आहार संस्कृति: कितने काम की है मूंगफली, प्रोटीन व स्वाद से है भरपूर

मूंगफली प्रोटीन से भरपूर है। इसमें लगभग 26-28 प्रतिशत प्रोटीन होता है जो अंडे, डेयरी उत्पादों और मांस से अधिक है

By Vibha Varshney

On: Saturday 23 March 2024
 
मूंगफली की स्वादिष्ट चटनी बनाई जा सकती है (फोटो: विभा वार्ष्णेय / सीएसई)

दिल्ली में दिसंबर और जनवरी के महीनों में जब कड़ाके की ठंड पड़ती है, तब बस स्टॉप के बगल में मूंगफली का ढेर देखा जा सकता है। दुकानदार रेत में या नमक में इन्हें भूनकर गर्म-गर्म बेचते हैं। बस का इंतजार कर रहे यात्री मूंगफली खरीदकर बड़े चाव से खाते रहते हैं। यह मूंगफली भारत की पैसेंजर ट्रेनों में भी खूब लोकप्रिय हैं। ट्रेनों में अक्सर इसे “टाइमपास मूंगफली” कहकर बेचा जाता है। यह बिना नमक के, नमक के साथ, चटनी या मिर्च के साथ खाई जाती है।

प्रोटीन से भरपूर इस फली का चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और प्रमुख निर्यातक देश भारत ही है। यहां से करीब 65 देशों में मूंगफली का निर्यात किया जाता है। भारत में मूंगफली का इस्तेमाल मुख्यत: तेल निकालने के लिए किया जाता है। केवल 5 प्रतिशत ही नाश्ते या पारंपरिक व्यंजनों में एक अवयव के तौर पर इस्तेमाल होती है।

आंध्र प्रदेश में मूंगफली के बीज उबालकर नाश्ते में परोसे जाते हैं जबकि महाराष्ट्र में इसे दरदरा कर साबूदाने की खिचड़ी में मिलाया जाता है। मध्य प्रदेश में इन्हें पोहे में मिलाया जाता है, वहीं गुजरात में इसकी चटनी बनाकर नाश्ते में खाखरा के साथ खाया जाता है। दक्षिण में मूंगफली की सूखी चटनी या पोडी इडली अथवा डोसा के साथ खाई जाती है। दाल का स्वाद बढ़ाने के लिए भी पोडी मिलाई जा सकती है। गुड़पट्टी बनाने में भी भुनी मूंगफली इस्तेमाल की जाती है। यह भी ठंड में खूब पसंद की जाती है।

पुरातात्विक स्थलों में मिले सरसों और तिल के उलट मूंगफली काफी नई है। 16वीं शताब्दी में इसका आगमन हुआ था। मान्यता है कि यह मूलरूप से दक्षिण अमेरिका की उपज है जहां इसकी लगभग 100 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम अरेकिस हाइपोगिया है।

ब्राजील इसका मूलस्थान हो सकता है क्योंकि इसकी अधिकांश प्रजातियां वहीं पाई जाती हैं। भारत में यह कैसे पहुंची, इस पर अस्पष्टता है। एक लोकप्रिय मत है कि यह इसाई धर्म के प्रचारक जेसूट फादर्स के जरिए भारत पहुंची जो वास्कोडिगामा के बाद यहां आए थे। एक मान्यता यह भी है कि चीनी या अफ्रीकी बस्तियां से यह भारत पहुंची थी। एक स्वीकार्य और तार्किक मत यह भी है कि यह फिलीपींस से पहुंची है क्योंकि मद्रास प्रेजिडेंसी के दक्षिणी आरकोट जिले में इसे मनीलाकोट्टई यानी मनीला का नट नाम से भी जाना जाता था।

चाहे यह किसी भी रास्ते से आई हो लेकिन यहां आकर ठहर गई है। अक्टूबर 2023 में जारी खरीफ फसलों के अग्रिम अनुमान के मुताबिक, 2023-24 में करीब 78.29 लाख मीट्रिक टन मंगफली उत्पादन के आसार हैं। इसके उत्पादन में अग्रणी गुजरात का इसके कुल उत्पादन में 42 प्रतिशत योगदान है। गुजरात के बाद राजस्थान (17 प्रतिशत), तमिलनाडु (11 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (9 प्रतिशत) और कर्नाटक (6 प्रतिशत) का नंबर आता है।

पोषक तत्वों का खजाना

मूंगफली प्रोटीन से भरपूर है। इसमें लगभग 26-28 प्रतिशत प्रोटीन होता है जो अंडे, डेयरी उत्पादों और मांस से अधिक है। इसके 28 ग्राम के सेवन से 12 प्रतिशत दैनिक अनुशंसित प्रोटीन की भरपाई हो सकती है। इसके बीजों में 48-50 प्रतिशत तेल होता है और इसमें से अधिकांश अच्छा वसा- 50 प्रतिशत मोनोसैचुरेटेड फैट्टी एसिड (मूफा) और 30 प्रतिशत पॉलिसैचुरेटेड फैट्टी एसिड (पूफा) होता है जो कोलेस्ट्रॉल कम करने में मददगार है। इसके बीज भी कैल्शियम, आयरन और विटामिन बी और विटामिन ए जैसे खनिज और विटामिन से भरपूर होते हैं।

