पलायन की पीड़ा-7: एजेंडे में बदलाव की जरूरत

कोरोनावायरस और देशव्यापी लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों के पलायन पर बहस छिड़ी हुई है। पलायन के कारण तलाशती एक लेख-

By Max Martin

On: Friday 10 April 2020
 

1980 के दशक और उससे पहले से ही योजना और नीति पत्रों में जलवायु-संबंधित प्रवासन के मुद्दे पर बात हुई है। हालांकि, उनकी तरफ से जारी किए गए आंकड़ों का शायद ही कभी कोई अर्थ निकला हो। प्रवासन एक जटिल घटना है। ग्लोबल एनवायरमेंटल चेंज पत्रिका के एक अत्यधिक प्रभावशाली विशेषांक के संपादकों ने एक दशक पहले ही यह तर्क दिया था कि “प्रवासन एक महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक घटना है जिसकी किसी न किसी तरह से पर्यावरण परिवर्तन के मानवीय पहलुओं के क्षेत्र में अनदेखी की गई है। एक परस्पर और गतिशील दुनिया में तनाव, सदमे और अनिश्चितता जैसी स्थितियों के सन्दर्भ में प्रवास एक महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया है। इसलिए सवाल यह नहीं है कि जलवायु परिवर्तन प्रवास का कारण बनता है या नहीं (क्योंकि यह तो निश्चित रूप से होता है), बल्कि सवाल यह है कि यह किस हद तक और किन तरीकों से पलायन को बढ़ावा देता है।

अचानक से जलवायु परिवर्तन के कारण नाटकीय तौर पर सामूहिक प्रवासन की आम धारणा सही नहीं है। लोग अलग-अलग समय में एक जगह से दूसरी जगह आते-जाते रहते हैं। इस तरह की गतिविधियों के लिए नया प्रचलित शब्द गतिशीलता है। इसमें बड़े पैमाने पर लोगों के आवागमन, वस्तुओं, पूंजी, और दुनिया भर की जानकारी के साथ ही सार्वजनिक स्थानों के जरिए हो रहीं दैनिक परिवहन और आवागमन की और अधिक स्थानीय प्रक्रियाएं समाहित हैं।

यह प्रवासन के दायरे का विस्तार करता है, जिसे आमतौर पर अपने निवास स्थान से दूर चले जाना समझा जाता है, चाहे वह देश के भीतर हो या अंतरराष्ट्रीय सीमा पर, अस्थायी हो या स्थायी, या फिर तमाम कारणों की वजह से हुआ हो। जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में प्रवासन एक दीर्घकालिक अनुकूलन या परिवर्तन का सामना करने की अल्पकालिक रणनीति हो सकती है। सुंदरवन में रहने वाले और अक्सर मौसमी बाढ़, तूफान व नदी के कटाव से प्रभावित होने वाले व्यक्ति के लिए गतिशीलता या तो जीवन-मरण का प्रश्न हो सकती है या फिर गरीबी से बचने का।

 तूफान से प्रभावित एक व्यक्ति एक साइक्लोन शेल्टर में जा सकता है, काम के लिए दिन में उन गांवों की यात्राएं कर सकता है जहां के खेत हाल के तूफान से उतने प्रभावित न हों। वह अस्थायी रूप से एक छोटे से शहर में पलायन कर के खिलौने बेच सकता है, या बड़े शहर में बसने के बारे में तय कर सकता है, जहां उसे नौकरी मिल सकती है। आजकल प्रवासन को समाधान के रूप में देखा जाता है।

अतीत में भीषण मौसमी घटनाएं और आपदाएं जनसंख्या विस्थापन की वजहें बनीं। हाल के अनुसंधान से पता चलता है कि ऐसी प्रचंड घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता में परिवर्तन और उनकी अचानक शुरुआत से इस प्रकार के विस्थापन की चुनौतियों, जोखिमों, और भौगोलिक प्रसार में वृद्धि होगी। उदाहरण के लिए, मॉनसून के मौसम में अत्यधिक बारिश के वजह से 2018 में केरल में आई बाढ़ से एक लाख लोग अस्थायी रूप से विस्थापित हो गए। उस वर्ष, आपदाओं के कारण देश भर से लगभग 26.7 लाख लोग विस्थापित हुए थे। 2019 में भी अत्यधिक बारिश और बाढ़ का रुझान जारी रहा। अत्यधिक बारिश की प्रवृत्ति के बीच मुंबई जैसे महानगरों को बार-बार बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है, जिसे प्रमुख वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के रूप में देखते हैं। वहीं अनियमित और अल्प बारिश बड़े पैमाने पर फसलों की बर्बादी, भोजन की कमी, और आगामी पलायन की वजह बनती है।

जलवायु परिवर्तन से लोगों का गतिशीलता पैटर्न किस तरह प्रभावित होता है, इस पर यूनाइटेड नेशंस इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की पांचवीं आकलन रिपोर्ट (एआर5) ने कुछ सामान्य रुझान दिखाए हैं। सबसे पहले, शहरी प्रवास में बढ़ोतरी हुई, जिसके फलस्वरूप शहरों का फैलाव और क्षैतिज विस्तार हो रहा है। कई संसाधनविहीन संवेदनशील समूह अत्यधिक कठोर और आपदा की स्थितियों में संवेदी स्थानों पर फंस सकते हैं।

वैज्ञानिकों का कहना है कि यह कई लोगों के लिए दोहरी मार हो सकती है क्योंकि यह झोपड़ियों में रहने वाले शहरी प्रवासियों को बाढ़, लू, और तटवर्ती नगरों में बढ़ते तूफानों जैसे जोखिमों के सामने ला खड़ा करती है। शहर में रहने वाले निर्धनों के सामने कई अप्रत्यक्ष खतरे भी हैं, जिन में खाद्य कीमतों में वृद्धि के कारण खाद्य असुरक्षा और और आवासीय मूल्य शामिल है। दूसरे, कठिन मौसमी घटनाओं के कारण अचानक पलायन कि स्थिति उत्पन्न हो सकती है जो कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक की अवधि की सकती है।

ऐसे मामलों में लोग उस घटना के समाप्त होने के बाद अपने मूल स्थानों पर लौट जाया करते हैं और इसका प्रभाव कम हो जाता है। तीसरा, समुद्र के स्तर में वृद्धि, तटीय क्षरण, जल संसाधनों की लवणता और कृषि उत्पादकता में कमी जैसे दीर्घकालिक परिवर्तनों की वजह से स्थायी पलायन हो सकता है। समुद्र के स्तर में बदलाव को विशेष रूप से स्थायी प्रवासन का कारण माना गया है। जलवायु परिवर्तन नए पलायन को गति दे रहा है, यह चिंता करने के लिए पर्याप्त कारण भी दे रहा है। जैसा वैज्ञानिक रिपोर्ट कहती हैं, हमें ध्यान रखना चाहिए कि यह वक्त कार्रवाई का है।

(लेखक स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज, यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स, यूके के रिसर्च फेलो हैं)

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