एशिया में हर साल नष्ट हो जाती है किसानों की 20% उपज, इसलिए बढ़ रही हैं कीमतें

एफएओ के ग्लोबल फ़ूड लॉस इंडेक्स से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर उपज की कटाई के बाद करीब 14 फीसदी खाद्य पदार्थ दुकानों तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं

By Lalit Maurya

On: Tuesday 15 October 2019
 
Photo: Kundan Pandey

इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी की जहां दुनिया में हर रोज 82 करोड़ लोग भूखे सोने के लिए मजबूर हैं, जबकि 200 करोड़ लोगों को उतना भोजन नहीं मिल पता जो उन्हें पर्याप्त पोषण दे सके । वहीं दूसरी ओर हर वर्ष कटाई के बाद किसानों की उपज का करीब 14 फीसदी हिस्सा दुकानों तक पहुंचने से पहले ही नष्ट हो जाता है। फूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया भर के किसान अपनी उपज का 14 फीसदी हिस्सा खो देते है, जो कि 40,000 करोड़ डॉलर के मूल्य के बराबर होता है। जबकि पहले के अनुमानों के अनुसार करीब एक तिहाई खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं। इसके साथ ही यह रिपोर्ट इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि किस फसल का कहां और कितना नुकसान होता है।

एफएओ के अनुसार इस नुकसान के लिए मुख्य रूप से कीट, बीमारियां, फसलों की ठीक से कटाई और हैंडलिंग न होना, इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी और जलवायु सम्बंधित जोखिम जिम्मेदार होते हैं। एफएओ के महानिदेशक कु डोंगयु ने बताया कि यह सिर्फ फसल का नुकसान नहीं है, इस नुकसान का अर्थ है कि इस फसल के लिए उपयोग किये गए भूमि और जल संसाधन बर्बाद हो गए और हमने इसके लिए बिना किसी उद्देश्य के प्रदूषण और ग्रीनहाउस गैसों को उत्सर्जित किया है।"

दक्षिण एशिया में सबसे अधिक नुकसान 

एफएओ के अनुसार वैश्विक स्तर यह नुकसान लगभग 14 फीसदी के बराबर होता है। सबसे अधिक मध्य और दक्षिणी एशिया में 20 फीसदी खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं, जिसके बाद उत्तरी अमेरिका और यूरोप में 15 फीसदी से अधिक और ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में सबसे कम 6 फीसदी फसल उपज नष्ट हो जाती है।

एक चौथाई से अधिक तिलहन फसलें हो जाती हैं नष्ट

एफएओ के आंकड़ें दर्शाते हैं कि जहां 25.3 फीसदी कन्द जैसे की कसावा और आलू और तिलहन फसलें नष्ट हो गयी,  वहीं 21.6 फीसदी फल और सब्जियां, 11.9 फीसदी मीट और पशुओं से प्राप्त होने वाले उत्पाद और 8.6 फीसदी अनाज और दालों की उपज बेकार हो गयी।

एफएओ द्वारा जारी इस रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों की बर्बादी को रोकने की जरूरत पर बल दिया गया है जो ‘‘सतत विकास के लिए वर्ष 2030 के एजेंडा’’ में शामिल है। साथ ही इसमें फसलों की कटाई, बुनियादी ढांचे का अभाव, फसलों को रोगों और कीटों से बचाने और जलवायु में आ रहे बदलाव को ध्यान में रखते हुए कृषि क्षेत्र में सुधार लाने पर बल दिया गया है।

इस रिपोर्ट में खाद्य पदार्थों के होने वाले नुकसान को कम करने के लिए वैश्विक रूप से नीतियां बनाने और उस दिशा में काम करने के लिए सुझाव और दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं, जिससे खाद्य पदार्थों को कचरे में जाने से रोका जा सके। इसमें किसानों और उत्पादकों को प्रोत्साहित करने पर भी बल दिया गया है, जिससे लागत में कमी आ सके और साथ ही किसानों की कार्य कुशलता में वृद्धि हो सके। जिससे उपज को नष्ट होने से बचाया जा सके।

इन सुधारों में सीमान्त किसानों के लिए वित्तीय सहायता भी शामिल है, जिनके पास बेहतर तकनीकों और उनके अमल के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। साथ ही कृषि क्षेत्र के डेटा और उसके विश्लेषण में सुधार लाने को भी अहम बताया है। जिसकी सहायता से सरकार अपनी योजनाओं और कार्यों पर अधिक सटीक रूप से कार्य कर सकेंगी। इसके साथ ही इससे आपूर्तिकर्ता और उपभोक्ताओं के बीच खाद्य पदार्थों के होने वाले नुकसान और खाद्य पदार्थों की होने वाली बर्बादी को रोकने से होने वाले लाभों के बारे में भी जागरूकता पैदा की जा सकेगी। साथ ही इसकी मदद से उचित और सही निर्णय लिए जा सकेंगे।

आज खाद्य पदार्थों का जितना उत्पादन किया जाता है वो इस धरती पर सभी के लिए पर्याप्त है, लेकिन इसके बावजूद दुनिया के कुछ हिस्सों में करोड़ों लोग अभी भी भूखे रहने को मजबूर हैं । यही सही समय है जब हम बर्बादी का सही मोल समझें और इसे रोकने ले लिए सही कदम उठायें जो यह सुनिश्चित कर सके कि दुनिया में हर किसी को पर्याप्त भोजन मिल सके, और कोई भूखा न रहे।

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