मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव: समाज कल्याण योजनाओं का चुनाव पर कितना होगा असर?

मध्य प्रदेश में महिलाओं को हर माह नगद सहायता देने का मुद्दा खूब उछल रहा है, लेकिन क्या सच में इसका चुनाव परिणामों में असर दिखेगा?

By Rakesh Kumar Malviya

On: Saturday 04 November 2023
 
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की मनौर की निवासी हल्की बाई का परिवार सरकारी राशन पर निर्भर है। फोटो: राकेश कुमार मालवीय

हल्की बाई (उम्र 45 साल) मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की ग्राम पंचायत मनौर की निवासी हैं। परिवार में पांच सदस्य हैं, तीन लड़की और एक लड़का। पति रामप्रसाद गोंड पत्थर खदानों में काम करते थे। 12 साल पहले उनकी मृत्यु हो गई।

बड़ा बेटा सेवा गोंड अब 25 साल का हो गया है। आसपास रोजगार नहीं मिलने से उसे पलायन करना पड़ता है। इस वक्त जम्मू—कश्मीर में है।

बेटी प्रीती की उम्र 18 साल, अंजू 16 साल और संजू 13 साल की है। किसी भी बच्चे का नाम स्कूल में दर्ज नहीं है। कृषि के लिए जमीन नहीं है। आसपास के जंगलों से महुआ और तेंदूपत्ता जरूर मिलता है, पर इससे साल भर की जरूरत पूरी नहीं होती। हर महीने 600 रुपए विधवा पेंशन से ही गुजारा चलता है। हर दो महीने में वह बैंक से एक हजार रुपए निकालकर तेल, मसाले, साबुन, निरमा और गेहूं 5 किलो गेहूं खरीदते हैं।

हल्की बताती हैं कि राशन दुकान से 4 सदस्यों का 16 किलो गेहूं, 4 किलो चावल,1 किलो नमक हर माह मिल जाता है, जिससे एक महीना निकल जाता है। उनका मनरेगा जॉब कार्ड तो बना है, लेकिन कभी रोजगार नहीं मिला, न ही वह काम मांगने गईं, क्योंकि जानकारी नहीं है।

हल्की कच्चे से मकान में रहती हैं, प्रधानमंत्री आवास स्वीकृत नहीं हुआ, जबकि गरीबी रेखा वाला बीपीएल कार्ड भी है। बच्चियां स्कूल नहीं जाती हैं, इसलिए मध्याह्न योजना का लाभ नहीं मिल रहा। गैस सिलेंडर भी नहीं मिला, इसलिए चूल्हे पर खाना पकाती हैं।

हल्की बाई का आयुष्मान कार्ड नहीं बन पाया है। उनकी किसी भी लड़की को लाड़ली लक्ष्मी योजना का लाभ भी नहीं मिल पाया है। हल्की बाई का परिवार अपने इकलौते बेटे की मजदूरी पर निर्भर है। यह स्थिति तब है, जब मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याणकारी योजनाओं का जोरदार प्रचार हो रहा है और सत्ता पक्ष एवं विपक्षी दल नई़-नई योजनाओं की घोषणा कर रहे हैं। 

मध्य प्रदेश में सामाजिक कल्याण की कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन भाजपा सरकार लाडली बहना योजना का जमकर प्रचार कर रही है। इस योजना में हर माह 1250 रुपए परिवार की सभी शादीशुदा महिलाओं को दिए जाते हैं। भाजपा वादा कर रही है कि चुनाव जीतने के बाद इस राशि को 3,000 रुपए कर दिया जाएगा। योजना मार्च 2023 को शुरू हुई थी। हल्की बाई को इस योजना के बारे में पता है, लेकिन उनको लगता है कि उन्हें विधवा पेंशन मिल रही है, इसलिए उन्हें लाडली बहना का लाभ नहीं मिलेगा।

उधर, कांग्रेस ने महिलाओं को 1,500 रुपए प्रति माह नारी सम्मान निधि के रूप में देने का वादा किया है। महिलाओं को नगदी देने की योजना काफी पसंद आ रही है। भोपाल में घरों में काम करने वाली सीमा अहिरवार कहती हैं कि हमें लाडली बहना योजना का लाभ मिल रहा है, ऐसी योजनाएं चलते रहना चाहिए। उनके साथ दूसरी महिला ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ऐसी रकम का बड़ा हिस्सा तो पति शराब पर कर देते हैं और उसे हम रोक नहीं सकते।

