मौजूदा रफ्तार से अगले 229 वर्षों में भी दूर नहीं होगी गरीबी: ऑक्सफेम

2020 के बाद से दुनिया के पांच सबसे बड़े धनकुबेरों की सम्पत्ति में हर घंटे 1.4 करोड़ डॉलर का इजाफा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ 500 करोड़ लोग पहले से गरीब हुए हैं

By Lalit Maurya

On: Monday 15 January 2024
 

ऑक्सफेम इंटरनेशनल ने अपनी नई रिपोर्ट में आगाह किया है कि यदि मौजूदा रुझान जारी रहते हैं तो दुनिया में व्याप्त गरीबी अगले 229 वर्षों में भी खत्म नहीं होगी। हालांकि सिर्फ एक दशक में ही दुनिया को अपना पहला खरबपति जरूर मिल जाएगा।

अमीर-गरीब के बीच की असमानता की यह खाई कितनी गहरी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दुनिया के पांच सबसे बड़े धनकुबेरों की सम्पदा में 2020 से 114 फीसदी का इजाफा हुआ है। इस दौरान उनकी कुल संपत्ति 40,500 करोड़ डॉलर से बढ़कर 86,900 करोड़ डॉलर हो गई। मतलब की इनकी सम्पत्ति में हर घंटे 1.4 करोड़ डॉलर का इजाफा हुआ। वहीं दूसरी तरफ इस दौरान 500 करोड़ लोगों की संपत्ति में गिरावट आई है और गरीबों की संख्या बढ़ी है।

गौरतलब है कि यह बढ़ोतरी ऐसे समय में हुई है, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था के हालात अच्छे नहीं हैं। साथ ही कोरोना महामारी से भी दुनिया प्रभावित रही है। रिपोर्ट में दुनियाभर में बढ़ रही आर्थिक असमानता को लेकर गहरी चिंता जताई गई है। 

रिपोर्ट के अनुसार जिन धन कुबेरों की संपत्ति तेजी से बढ़ी है, उनमें अमेजन के चीफ जेफ बेजोस, एलवीएमएच के चीफ बर्नार्ड अर्नोल्ट, निवेशक वारेन बफे, ओरेकल के सह-संस्थापक लैरी एलिसन और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क का नाम शामिल है। अकेले जेफ बेजोस की कुल संपत्ति जो 16,740 करोड़ डॉलर है, उसमें दशक की शुरूआत से करीब 3,270 करोड़ डॉलर का इजाफा हुआ है।

यह पांच धनकुबेर कितने धनवान हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इनमें से यदि हर कोई प्रतिदिन दस लाख डॉलर भी खर्च करे तो उनकी कुल संपत्ति को खर्च करने में 476 साल लगेंगे।

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के सबसे बड़े निगमों में से सात का नेतृत्व एक ऐसे सीईओ द्वारा किया जाता है जो अरबपति है या फिर उनका मुख्य शेयरधारक एक अरबपति है। यह कहीं न कहीं यह इस बात को स्पष्ट करता है कि इन निगमों पर यह धनकुबेर काबिज हैं।

अमीरों की बढ़ती आय, गरीबों पर पड़ती मार

आंकड़ों के मुताबिक दुनिया के शीर्ष 148 निगमों ने 1,80,000 करोड़ डॉलर का मुनाफा कमाया, जो तीन वर्षों के औसत से 52 फीसदी अधिक है। इन निगमों का कुल मूल्य 10,20,000 करोड़ डॉलर के बराबर है, जो अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के सभी देशों की कुल जीडीपी से भी ज्यादा है। इस दौरान, जहां अमीर शेयरधारकों को भारी भरकम भुगतान किया गया, वहीं दूसरी तरफ करोड़ों लोगों को वेतन में कटौती का सामना करना पड़ा।

रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के सबसे संपन्न लोग संकट के समय में भी समृद्ध हो रहे हैं। वहीं कमजोर तबका कहीं ज्यादा संघर्ष कर रहा है। 2020 की तुलना में देखें तो 2023 में इन अरबपतियों की संपत्ति में 34 फीसदी का इजाफा हुआ है। उनकी संपत्ति में 3,30,000 करोड़ डॉलर का इजाफा हुआ। उनकी संपत्ति मुद्रास्फीति की दर से तीन गुणा तेजी से बढ़ी है। वहीं वैश्विक स्तर पर गरीबी महामारी से पहले के स्तर पर ही बनी हुई है।

अनुमान है कि अब से लेकर 2027 तक करोड़पतियों की संख्या 44 फीसदी बढ़ जाएगी। वहीं जिनकी संपत्ति पांच करोड़ डॉलर या उससे अधिक है उनकी संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हो सकता है।

इस बारे में ऑक्सफैम इंटरनेशनल के अंतरिम कार्यकारी निदेशक अमिताभ बेहर का कहना है कि हम बंटवारे के दशक की शुरूआत देख रहे हैं, जहां अरबों लोग महंगाई, महामारी, आर्थिक बदहाली और युद्ध के आर्थिक परिणामों से जूझ रहे हैं। वहीं अरबपतियों की किस्मत चमक रही है।" उनके मुताबिक यह असमानता महज संयोग नहीं है, यह अरबपति वर्ग सुनिश्चित कर रहा है कि निगम बाकी सभी की कीमत पर उन्हें अधिक धन मुहैया कराएं।

