चिपको आंदोलन की ओर बढ़ रहा देहरादून,  विकास परियोजनाओं के नाम पर कट रहे हजारों पेड़  

2200 पेड़ दिल्ली से मसूरी घूमने आने वालों की यात्रा को ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने के लिए काटे जा रहे हैं। इनमें ज्यादातर यूकेलिप्टस, पीपल, आम के वृक्ष हैं।

By Varsha Singh

On: Monday 27 September 2021
 
Photo : सहस्त्रधारा में पेड़ों से लोग न सिर्फ चिपके बल्कि उन्हें रक्षा भी बांधा : वर्षा सिंह

क्या आप तब भी मुझे बचाने आएंगे, जब मुझे काटा जाएगा ये स्लोगन देहरादून के सहस्त्रधारा क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन के दौरान एक पेड़ की पुकार के तौर पर लिखा गया था। 26 सितंबर को यहां सड़क चौड़ी करने के लिए 2200 पेड़ों के काटने के विरोध में शहर के युवा इकट्ठा हुए। राज्य की 17 गैर-सरकारी संस्थाओं ने एकजुट होकर देहरादून में विकास परियोजनाओं के नाम पर पेड़ों के काटने का विरोध किया।

सहस्त्रधारा के पेड़ों को बचाऩे आए लोगों ने चिपको आंदोलन की यादें ताज़ा कीं। पेड़ों को गले लगाया और रक्षा सूत्र बांधा। सिर्फ़ बड़े ही नहीं बच्चे भी यहां मौजूद थे। पेड़ नहीं तो भविष्य नहींक्लाइमेट चेंज इज़ रियलडोंट बी ए फॉज़िल फूल जैसे नारों की तख्तियां हवा में लहराईं।

ये 2200 पेड़ दिल्ली से मसूरी घूमने आने वालों की यात्रा को ट्रैफिक जाम से मुक्ति दिलाने के लिए काटे जा रहे हैं। इनमें ज्यादातर यूकेलिप्टस, पीपल, आम के वृक्ष हैं। सहस्त्राधारा क्षेत्र की तकरीबन 14 किलोमीटर लंबी सड़क को दो से चार लेन की जाएगी। केंद्र सरकार ने इसके लिए 77 करोड़ रुपये स्वीकृत किये हैं।

इससे पहले जौलीग्रांट एयरपोर्ट के विस्तार के लिए भी शिवालिक एलिफेंट रिजर्व क्षेत्र के तकरीबन 10 हज़ार पेड़ों को काटने की तैयारी चल रही थी। वन्यजीवों के प्रवास और रास्तों की अनदेखी कर बनाये जा रहे इस प्रोजेक्ट का भी देहरादून के पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने विरोध किया। नैनीताल हाईकोर्ट कोर्ट के दखल के बाद ये कार्य फिलहाल रुका हुआ है।

देहरादून और इसके आसपास विकास परियोजनाओं के नाम पर हज़ारों पेड़ों के काटे जाने की तैयारी चल रही है। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस-वे के लिए 2,500 साल के पेड़ों के काटने की तैयारी है। इस पर भी नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई। हाईकोर्ट ने अगस्त-2021 में नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया से इन वृक्षों को बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने के लिए कहा। इसके अलावा एक्सप्रेस वे के लिए दिल्ली से देहरादून के बीच 8,588 वृक्षों के भी काटने का प्रस्ताव है। ताकि 250 किलोमीटर के सफ़र को 180 किमी. पर लाया जा सके।

शहर के बालावाला क्षेत्र में साइंस सिटी बनी तो 25,000 पेड़ों पर आरियां चलने की चलेंगी। चामासरी-बार्लोगंज मोटर मार्ग के लिए 800 पेड़, संतला देवी-गलज्वाडी मोटरमार्ग के लिए 720 पेड़, आशारोडी फोर लेन मोटर मार्ग के लिए 4210 पेड़ के अलावा देहरादून नगर निगम क्षेत्र में विभिन्न विकास कार्यों के लिए पेड़ों की कटाई हो रही है।

चारधाम सड़क परियोजना, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन परियोजना, सड़कें चौड़ी करने और जलविद्युत परियोजनाओं से जुड़े कई विकास कार्य राज्य में जारी हैं।

सिटीजन फॉर ग्रीन दून संस्था के हिमांशु अरोड़ा कहते हैं हमारी विकास की परिभाषा ही गलत हो गई है। एक हज़ार में से 22 लोगों के पास कार है तो क्या हम सिर्फ कार वालों को ध्यान में रखकर योजना बनाएंगे। सहस्त्रधारा में पैदल स्कूल जाने वाले बच्चों या फल-सब्जी का ठेला लेकर चलने वालों को इन्हीं पेड़ों से छांव मिलती है। क्या हम ग़रीबों से पेड़ की छाया भी छीन लेंगे

हिमांशु कहते हैं विकास परियोजनाएं पेड़ों को ध्यान में रखते हुए बनायी जानी चाहिए। क्षतिपूर्ति में पौधे लगाने की आड़ न ली जाए। क्षतिपूर्ति में लगाए गए पौधे और वर्षों पुराने वृक्षों की तुलना नहीं की जा सकती

इससे पहले डाउन टु अर्थ ने ख़बर प्रकाशित की थी कि उत्तराखंड में क्षतिपूर्ति के नाम पर नए पौधे लगाने के लिए ज़मीन उपलब्ध नहीं है। राज्य में 9,000 हेक्टेअर का बैकलॉग चल रहा है। जो भी पौधरोपण होता है वो वनों में ही होता है।

दून वासियों को इस विकास की कीमत भी चुकानी पड़ रही है। डब्ल्यूएचओ की दुनिया के 100 सर्वाधिक प्रदूषित शहरों की सूची में देहरादून 30वें स्थान पर है। इस वर्ष मानसून में देहरादून, मसूरी और आसपास के मार्ग भूस्खलन के चलते बंद हो गए। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि राज्य में बादल फटने जैसी तीव्र मौसमी घटनाओं में इजाफा हुआ है। मानसून के समय शहर की सड़कें नदियां बन जाती हैं। उत्तराखंड अपने वनक्षेत्र के आधार पर ही ग्रीन बोनस की मांग करता है। जबकि निर्माण कार्यों के चलते देहरादून का ग्रीन कवर लगातार कम हो रहा है।

Subscribe to our daily hindi newsletter