तरह की देरी केवल जरूरतमंद व्यक्ति को मनरेगा के तहत लाभ प्राप्त करने से वंचित करेगी और उन्हें आर्थिक रूप से और कमजोर बनाएगी, जबकि योजना का एकमात्र उद्देश्य संकट के समय में गरीबों को समय पर राहत प्रदान करना है।

समिति ने सिफारिश की है कि केंद्र सरकार तीन माह में इस तरह के बकाया की समाप्ति के लिए किए गए प्रयासों की जानकारी समिति को दी जाए।

हाजिरी प्रणाली में सुधार करे सरकार
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मनरेगा के तहत वास्तविक लाभार्थियों की हाजिरी की प्रक्रिया से जुड़ी कथित गड़बड़ियों को दूर करने और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए ग्रामीाण विकास मंत्रालय ने एक नया प्रावधान लागू किया है। यह एक मोबाइल ऐप के माध्यम से किया जा रहा है, जिसे राष्ट्रीय मोबाइल निगरानी प्रणाली ऐप कहा जाता है, जिसमें एक दिन में श्रमिकों की दो टाइम स्टैम्प्ड और जियो टैग की गई तस्वीरें होती है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि एक दिन में दो रियल टाइम तस्वीरें लेने की पूरी कयावद में कुछ दिक्कतें आ सकती हैं, जैसे- स्मार्ट फोन की उपलब्धता, इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी। चूंकि मनरेगा लाभार्थी समाज के अत्यंत वंचित वर्ग से संबंधित होते हैं और वे अलग-अलग भाषाई परिवेश से आते हैं, ऐसे में मनरेगा मजदूरों से यह उम्मीद करने से उनकी परेशानी और बढ़ जाएगी कि वे ऐप के कामकाज और भाषा के बारे में सारी जानकारी रखते होंगे या इसके लिए उन्हें नोडल अधिकारी के हस्तक्षेप पर निर्भर रहना होगा।

मजदूरों के काम का समय भी अलग होता है, ऐसे में उन्हें फोटो कैप्चरिंग के लिए काम करने के बाद भी काफी देर तक इंतजार करना पड़ता है। इंटरनेट कनेक्टिवटी की उपलब्धता तो एक बड़ा का मुद्दा है। इसलिए समिति ने ग्रामीण विकास विभाग से कहा है कि वह मनरेगा श्रमिकों की जमीनी दिक्कतों और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए मोबाइल ऐप के कामकाज की समीक्षा करे और जल्द से जल्द ऐसा प्रावधान लाया जाए, जो सबको स्वीकार्य होगा।

संसदीय समिति ने मनरेगा की मजदूरी में वृद्धि करना और मजदूरी में समानता लाने की भी सिफारिश की है।

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