विधानसभा चुनाव में महंगाई का मुद्दा जोर पकड़ रहा है। ऐसे में जहां कांग्रेस ने गैस सिलेंडर की कीमत 500 रुपए करने की घोषणा की है, वहीं भाजपा अब 450 रुपए में सिलेंडर देने की बात कर रही है। राज्य में पेंशन योजनाएं जैसे वृद्धावस्था और निराश्रित पेंशन, विधवा पेंशन 600 रुपए जैसी योजना चल रही हैं। केंद्र की किसान सम्मान निधि योजना में 6,000 रुपए सालाना और कुछ किसानों को राज्य सरकार की ओर से चार हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान दिया जा रहा है। लाडली लक्ष्मी योजना में बालिकाओं को उम्र के अलग—अलग पड़ावों पर एक लाख रुपए की राशि दी जाती है।

इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत प्रत्येक गरीब परिवार को प्रति व्यक्ति पांच किलो अनाज, गर्भवती महिलाओं को पोषण आहार, उज्ज्जवला योजना में गैस कनेक्शन, स्वास्थ्य बीमा योजना में पांच लाख रुपए तक का मुफ्त इलाज, आयुष्मान योजना में पांच लाख तक का मुफ्त इलाज, मिड डे मील, आंगनवाड़ी मे गरम पका हुआ भोजन, उदिता योजना में किशोरी बालिकाओं को सेनेटरी पैड देने का प्रावधान है। 

सामाजिक कल्याण की इतनी योजनाओं का चुनाव परिणाम पर असर दिखेगा या नहीं, यह तो 3 दिसंबर 2023 को ही पता चलेगा, लेकिन लोगों का कहना है कि अधिकतर योजनाओं का लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंच नहीं रहा है।  नर्मदापुरम जिले के निवासी विपत भारती अपने गांव में मनरेगा में मेट का काम भी करते हैं। वह कहते हैं कि मनरेगा में मजदूरी इतनी कम है कि लोग इसमें काम ही नहीं करना चाहते हैं। यही वजह है कि लोग मजदूरी करने गांव से बाहर चले जाते हैं, जिसकारण आवश्यक दस्तावेजों का अभाव और समय-सीमा के कारण लोगों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है।  

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता सीमा जैन बताती हैं कि जनकल्याणकारी योजनाएं वंचित समुदाय के मानव अधिकारों के लिए एक अहम कड़ी हैं। चुनाव में सरकार अपनी उपलब्धियों को जनता तक पहुंचाने के लिए जोर लगाती है और विपक्ष भी अपना विजन उसके जरिए सामने रखता है, लेकिन आज के वक्त में यह सिर्फ वोट पॉलिटिक्स तक सीमित हो गई है। अब मुद्दापरक राजनीति से ज्यादा जोर व्यक्तिपरक राजनीति पर है, इसलिए इन योजनाओं का बहुत असर जनता के मानस पर नहीं पड़ने वाला है।

वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता जावेद अनीस कहते हैं कि हमारे देश में चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियां वोटरों को लुभाने के लिए बड़े-बड़े वादे करना शरू कर देती हैं। इसका विरोध करने वाले इसे “रेवड़ी कल्चर” बताते हैं जो सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए किया जाता है, जबकि समर्थन करने वाले इसे 'कल्याणकारी योजनाएं' बताते हैं जो एक प्रकार से जरूरतमंदों की मदद है। इस देश में अभी में एक बड़ी आबादी है जिनके लिए कल्याणकारी योजनाओं की जरूरत है इसलिए इसे “सरकारी खजाने पर बोझ” मान कर टाला नहीं जा सकता है, लेकिन जिस प्रकार से ठीक चुनाव से पहले ही राजनीतिक पार्टियों की इनकी याद आती है उसे भी ठीक नहीं ठहराया नहीं जा सकता है। हालांकि वह मानते हैं कि जो योजनाएं वस्तु के रूप में या सेवाओं के रूप में सीधे दे जाती हैं वह जरुरतमंदों तक ज्यादा पहुंचती हैं।

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