बढ़ते वजन और मोटापे से परेशान है हर तीन में से एक व्यक्ति: रिपोर्ट

दुनिया भर में हर तीन में से एक व्यक्ति बढ़ते वजन और मोटापे से परेशान है, जबकि आज भी करीब 82 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 13 May 2020
 

दुनिया भर में हर तीन में से एक व्यक्ति बढ़ते वजन और मोटापे से परेशान है| जबकि आज भी करीब 82 करोड़ लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता है। यदि आनुपातिक रूप से देखें तो हर 9 में से एक व्यक्ति भुखमरी का शिकार है। यही वजह है कि आज दुनिया के कई देश कुपोषण की दोहरी मार झेल रहे हैं। यह चौंकाने वाले आंकड़ें हाल ही में जारी ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2020 में सामने आये हैं।

रिपोर्ट के अनुसार आज दुनिया के कई देशों में कुपोषण, मोटापा, और भोजन संबंधी बीमारियों जैसे डायबिटीज, हृदय रोग और कैंसर की समस्या बढ़ती जा रही है। 5 वर्ष से कम आयु के करीब 15 करोड़ बच्चे स्टंटिंग से ग्रस्त हैं। गौरतलब है कि स्टंटिंग के शिकार बच्चों में उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है।

आज पौष्टिक भोजन दुनिया के ज्यादातर लोगों की पहुंच से बाहर है| जिसकी एक बड़ी वजह हमारी कृषि प्रणाली है| जिसमें पोषण के स्थान पर उत्पादकता को अधिक महत्त्व दिया जाता है। साथ ही, कम कीमत पर आसानी से उपलब्ध तला हुआ भोजन भी बढ़ते कुपोषण की एक बड़ी वजह है। जो आपका पेट तो भर सकता है, स्वादिष्ट लग सकता है। पर वो आपको पोषण नहीं दे सकता। आज पौष्टिक भोजन की उपलब्धता में जो असमानता है, वो न केवल देशो के बीच है। बल्कि एक देश में भी अलग-अलग जगह पर इस तरह की असमानता को देखा जा सकता है।

2025 तक मुश्किल है किसी भी देश का न्यूट्रिशन से जुड़े सभी लक्ष्यों को हासिल करना

जिस रफ्तार से कुपोषण से निपटने की कवायद जारी है, उससे 2025 के लक्ष्यों को हासिल करना बहुत मुश्किल है। गौरतलब है कि वर्ल्ड हेल्थ असेंबली ने 2025 के लिए पोषण से जुड़े 6 लक्ष्य निर्धारित किये थे|

  1. 5 वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों में 40 फीसदी तक स्टंटिंग को कम करना।
  2. 15 से 49 वर्ष की महिलाओं में एनीमिया को 50 फीसदी तक कम करना|
  3. जन्म के समय बच्चे के वजन में कमी को 30 फीसदी कम करना|
  4. बच्चों में मोटापे और बढ़ते वजन को कम करना|
  5. 6 महीने तक के शिशु में स्तनपान को 50 फीसदी तक करना|
  6. बच्चों में वेस्टिंग को 5 फीसदी से कम करना।

पर जिस तेजी से इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं| उससे एक बात तो स्पष्ट है कि कोई भी देश 2025 तक न्यूट्रिशन से जुड़े सभी लक्ष्यों को हासिल नहीं कर सकता| आंकड़ों के अनुसार 194 में से केवल 8 देश ही इस लायक है कि वो 2025 तक इससे जुड़े चार लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे| रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया भी उन 88 देशों में से एक है जो 2025 तक अपने पोषण से जुड़े लक्ष्यों को हासिल नहीं कर पाएगा|

भारत के लिए भी एक बड़ी समस्या है कुपोषण

भारत में जहां 15 से 49 वर्ष की आयु की हर दो में से एक महिला खून की कमी से ग्रस्त है| वहीँ पांच वर्ष या उससे कम आयु के हर तीन बच्चों में से एक स्टंटिंग का शिकार है| जबकि इसी आयु वर्ग के हर पांच बच्चों में से एक वेस्टिंग (उंचाई के अनुपात में वजन कम होना) से ग्रस्त है| उपर से इसमें भी देश के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच असमानता है| आंकड़ों के अनुसार शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में स्टंटिंग 10.1 फीसदी ज्यादा है| भारत में जहां 20.7 फीसदी महिलाएं बढे हुए वजन और मोटापे से ग्रस्त हैं| वहीं 18.9 फीसदी पुरुषों में यह समस्या देखी जा सकती है| यही वजह है कि भारत एक साथ जहां कुपोषण का शिकार है, वहीं दूसरी और बढ़ते वजन और मोटापे से हो रही बीमारियों का भी दंश झेल रहा है|

हालांकि इस रिपोर्ट को कोरोनावायरस महामारी से पहले तैयार कर लिया गया था| पर इस रिपोर्ट में इस बात का भी उल्लेख किया गया है| दुनिया भर के देश इस महामारी से निपटने के लिए जी जान से जुटे हुए हैं| ऐसे में इसका असर भुखमरी और कुपोषण पर भी पड़ेगा| जिसके चलते इसके और बढ़ने के आसार हैं| उपर से लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान का असर भी खाद्य संकट को और बढ़ा देगा|

कोरोनावायरस से निपटने में हमारे इम्यून सिस्टम का बड़ा हाथ है ऐसे में कुपोषण और भुखमरी के चलते लोगों के ख़राब इम्यून के कारण इस वायरस के चपेट में आने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी| जिसका सबसे ज्यादा असर गरीब तबके पर ही पड़ेगा| साथ ही जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहा है और उत्पादकता गिर रही है| उसका असर भी स्पष्ट रूप से स्वास्थ्य और पोषण पर पड़ेगा| ऐसे में इस खतरे से निपटने के लिए पोषण और स्वास्थ्य पर ध्यान देना जरुरी है| साथ ही रिपोर्ट के अनुसार भोजन और स्वास्थ्य प्रणाली में व्याप्त असमानता कुपोषण की समस्या को और बढ़ा रही है| इसलिए उसपर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत है| जिससे उसमें बढ़ रही असमानता की खायी को पाटा जा सके|

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