इसके पोषण गुणों में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। 2019 में भारत के विभिन्न संस्थानों के शोधकर्ताओं ने ऑल इंडिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन ग्राउंडनट के तहत दो उच्च ओलिक मूंगफलियों की पहचान की। इनसे तैयार उत्पाद और तेल लंबे समय तक खराब नहीं होता। इन किस्मों में लगभग 80 प्रतिशत ओलिक एसिड होता है, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी एक मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड है। यह हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मदद कर सकता है।

बेशुमार लोकप्रियता के बावजूद ऐसी खबरें हैं कि किसान इसकी खेती में रुचि नहीं ले रहे हैं और कई राज्यों में उत्पादन घट रहा है। उदाहरण के लिए, गुजरात में मूंगफली का रकबा 2016-17 के 1.7 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 2019-20 में 1.6 मिलियन हेक्टेयर हो गया। यह 2021-22 में फिर से बढ़कर 1.9 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। चूंकि इसकी फसल को नियमित पानी की आवश्यकता होती है तो अनिश्चित मौसम इसे नुकसान पहुंचा सकता है। यह जलवायु परिवर्तन के प्रति भी संवेदनशील है। मौसम जर्नल में जनवरी 2023 में छपे एक शोध के अनुसार, गुजरात में मूंगफली उत्पादक इलाकों में तापमान और वर्षा में अनुमानित वृद्धि से 2071- 2100 में 1961-1990 के मुकाबले उत्पादन में 32 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है।

मूंगफली का जीवन चक्र वनस्पति विज्ञान में कुछ अलग सा है। इसके पीले फूल पौधे के निचले हिस्से के चारों ओर निकलते हैं। परागण के बाद निषेचित अंडाशय एक गांठ बनाना शुरू कर देता है जो नीचे की ओर बढ़कर जमीन में प्रवेश करता है। भ्रूण गांठ की नोक पर होता है और मिट्टी के नीचे फली बनाने के लिए परिपक्व होता है।

मूंगफली के बीजों के अनेक उपयोग हैं। नाश्ते के अलावा इसका उपयोग खाद्य तेल निकालने में भी किया जाता है। इसका कोल्ड प्रेस्ड तेल अब काफी लोकप्रिय है। इसका व्यावसायिक उपयोग साबुन, सौंदर्य क्रीम, चिकित्सीय मलहम और क्रीम, पेंट व लुब्रिकेंट्स बनाने में होता है। मूंगफली की पत्तियां पशुओं के लिए समृद्ध चारा भी है। एक दलहनी फसल होने के नाते मूंगफली वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है और हर मौसम में प्रति हेक्टेयर लगभग 100-120 किलोग्राम नाइट्रोजन खेत में पहुंचाती है। मूंगफली की खली का उपयोग पशु और मुर्गी के भोजन के साथ-साथ जैविक उर्वरक के रूप में भी किया जाता है। मूंगफली के छिलके का उपयोग कार्ड-बोर्ड आदि औद्योगिक उत्पादों के निर्माण और ईंधन के लिए होता है।

मूंगफली अब कम मूल्य वाली वस्तु नहीं रही। मदर डेयरी की सब्जी की दुकान सफल में मूंगफली का 400 ग्राम का पैकेट 65 रुपए में बिकता है। इसी दुकान पर 500 ग्राम चने की दाल 51 रुपए में मिलती है। इसलिए अब मूंगफली को सस्ती और कमतर आंकने की गलती न करें।

मूंगफली की चटनीव्यंजन : मूंगफली की चटनी

सामग्री
  • मूंगफली के दाने (बीज) : 1 कप
  • हरी मिर्च: 5 से 6
  • हल्दी पाउडर: 1/4 चम्मच
  • गुड़: 1/2 चम्मच
  • मूंगफली का तेल : 1 चम्मच
  • नींबू का रस: 4 चम्मच
  • नमक : स्वादानुसार
विधि: दानों को रात भर के लिए पानी में भिगो दें। अगले दिन पानी निकालें और उसके ऊपर की गुलाबी झिल्ली को निकाल दें। एक मिक्सी में दानें डालें। बची हुई सामग्री को मिक्सी में डालकर दरदरा पीस लें। पानी डाल के इसका गाढ़ापन ठीक करें। इसे फ्रिज में एक सप्ताह तक रखा जा सकता है।

हूज समोसा इज इट एनीवे? द स्टोरी ऑफ व्हेयर ‘इंडियन’ फूड रियली केम फ्रॉम 
लेखक: सोनल वेद
प्रकाशक: पेंग्विन | पृष्ठ: 256 
मूल्य: Rs 399पुस्तक

यह पुस्तक हमें भारतीय उपमहाद्वीप में 1900 ईसा पूर्व में सिंधु के तट से कई शताब्दियों बाद उत्तर के महान साम्राज्यों तक स्वाद की यात्रा पर ले जाती है। लेखक हमें कश्मीर के पहाड़ों से लेकर कन्याकुमारी के बैकवाटर तक के खाद्य इतिहास और परंपराओं से परिचित कराता है।

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