झारखंड में प्रवासियों की वापसी, जरा सी चूक कहीं पड़ न जाए भारी

झारखंड में अब तक 115 लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए हैं। इसमें 90 प्रतिशत मामले ए सिंप्टोमेटिक हैं

On: Wednesday 06 May 2020
 
झारखंड के धनबाद जंक्शन पर उतरते प्रवासी मजदूर, ये केरल से यहां आए हैं। फोटो : twitter/@dc_dhanbad

आनंद दत्त

झारखंड में प्रवासी मजदूर और छात्र लौटने लगे हैं। पांच अप्रैल तक पांच हजार से अधिक लोग पहुंच चुके हैं। स्टेशन पहुंचने के बाद इनकी स्क्रिनिंग की जाती है। फिर रांची से जिला मुख्यालय पहुंचने पर स्क्रिनिंग की जाती है। यहां उन्हें राशन का किट देकर घर तक पहुंचाया जा रहा है। उनके हाथों पर ठप्पा मारा गया, साथ ही किसी से न मिलने ही हिदायत दी गई। प्रशासनिक व्यवस्था यह भी थी कि सभी के घर पोस्टर भी चिपकाया जाएगा। 

गढ़वा जिले के उरुल हक ने बताया कि जिला मुख्यालय पहुंचने पर अधिकारियों ने जांच किया। फिर हाथ पर मुहर मारकर अनाज का एक पैकेट दिया। जिसमें पांच किलो चावल, एक किलो दाल, एक किलो आलू था। उनके घर के बाहर किसी तरह का कोई पोस्टर नहीं चिपकाया गया है। वहीं पप्पू कुमार ने बताया कि उनके घर में पोस्टर लगा है। जिसमें साफ लिखा है, हमें आपकी चिंता है, कृप्या घर पर ही रहें। बबलू गुप्ता के पास दो ही कमरे हैं। वह गांव वालों से तो मिल नहीं रहे, लेकिन घर के लोग के साथ दूरी व सेल्फ आइसोलेशन जैसी बातों का पालन संभव नहीं है। साथ ही उनके घर में भी पोस्टर नहीं चिपकाया गया है।

ये खतरनाक क्यों हो सकता है। क्योंकि, झारखंड में अब तक 115 लोग कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए हैं। इसमें 90 प्रतिशत मामले ए सिंप्टोमेटिक हैं। यानी इनके लक्षण पहले से पता नहीं चलते, जब तक कि कोविड टेस्ट न हो जाए। टेस्ट का हाल ये है कि बीते 4 अप्रैल तक  कुल 1131 सैंपल परिणाम के इंतजार में ही हैं। वहीं राज्य के 24 जिलों में से मात्र चार जगहों पर कोविड टेस्ट किया जा रहा है। जाहिर है सरकार के पास न तो सभी लोगों के टेस्ट का इंतजाम है, न उसके लिए कोई गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं।

राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ मनोज कहते हैं, ‘’झारखंड ही नहीं, पूरी दुनिया में ए-सिंप्टोमेटिक वाले केस अधिक हैं। अब चूंकि हमारे पास संसाधन कम है, ऐसे में स्क्रिनिंग करके होम क्वारंटाइन के अलावा और कोई उपाय नहीं है।’’

कोटा से दो हजार से अधिक बच्चे आए हैं। कोटा और रांची दोनों रेड जो में हैं। ऐसे में केवल स्क्रिनिंग से पता लगाना संभव नहीं है। हाल ये है कि जमशेदपुर में कोटा से लौटी एक छात्रा को अपार्टमेंट वालों ने चार घंटे तक घुसने नहीं दिया। कोटा से आनेवाली ट्रेन में बोकारो की एक बच्ची की तबियत खराब हो गई, उसे आइसोलेशन में रखा गया है।

धीमा पड़ने लगा भोजन कराने का जुनून  

टेस्ट के बाद अब आते हैं भोजन के इंतजाम पर। सरकारी दावों के मुताबिक हर दिन छह लाख से अधिक लोगों को पका हुआ भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। लेकिन फिलहाल स्थिति अलग है।

धनबाद जिले के एक मुखिया ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘’कोरोना फंड के तहत सरकार ने हरेक पंचायत को 20 हजार रुपए उपलब्ध कराए थे। उसमें हर दिन 200 से अधिक लोगों को खिलाना था। पैसा कब का खत्म हो गया। अपने तरफ से लगाकर कब तक खिलाएंगे। कई जगहों पर पर बंद हो चुका है।’’

राज्य के पुलिस थानों में भोजन की व्यवस्था थी, अधिकतर जगहों पर वह भी बंद हो चुका है। रांची पुलिस के एक थानेदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ‘’थानों को इसके लिए पैसा नहीं दिया गया। हमने कुछ व्यापारियों और एनजीओ की मदद से 10 दिन से अधिक भोजन काराया है। अब इससे ज्यादा संभव नहीं है। हालांकि अब लोग भी आने कम हो गए हैं।’’

झारखंड में सात लाख लोग ऐसे हैं जिनके पास राशन कार्ड नहीं है। कुछ के कार्ड पिछली सरकार ने निरस्त कर दिए थे, कुछ को अप्लाई करने के बाद भी नहीं मिला है। हाईकोर्ट में दायर एक जनहित याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि ऐसे लोगों में मात्र 35 प्रतिशत लोगों को ही वह राशन मुहैया करा पाई है। लॉकडाउन में ऐसे लोगों को सरकार ने 10 किलो अनाज देने की घोषणा की थी।

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