पलायन की पीड़ा -6: प्राकृतिक आपदाओं ने 6 माह में 70 लाख लोगों को बेघर किया

ओडिशा के दो जिलों से होने वाले पलायन से प्राकृतिक आपदा और मानव तस्करी के क्या संकेत मिलते हैं

By Umi Daniel

On: Thursday 09 April 2020
 

सितंबर 2019 में इंटरनेशनल डिसप्लेसमेंट मॉनिटरिंग सेंटर (आईडीएमसी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 2019 के पहले छह महीनों के दौरान 120 देशों में 950 से अधिक प्राकृतिक आपदाओं ने 70 लाख लोगों को विस्थापित किया। यह संख्या, इस अवधि के दौरान हिंसा और संघर्ष से विस्थापित होने वाले लोगों की संख्या से लगभग दोगुनी है। रिपोर्ट चेताती है कि वर्ष के अंत तक ये संख्या तिगुनी से अधिक हो सकती है। आपदा के कारण होने वाला विस्थापन दक्षिण एशिया में खतरनाक रूप से सबसे अधिक था, जहां अनियमित व खतरनाक मौसमी घटनाओं, चक्रवात, बाढ़, उच्च तापमान और समुद्र स्तर में वृद्धि जैसी घटनाएं लगभग आधी आबादी को प्रभावित करती हैं। भारत में इन छह महीनों के दौरान, प्राकृतिक आपदाओं के कारण सबसे अधिक 22 लाख लोगों के विस्थापन की सूचना आई। मई 2019 में ओडिशा और बांग्लादेश में आए चक्रवात फैनी ने 34 लाख को विस्थापित किया। 1999 के बाद से, ओडिशा में यह सबसे मजबूत उष्णकटिबंधीय चक्रवात था।

प्राकृतिक आपदाएं अब भारत की ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की आधी से अधिक आबादी को प्रभावित करती हैं। सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों, भौगोलिक विविधता और कमजोर सूचना तंत्र (जोखिम) आपदाओं के जोखिम को और अधिक बढ़ा रहे हैं। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार, 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में से 27 आपदा-उन्मुख हैं। 68 प्रतिशत खेती योग्य भूमि सूखे की चपेट में है, 58.6 प्रतिशत पर भूस्खलन व भूकंप का खतरा है, 12 प्रतिशत बाढ़ की चपेट में है, 5,700 किलोमीटर तटीय क्षेत्र पर चक्रवात का खतरा है और 15 प्रतिशत क्षेत्र भूस्खलन को लेकर अतिसंवेदनशील है। फिर भी, बड़े पैमाने पर होने वाले विस्थापन में प्राकृतिक आपदाओं की भूमिका क्या हो सकती है, ये बताने का कोई तंत्र नहीं है।

2011 की जनगणना बताती है कि देश की 40.5 करोड़ (33 प्रतिशत) आबादी पलायन के दंश की वजह से गतिशील अवस्था में है। लोगों का अंतरराज्यीय पलायन 37 प्रतिशत है और बाकी का राज्य की सीमाओं के भीतर है। आर्थिक सर्वेक्षण 2017- 18 ने पहली बार अंतरराज्यीय श्रम प्रवास का अनुमान लगाया और कहा कि 2011 और 2016 के बीच, लगभग 99 लाख लोग हर साल एक राज्य से दूसरे राज्य चले गए। ये राष्ट्रीय आंकड़े राज्यों के बीच पलायन की संख्या में वृद्धि की ओर इशारा करते हैं। भारत में जनगणना के आंकड़े प्राकृतिक आपदाओं या संघर्ष जैसे अदृश्य कारकों के बारे में नहीं बताते। हालांकि, आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि पलायन में प्राकृतिक आपदा एक प्रमुख कारक हो सकती है।

2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण में 75 जिलों की पहचान पलायन वाले हॉटस्पॉट के रूप में की गई है। ये 75 जिले 12 राज्यों में हैं, जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार में उच्च पलायन वाले जिलों का 50 प्रतिशत हिस्सा हैं। बाकी के जिले उत्तराखंड, राजस्थान, झारखंड, असम, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और ओडिशा में फैले हुए हैं। वैसे तो इन जिलों से होने वाले पलायन की मुख्य वजह आर्थिक कारण रहे हैं लेकिन ये जिले सूखे, बाढ़, चक्रवात और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं को भी झेलते हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2017 के तहत, ओडिशा में आउट-माइग्रेशन हॉट स्पॉट के रूप में बलांगीर और गंजम की पहचान की गई है। आइए, इन जिलों का विश्लेषण करते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार, बलांगीर में 6,05,000 से अधिक लोग प्रवासी हैं। वहीं, मीडिया दावों के मुताबिक बलांगीर में श्रमिक तस्करी का कारोबार करीब 1,000 करोड़ रुपए का है। 1974 से 2017 के दौरान, बलांगीर में 17 साल सूखा रहा, चार साल मामूली सूखा रहा, चार साल बाढ़ की चपेट में रहा, जिसके कारण बड़े पैमाने पर फसल की बर्बादी हुई। खरीफ फसल में केवल 11 फीसदी जमीन और रबी फसल में केवल 4.6 फीसदी जमीन ही सिंचित है। जिले से होने वाले पलायन का संबंध प्राकृतिक आपदाओं से जोड़ने के लिए शायद ही कोई सर्वेक्षण किया जा रहा हो। हालांकि, गैर-लाभकारी संस्था प्राक्सिस की रिपोर्ट पार्टिसिपेटरी पावर्टी असेस्मेंट्स बताती है कि बलांगीर में सूखा, कर्ज, गरीबी और पलायन के बीच एक गहरा संबंध है। ओडिशा में गंजम उच्च पलायन दर वाला दूसरा जिला है। यह उत्तरी आंध्र प्रदेश के तट पर आने वाले सभी घातक तूफानों का निशाना रहा है। 2011 की जनगणना के अनुसार, गंजम के 13 लाख लोग प्रवासी हैं और बड़ी संख्या में लोग आज खाड़ी देशों में मजदूरी के लिए जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, 1998 से 2017 के बीच, जलवायु संबंधी घटनाओं और भौगोलिक आपदाओं ने 13 लाख लोगों की जान ले ली, 440 करोड़ घायल, बेघर, विस्थापित होकर रह गए। सिर्फ दो दशक में भारत को 79.5 बिलियन डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ है। अकेले फैनी के कारण 24,000 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है, जो ओडिशा के वार्षिक बजट का लगभग 20 प्रतिशत है। आश्चर्य की बात है कि देशभर में आपदा प्रभावित क्षेत्रों से पलायन तेजी से बढ़ रहा है, फिर भी ग्रामीण-शहरी श्रमिक पलायन और प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित लोगों के पलायन को समझने-पहचानने के लिए अब तक कोई प्रभावी तंत्र विकसित नहीं किया जा सका है।

(लेखक माइग्रेशन इन्फॉर्मेशन एंड रिसोर्स सेंटर के निदेशक हैं।)

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