अंतरिम बजट 2024: मनरेगा में आवंटित राशि से केवल 25 दिन का ही रोजगार मिल पाएगा!

विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को अगले वित्त वर्ष में बकाया मजदूरी भी चुकानी है, जिसके बाद केवल 54,000 करोड़ रुपये उपयोग के लिए उपलब्ध होंगे

By Himanshu Nitnaware

On: Friday 02 February 2024
 
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा का बजट पिछले साल के संशेधित अनुमान के समान रखा गया है। फोटो: विकास चौधरी

केंद्र सरकार ने अंतरिम बजट 2024 में देश की गारंटीशुदा मजदूरी रोजगार योजना के लिए 86,000 करोड़ रुपए आवंटित किए, जो 2023-24 के लिए घोषित आवंटन से महत्वपूर्ण वृद्धि है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि यह ग्रामीण रोजगार को पर्याप्त राहत देने में विफल रह सकता है।

2023-24 के बजट भाषण के दौरान, केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के लिए 60,000 करोड़ रुपए आवंटित किए, जो पंजीकृत ग्रामीण परिवारों में श्रमिकों को 100 दिनों के रोजगार की गारंटी का अधिकार देता है। यह छह साल में सबसे कम था। हालांकि, संशोधित अनुमान बताते हैं कि कुल व्यय बढ़कर 86,000 करोड़ रुपए हो गया है, जो आगामी वित्तीय वर्ष के लिए अंतरिम बजट के आवंटन से मेल खाता है।

संशोधित अनुमान यह भी बताते हैं कि 2023-24 के लिए मनरेगा के तहत बकाया भुगतान सहित कुल खर्च 99,514 करोड़ रुपए है। अकेले अवैतनिक बकाया राशि 11,000 करोड़ रुपए से अधिक है। इसका मतलब है कि योजना को 16,656 करोड़ रुपए का शुद्ध घाटा हुआ है, जबकि आवंटित धन का 100 प्रतिशत से अधिक पहले ही उपयोग किया जा चुका है।

ग्रामीण श्रमिकों के साथ काम करने वाले संगठनों के गठबंधन, नरेगा संघर्ष मोर्चा के अपूर्व गुप्ता ने कहा कि 2023-24 (जिसमें अभी दो महीने बाकी हैं) में रोजगार की प्रवृत्ति को देखते हुए अगले वित्तीय वर्ष में लंबित बकाया राशि लगभग 32,000 करोड़ रुपए हो जाएगी।

ऐसे में अंतरिम बजट में घोषित आवंटित राशि 86,000 करोड़ रुपए में से 32,000 करोड़ रुपए कम कर दिए जाएं तो केवल 54,000 करोड़ रुपए ही वित्त 2024-25 में उपयोग के लिए उपलब्ध होंगे।

वहीं, ग्रामीण श्रमिकों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन मजदूर किसान शक्ति संगठन के सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने कहा कि आम चुनाव को ध्यान में रखते हुए ग्रामीण रोजगार के लिए बजट की घोषणा की गई है। ऐसा लगता है कि इसमें वृद्धि हुई है, लेकिन बकाया देनदारियों और मजदूरी को देखते हुए यह राशि जरूरत से कम है।

डे ने बताया कि मनरेगा देश का एकमात्र ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम है, जिससे 14 करोड़ श्रमिक जुड़े हुएहैं। वित्त वर्ष 2023-24 के बजट में आवंटन से प्रति परिवार लगभग 16 दिनों का औसत रोजगार पैदा हो सकता था।

हालांकि, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के एमआईएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, योजना के तहत आने वाले केवल 2 प्रतिशत परिवार ही 100 दिनों का काम पूरा करने में सफल रहे हैं, जबकि अधिकांश श्रमिकों को औसतन 50 दिनों से कम समय के लिए रोजगार मिला।

डे ने कहा कि मनरेगा देश की आर्थिक वृद्धि में प्रमुख योगदानकर्ता देता है, लेकिन इसके लिए, बजट आवंटन आनुपातिक होना चाहिए। मनरेगा के लिए कम आवंटन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आर्थिक संकट में धकेल देता है।

उन्होंने कहा कि इस योजना के लिए कम से कम 2 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए जाने चाहिए, जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1 प्रतिशत के बराबर है। उन्होंने कहा, "यह आवंटन लंबित मजदूरी का भुगतान करने और सभी पंजीकृत ग्रामीण परिवारों को केवल 25 दिनों के लिए रोजगार प्रदान करने का काम करेगा।"

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