अमेरिका करता है सबसे ज्यादा मांस की बर्बादी, 18 अरब जानवर मरते हैं बेवजह

अध्ययन के मुताबिक, अमेरिका का स्कोर सबसे खराब है, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील का है। जबकि भारत में, औसत व्यक्ति केवल बहुत कम मात्रा में मांस बर्बाद करता है।

By Dayanidhi

On: Thursday 23 November 2023
 
फोटो साभार: आईस्टॉक

एक नए अध्ययन के मुताबिक, हर साल, 18 अरब मुर्गियां, टर्की, सूअर, भेड़ और बकरियोंं को या तो मारा जाता है या अलग-अलग कारणों से मर जाते हैं, लेकिन उन्हें खाया नहीं जाता। इसे मांस की बर्बादी कहा जाता है। पर्यावरण वैज्ञानिक जूलियन क्लौरा, लॉरा शायर और जेरार्ड ब्रीमन वैश्विक स्तर पर इस संख्या की गणना करने वाले पहले अध्ययनकर्ता हैं। इन संख्याओं को कम करने से न केवल अनावश्यक पशु पीड़ा को रोका जा सकेगा बल्कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में भी मदद मिलेगी।

सस्टेनेबल प्रोडक्शन एंड कंजम्पशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक, हमारा बहुत सारा खाना प्लेट की बजाय कूड़ेदान में चला जाता है। विश्व स्तर पर उत्पादित भोजन का लगभग एक तिहाई नष्ट हो जाता है या बर्बाद हो जाता है। लेकिन पहले कभी यह गणना नहीं की गई कि हर साल कितने जानवर भोजन के रूप में पहुंचने से पहले मर जाते हैं।

शोधकर्ताओं ने दुनिया भर में सबसे आम पालतू जानवरों में से छह के उत्पादन और खपत की जांच की और गणना की, कि हर साल 18 अरब जानवर बर्बाद हो जाते हैं। यह 5.24 करोड़ टन हड्डी रहित, खाने योग्य मांस के बराबर है। यह विश्व स्तर पर उत्पादित कुल मांस का लगभग छठा हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक, कोविड-19 महामारी के प्रभाव से बचने के लिए 2019 की स्थिति को दर्शाती है।

बर्बादी के मामले में अमेरिका का स्कोर सबसे खराब

क्लौरा बताती हैं, मांस के नुकसान और बर्बादी के अलग-अलग कारण हैं। विकासशील देशों में, नुकसान आम तौर पर प्रक्रिया की शुरुआत में होता है, जैसे कि पालन-पोषण के दौरान बीमारियों के कारण पालतू पशुओं की मौत या भंडारण या यातायात के दौरान मांस का खराब होना है।

औद्योगिक देशों में, अधिकांश अपशिष्ट उपभोग पक्ष पर होता है, सुपरमार्केट में जरूरत से ज्यादा सामान जमा हो जाता है, रेस्तरां बड़े हिस्से में खाना परोसते हैं और घरों में बचा हुआ खाना बाहर फेंक दिया जाता है। इन्हीं देशों में मांस की बर्बादी सबसे ज्यादा होती है। क्लौरा कहते हैं, अमेरिका का स्कोर सबसे खराब है, जैसा कि दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील का है। जबकि भारत में, औसत व्यक्ति केवल बहुत कम मात्रा में मांस बर्बाद करता है।

बीफ बहुत बड़ा प्रदूषक है

अध्ययन के हवाले से, क्लौरा का लक्ष्य पशु कल्याण और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई दोनों के संदर्भ में मांस की बर्बादी को कम करने के अच्छे प्रभावों को सामने लाना है। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, सभी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 14.5 प्रतिशत पालतू पशु जिम्मेदार हैं, जिनमें बीफ सबसे बड़ा प्रदूषक है। लौरा शायर और जेरार्ड ब्रीमैन के साथ क्लौरा ने पशुधन की चेतना और भावना का भी पता लगाया। हालांकि जानवरों की पीड़ा को संख्या और प्रतिशत में व्यक्त करना कठिन है।

शोधकर्ता ने चेतावनी दी है कि हर साल मांस की भारी हानि से निपटने के लिए कोई आसान समाधान नहीं है। विकासशील देशों में, यह जानवरों की स्थिति में सुधार और मांस के भंडारण और यातायात के बारे में अधिक होगा। पश्चिमी देशों में, व्यवहार परिवर्तन से फर्क पड़ेगा।

क्लौरा का मानना है कि, अंतिम भाग आसान नहीं होगा। वह अपने मूल देश, जर्मनी की स्थिति का जिक्र करते हुए कहती हैं, जब आहार में बदलाव की बात आती है तो लोग परेशान हो सकते हैं। उन्हें ऐसा लगता है जैसे उनसे कुछ छीन लिया गया हो। इससे उत्पन्न होने वाली भावनाओं के कारण, राजनेता तर्कसंगत प्रतिक्रिया देने के लिए संघर्ष करते हैं। यह स्पष्ट करना कि हर साल मारे गए अरबों जानवरों को खाया भी नहीं जाता, सकारात्मक कार्रवाई की दिशा में पहला महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।

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