उनका आरोप है कि इन कॉरपोरेट का रवैया और एकाधिकारवादी शक्तियों की वजह से दुनिया में असमानता की खाई गहरा रही है। श्रमिकों का शोषण करके, करों से बचकर, सरकारी कंपनियों का निजीकरण करके और जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देकर यह कॉरपोरेट चांदी काट रहे हैं। इसके साथ ही वह सत्ता का दुरुपयोग करके हमारे अधिकारों और लोकतंत्र को भी कमजोर कर रहे हैं। उनके मुताबिक किसी भी संस्था या व्यक्ति के पास इतनी अधिक शक्ति नहीं होनी चाहिए जो हमारी अर्थव्यवस्थाओं और जीवन को प्रभावित कर सकें।

अमेरिकी सरकार ने भी बेजोस की संपत्ति स्रोत 'अमेजन' के खिलाफ मुकदमा दायर किया है, जिसमें कीमतें बढ़ाने, खरीदारों के लिए सेवा की गुणवत्ता कम करने और प्रतिस्पर्धा को दबाने के लिए "अपने एकाधिकार" का उपयोग करने का आरोप लगाया है।

सबसे अमीर एक फीसदी आबादी के पास दुनिया की कुल वित्तीय सम्पदा का 43 फीसदी हिस्सा है। देखा जाए तो दुनिया के यह सबसे धनवान एक फीसदी लोग उत्सर्जन के मामले में भी सबसे आगे हैं। यह सबसे बड़े धनकुबेर दुनिया की सबसे कमजोर दो-तिहाई आबादी जितना उत्सर्जन करते हैं।

रिपोर्ट का कहना है कि अमीर-गरीब की यह खाई देशों के बीच भी मौजूद है। उदाहरण के लिए उत्तर के देशों में दुनिया की केवल 21 फीसदी आबादी रहती है, जबकि दुनिया का 69 फीसदी पैसा इन्हीं देशों में है। इसी तरह दुनिया के 74 फीसदी अरबपतियों की संपत्ति इन्हीं देशों में है।

संपत्ति के मामले में पुरुषों से काफी पीछे महिलाऐं

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि अमीर-गरीब की यह खाई महिला और पुरुषों के बीच भी मौजूद है। अनुमान है कि पुरुषों के पास महिलाओं की तुलना 105 लाख करोड़ डॉलर अधिक संपत्ति है। उनकी संपत्ति का यह अंतर आकार में अमेरिकी अर्थव्यवस्था के चार गुणा से भी अधिक है।

महिलाओं की स्थिति कैसी है उसे इसी तथ्य से समझा जा सकता है कि दुनिया की सबसे बड़ी फार्च्यून 100 कंपनियों के सीईओ साल में औसतन जितना कमाते हैं, उतना स्वास्थ्य और सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाली एक महिला को कमाने में 1,200 साल लगेंगे।

बेहर के मुताबिक एकाधिकार नवाचार की राह में बाधा पैदा करते हैं और श्रमिकों एवं छोटे व्यवसायों दोनों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। दुनिया यह नहीं भूली है कि कैसे फार्मा एकाधिकार ने लाखों लोगों को कोविड ​​-19 के टीकों से वंचित कर दिया था। इसकी वजह से टीकों के वितरण में असमानता आ गई और नए अरबपतियों का उदय हुआ।

दुनिया भर में लोगों को कहीं ज्यादा घंटे कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है, लेकिन कभी-कभीं उन्हें इसके लिए पर्याप्त मजदूरी तक नहीं मिलती। करीब 80 करोड़ श्रमिकों को उतना वेतन नहीं मिल रहा जो बढ़ती महंगाई का सामना करने के लिए काफी हो। इसकी वजह से पिछले दो वर्षों में उन्हें कुल 1,50,000 करोड़ डॉलर का नुकसान हुआ है। यह हर मजदूर को करीब पूरे महीने मजदूरी न मिलने के बराबर है।

वर्ल्ड बेंचमार्किंग एलायंस के आंकड़ों की मदद से ऑक्सफैम द्वारा किए एक अध्ययन के मुताबिक, दुनिया की केवल 0.4 फीसदी बड़ी कंपनियां ही अपने कर्मचारियों को उचित वेतन देने के लिए सार्वजनिक तौर पर समर्पित हैं।

रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर में निजी सेक्टर व्यवस्था की खामियों का फायदा उठाकर टैक्स दरों में गिरावट की कोशिश कर रही हैं। इसकी वजह से पिछले कुछ दशकों में कॉर्पोरेट टैक्सों की दर में करीब एक तिहाई की गिरावट आई है। इसकी वजह से सरकारी खजाने को नुकसान हो रहा है। देखा जाए तो यह पैसा गरीबों के कल्याण पर खर्च हो सकता था। 1980 के बाद से देखें तो ओईसीडी देशों में कॉर्पोरेट आयकर की दर आधी से कम रह गई है। 1980 की शुरूआत में जो दर 48 फीसदी थी वो 2022 में घटकर महज 23.1 फीसदी रह गई है।

ऐसे में रिपोर्ट में इस असमानता को दूर करने के लिए कई सुझावों के साथ-साथ इन धनकुबेरों पर संपत्ति कर लगाने का सुझाव दिया है, जिससे हर साल सरकारों के खजाने में 1,80,000 करोड़ डॉलर वृद्धि हो सकती है जो लोगों के कल्याण में महत्वपूर्ण रूप से योगदान दे सकती है। 

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