कोरोना के कारण दुनियाभर में भोजन के लिए मच रहा कोहराम

कोविड-19 के कारण अब दुनियाभर में खाद्य पदार्थों की मारामारी शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में यह संकट और विकराल हो सकता है।

By Shagun

On: Friday 27 March 2020
 
दिल्ली में मजदूरों के लिए खाने का इंतजाम किया गया है। फोटो: विकास चौधरी

 

नोवल कोरोना वायरस बीमारी (कोविड-19) के कारण अब दुनियाभर में खाद्य पदार्थों की मारामारी शुरू हो गई है। आने वाले दिनों में यह संकट और विकराल हो सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में तीन सप्ताह के लॉकडाउन ने फूड डिस्ट्रिब्यूशन चैनल्स (खाद्य वितरण प्रणालियों) को बुरी तरह से प्रभावित किया है। जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने वाली खाद्यानों की आपूर्ति अस्त-व्यस्त होने लगी है।

बढ़ते खाद्य संकट पर काबू पाने के लिए भारत सरकार ने 2020 के 26 मार्च को अगले तीन महीनों के लिए गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को मुफ्त में अनाज देने की घोषणा की है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना’ के तहत 1.7 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की है। इसके तहत, देश के 80 करोड़ लोगों से जुड़े हर परिवार को हर महीने एक किलो दाल और पांच किलो गेहूं या चावल मुफ्त में दिए जाएंगे। इनके अलावा, लोगों को वे सारी सुविधाएं मिलती रहेंगी, जो उन्हें पहले से मिलती आ रही हैं।

कोरोना वायरस के खौफ की वजह से दुनिया के लगभग 20 फीसदी हिस्से में लॉकडाउन है और कई सारे देश खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के कदम उठा रहे हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, चावल के मामले में दुनिया के तीसरे सबसे बड़े उत्पादक देश वियतनाम ने निर्यात से संबंधित अपने सारे अनुबंध या करार पर रोक लगा दी है। गेहूं के मामले में दुनिया के 9वें सबसे बड़े निर्यातक देश कजाकिस्तान ने भी निर्यात को रोक दिया है।

इन सबके बीच संयुक्त राष्ट्र से जुड़े संगठन ‘खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ)’ ने सभी मुल्कों को आगाह किया है कि खाद्य के मामले में अगर वे संरक्षणवादी नीति अपनाते हैं तो उससे दुनियाभर को खाद्य पदार्थों की भारी कमी से जूझना पड़ सकता है। खाद्य समस्या दुनियाभर में शुरू भी हो गई है। चीन के लोग खाद्यान्न की कमी की शिकायत करने लगे हैं। इसी तरह, अमेरिका के सुपरमार्केट्स के स्टॉक कम होने लगे हैं। अफ्रीकी देशों में खाद्यान्न की कीमतें बढ़ने लगी हैं और कनाडा में भी निकट भविष्य में खाद्य पदार्थों की कीमतों में इजाफा और उपलब्धता में कमी होने की चेतावनी वहां के कृषि क्षेत्र ने दी है।

‘यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन टू कंबैट डीजर्टीफिकेशन (यूएनसीसीडी)’ ने कहा है कि दुनियाभर के लाखों लोगों को सूखे की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इससे खाद्य समस्या और गहरी हो सकती है।

यूएनसीसीडी के एग्जीक्यूटिव सेक्रेटरी इब्राहिम थियाव के अनुसार, दुनिया के 70 से अधिक देश पहले से सूखे की समस्या का सामना कर रहे हैं। अप्रैल में जारी एक बयान में संगठन ने कहा था कि दक्षिणी अफ्रीकी देशों के रिकॉर्ड 4.5 करोड़ लोगों के समक्ष खाद्य सुरक्षा की समस्या आ सकती है। इसका एक कारण सूखा होगा और यह समस्या काफी कुछ 2015-2017 के बीच पैदा हुई खाद्य समस्या की तरह की हो सकती है।

बयान में कहा गया कि दुनिया के इन क्षेत्रों के 83 लाख लोग जो फिलहाल खाद्य समस्या का सामना कर रहे हैं, उनकी मदद के लिए वर्ल्ड फूड प्रोग्राम को 2020 के फरवरी तक 48.9 करोड़ डॉलर चाहिए।

कोविड-19 नामक यह महामारी कृषि चक्र भी खराब कर सकती है, यानी संभव है कि किसान सही वक्त पर अपनी फसल नहीं लगा पाएं और न ही लगी हुई फसल की कटाई कर पाएं। लॉकडाउन से पैदा हुई मजदूरों की कमी, यातायात से साधनों के अभाव और मंडी बंद होने से भारत में रबी फसल की पैदावार और उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।

‘अलायंस फॉर सस्टेनेबल एंड हॉलिस्टिक एग्रीकल्चर’ ने भारत के प्रधानमंत्री और केंद्रीय कृषि मंत्री को पत्र लिखकर उनसे शहरी और औद्योगिक केंद्रों में फंसे हुए मजदूरों को निकालने, आश्रय देने और भोजन उपलब्ध कराने का आग्रह किया है।

पत्र में सरकार से ऐसे उपाय करने का भी आग्रह किया गया है कि ताकि कोविड-19 से सुरक्षित रहते हुए किसान अपनी फसल और पैदावार सुनिश्चित करने में सक्षम हों।

संगठन ने सरकार से कृषि कार्यों को लॉकडाउन से दायरे से बाहर रखने का आग्रह भी किया है, क्योंकि सही समय पर किसानों द्वारा फसलों की कटाई और पैदावार का संग्रह नहीं करने से फूड सप्लाई चेन (खाद्य आपूर्ति श्रृंखलाएं) बुरी तरह से प्रभावित होगी। इससे खाद्य संकट और गहरा सकता है।

संगठन ने यह भी कहा है कि अगर किसान और कृषि श्रमिक अपनी इच्छा से अपनी फसल की कटाई करना चाहते हैं और पंचायत और अन्य संबंधित विभागों की निगरानी में वे कोविड-19 से बचाव के लिए उचित सुरक्षा उपाय करते हैं तो उन्हें ऐसा करने की इजाजत दी जानी चाहिए।

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